नई दिल्ली, 30 मार्च 2025, रविवार। नागपुर की पावन धरती पर स्थित दीक्षा भूमि केवल एक स्मारक नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति और आत्मसम्मान का जीवंत प्रतीक है। रविवार को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी पवित्र स्थल पर पहुँचकर डॉ. भीमराव बाबासाहेब आंबेडकर और भगवान गौतम बुद्ध की प्रतिमाओं को नमन किया। कुछ देर तक डेट स्कूप में बैठकर ध्यान लगाने वाले पीएम का यह दौरा चर्चा का विषय बन गया। लेकिन यह स्थान क्यों इतना खास है? आइए, इसकी कहानी को करीब से जानें।

एक ऐतिहासिक पल का साक्षी
14 अक्टूबर 1956 का दिन भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। इसी दिन बाबासाहेब आंबेडकर ने नागपुर की इस दीक्षा भूमि पर हिंदू धर्म का त्याग कर अपने करीब 5 लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। यह न केवल एक धर्म परिवर्तन था, बल्कि जातिवाद और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ एक सशक्त विद्रोह भी था। बाबासाहेब का मानना था कि हिंदू धर्म में व्याप्त ऊँच-नीच, काला-गोरा और वर्ण व्यवस्था जैसी कुरीतियाँ दलितों को कभी बराबरी का हक नहीं दे सकतीं। बौद्ध धर्म में उन्हें समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे का वह रास्ता दिखा, जिसकी तलाश वे जीवन भर करते रहे।

पीएम का दौरा: उम्मीद और आलोचना का मिश्रण
प्रधानमंत्री मोदी का दीक्षा भूमि आना कई अनुयायियों के लिए सकारात्मक संकेत रहा। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि यह एक अच्छा कदम है, लेकिन जब तक देश में समता का राज स्थापित नहीं होगा, तब तक ऐसे प्रयास अधूरे ही रहेंगे। कुछ लोगों ने इसे पीएम का दिखावा करार दिया, तो कुछ का मानना था कि असली बदलाव की जिम्मेदारी दलित समुदाय को खुद उठानी होगी। यह मिली-जुली प्रतिक्रिया इस बात का सबूत है कि दीक्षा भूमि आज भी सामाजिक न्याय की लड़ाई का केंद्र बनी हुई है।

दीक्षा भूमि की शान: वास्तुकला और संरचना
दीक्षा भूमि का विशाल सफेद स्तूप दूर से ही नजर आता है और बौद्ध स्थापत्य कला का एक शानदार नमूना है। संगमरमर से निर्मित यह संरचना न केवल आँखों को सुकून देती है, बल्कि यहाँ की शांति मन को भी छू जाती है। स्तूप के भीतर बाबासाहेब की भव्य प्रतिमा उनके संघर्ष और योगदान की कहानी बयां करती है। इसके अलावा, यहाँ एक संग्रहालय और पुस्तकालय भी है, जहाँ बौद्ध धर्म और आंबेडकर के विचारों से जुड़ी किताबें हर आने वाले को प्रेरित करती हैं।

समानता और न्याय का प्रतीक
दीक्षा भूमि बौद्ध अनुयायियों के लिए एक तीर्थ स्थल है। हर साल 14 अक्टूबर को धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस पर लाखों लोग यहाँ जुटते हैं। यह स्थान केवल धार्मिक महत्व तक सीमित नहीं है; यह समता, न्याय और बंधुत्व की उस मशाल का प्रतीक है, जिसे बाबासाहेब ने जलाया था। यहाँ मौजूद बौद्ध अध्ययन केंद्र शोधार्थियों और सच्चाई के खोजियों के लिए भी एक मील का पत्थर है।

एक प्रेरणा, एक संदेश
दीक्षा भूमि हमें याद दिलाती है कि बदलाव की शुरुआत समाज के भीतर से होती है। बाबासाहेब ने बौद्ध धर्म को अपनाकर न सिर्फ अपने लिए, बल्कि लाखों लोगों के लिए सम्मान और समानता का रास्ता खोला। पीएम मोदी का यहाँ आना इस संदेश को और मजबूत करता है कि हमें उनके सपनों को साकार करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा। लेकिन सवाल वही है—क्या हम सचमुच उस समता की ओर बढ़ रहे हैं, जिसके लिए बाबासाहेब ने अपना जीवन समर्पित कर दिया? यह विचार हर भारतीय के मन में गूंजना चाहिए।