नई दिल्ली, 9 जुलाई 2025: भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ इन दिनों एक ऐसी चुनौती से जूझ रहे हैं, जो न केवल कानूनी बल्कि गहरे मानवीय सरोकारों से जुड़ी है। दिल्ली में सरकारी बंगला खाली करने में हो रही देरी पर उठे विवाद के बीच उन्होंने अपनी दो गोद ली बेटियों की गंभीर स्वास्थ्य स्थिति को सार्वजनिक किया, जो इस मामले को संवेदनशील मोड़ पर ला खड़ा करता है।
पूर्व CJI ने खुलासा किया कि उनकी बेटियाँ ‘नेमालाइन मायोपैथी’ नामक एक दुर्लभ और लाइलाज बीमारी से जूझ रही हैं। इस बीमारी में मांसपेशियाँ धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती हैं, जिसके चलते उनकी बेटियाँ ट्रेकियोस्टॉमी ट्यूब के सहारे साँस लेती हैं। उन्हें चौबीसों घंटे नर्सिंग देखभाल और ICU जैसी चिकित्सा सुविधाओं की आवश्यकता है।
चंद्रचूड़ ने बताया कि उनका सारा सामान पैक हो चुका है, लेकिन बेटियों की नाजुक हालत को देखते हुए नए स्थान पर समुचित चिकित्सा व्यवस्था तैयार करने के लिए उन्होंने सरकार से 10 से 16 दिन का समय मांगा है। उन्होंने भावुक अपील में कहा, “यह सिर्फ बंगला खाली करने का सवाल नहीं, बल्कि मेरी बेटियों की जिंदगी और सुरक्षा का मसला है। एक पिता के रूप में उनकी देखभाल मेरी पहली प्राथमिकता है, और मैं कानून का पूरा सम्मान करता हूँ।”
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह पूर्व CJI के सरकारी आवास से शीघ्र विस्थापन सुनिश्चित करे। हालांकि, यह मामला अब केवल प्रशासनिक औपचारिकता तक सीमित नहीं रह गया है। यह न्याय, करुणा और मानवीय संवेदनाओं के बीच की उस बारीक रेखा को उजागर करता है, जहाँ संविधान के रक्षक को स्वयं संविधान की आत्मा—न्याय, करुणा और गरिमा—की सबसे अधिक आवश्यकता महसूस हो रही है।
यह घटना न केवल कानूनी हलकों में चर्चा का विषय बनी है, बल्कि आम लोगों के बीच भी यह सवाल उठा रही है कि जब बात इंसानियत की हो, तो नियम और संवेदना में से किसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए।