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Friday, June 27, 2025

बीएचयू में दलित छात्र की जंग: पीएचडी दाखिले का हक या भेदभाव का शिकार?

संसद तक गूंजी एक छात्र की पुकार: क्या मिलेगा शिवम को न्याय?

✍️ विकास यादव

वाराणसी, 25 मार्च 2025, मंगलवार। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में एक दलित छात्र के साथ कथित अन्याय का मामला अब संसद तक जा पहुंचा है। यह कहानी है शिवम सोनकर की, जो पीएचडी में दाखिले के लिए चार दिनों से वाइस चांसलर के आवास के बाहर धरने पर बैठा है। उसका आरोप है कि प्रवेश परीक्षा में दूसरी रैंक हासिल करने और विभाग में तीन सीटें खाली होने के बावजूद उसे दाखिला नहीं दिया जा रहा। शिवम का कहना है कि यह भेदभाव उसकी दलित पहचान के कारण हो रहा है, और वह तब तक हटने को तैयार नहीं जब तक उसे न्याय नहीं मिल जाता।

इस मामले ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। नगीना से सांसद और भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने न सिर्फ शिवम से फोन पर बात की, बल्कि संसद में भी यह मुद्दा जोर-शोर से उठाया। उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को पत्र लिखकर निष्पक्ष जांच और कार्रवाई की मांग की। चंद्रशेखर ने कहा कि जब विभाग में सीटें खाली हैं और शिवम ने मेरिट में जगह बनाई है, तो उसे दाखिले से वंचित करना न सिर्फ अन्याय है, बल्कि सामाजिक भेदभाव की ओर भी इशारा करता है। दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी के सांसद वीरेंद्र सिंह ने भी शिवम से बात कर मदद का भरोसा दिलाया।

बीएचयू प्रशासन ने इस विवाद पर अपनी सफाई दी है। पीएमओ को भेजे जवाब में विश्वविद्यालय ने कहा कि आरईटी एग्जम्प्टेड श्रेणी में तीन सीटें उम्मीदवारों की कमी के कारण खाली हैं। साथ ही, नियमों के मुताबिक, अगर विज्ञापित सीटों के लिए पर्याप्त आवेदन नहीं आते, तो उन्हें दूसरी श्रेणी में ट्रांसफर करना संभव है। लेकिन शिवम का आरोप है कि इसके बावजूद उसकी बात को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा। वह कहता है कि विभाग और सेंट्रल ऑफिस के चक्कर काटने के बाद भी कोई जिम्मेदार अधिकारी उसकी सुनवाई को तैयार नहीं।

शिवम की लड़ाई अब सिर्फ उसकी अपनी नहीं रही। मछली शहर की विधायक डॉ. रागिनी ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की। वहीं, सपा एमएलसी आशुतोष सिन्हा ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखा, जिसमें इसे अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा में अवसरों को बाधित करने वाला उदाहरण बताया। दोनों नेताओं ने इस मामले की गहन जांच और शिवम को न्याय दिलाने की गुहार लगाई है।

यह घटना न सिर्फ बीएचयू की प्रवेश प्रक्रिया पर सवाल उठाती है, बल्कि उच्च शिक्षा में पारदर्शिता और समानता के मुद्दे को भी सामने लाती है। शिवम की हिम्मत और उसके समर्थन में उठ रही आवाजें अब इस सवाल को बड़ा बना रही हैं कि क्या उसे उसका हक मिलेगा, या यह मामला सिर्फ कागजी पत्रों और बयानों में दबकर रह जाएगा?

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