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Sunday, June 22, 2025

जमीन, क्रिप्टो और नौकरी के नाम पर करोड़ों की ठगी: पीपीगंज के तीन भाइयों की काली करतूत

गोरखपुर, 28 मार्च 2025, शुक्रवार। आपने सुना होगा कि इंसान की पहुंच हो तो वह किसी गरीब या असहाय की मदद कर सकता है, लेकिन पीपीगंज और कैंपियरगंज इलाके में तीन भाइयों ने इस कहावत को उल्टा कर दिया। इनका नाम है अभिषेक श्रीवास्तव, अनुराग श्रीवास्तव और अमन श्रीवास्तव। ये तीनों भाई अपनी कथित “पहुंच” का ढोल पीटते हुए न सिर्फ बड़े अधिकारियों का नाम लेते हैं, बल्कि लोगों को झांसे में लेकर करोड़ों की ठगी कर फरार हो गए। इनके शिकार बने सैकड़ों लोग आज इंसाफ की आस में दर-दर भटक रहे हैं, तो कुछ अपनी बेइज्जती के डर से चुप्पी साधे बैठे हैं।

दोस्ती का जाल, ठगी का खेल

ये भाई पहले बड़े व्यापारियों, नौकरीपेशा लोगों और बेरोजगार युवकों से दोस्ती का नाटक करते हैं। फिर शुरू होता है उनका असली खेल। कभी क्रिप्टो करेंसी में पैसा दोगुना करने का लालच, कभी जमीन दिलाने का वादा, तो कभी नौकरी का झांसा—हर बार ये लोगों को अपने जाल में फंसाते हैं। पीड़ितों की लंबी फेहरिस्त में कुछ नाम तो सामने आए हैं—शशिकांत उपाध्याय से 2 लाख, चंद्र प्रताप सिंह से 8 लाख, शरद तिवारी से 15-18 लाख, सतीश गुप्ता से 25 लाख, दयानाथ शर्मा से 16 लाख—और ऐसे ही कई लोग इनके झांसे में आकर अपनी जमा-पूंजी गंवा बैठे। कुल मिलाकर इन तीनों ने करोड़ों रुपये ऐंठे और अब बड़े शहरों में ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहे हैं।

धमकी और गालियों का दबदबा

जब पीड़ित अपने पैसे मांगने की हिम्मत करते हैं, तो जवाब में इन्हें गालियां और धमकियां मिलती हैं। ऑडियो रिकॉर्डिंग्स इसका सबूत हैं, जिनमें ये भाई पीड़ितों को भद्दी-भद्दी बातें कहते सुने जा सकते हैं। फोन काटकर नंबर ब्लैकलिस्ट कर देना इनका शौक है। इतना ही नहीं, ये बड़े अधिकारियों से अपनी जान-पहचान का हवाला देकर थाने में पिटवाने तक की धमकी देते हैं। पीड़ितों का कहना है कि ये ठग अपनी पहुंच का रौब दिखाकर लोगों को डराते हैं और फिर मौज-मस्ती में मशगूल हो जाते हैं।

इंसाफ की आस में पीड़ित

पत्रकारों से बातचीत में पीड़ितों ने अपना दर्द बयां किया। कुछ ने थानों में मुकदमे दर्ज कराए हैं और इंसाफ की उम्मीद लगाए बैठे हैं, तो कुछ इन ठगों के आगे हाथ-पैर जोड़कर थक चुके हैं। एक पीड़ित ने बताया, “पैसा मांगो तो गालियां पड़ती हैं, धमकी मिलती है। हमारे पास ऑडियो सबूत हैं, लेकिन ये लोग बेखौफ हैं।” सवाल यह है कि आखिर कब तक ये ठग कानून की पकड़ से दूर रहकर लोगों की मेहनत की कमाई लूटते रहेंगे?

एक अंतहीन ठगी की कहानी

इन तीनों भाइयों की ठगी की लिस्ट इतनी लंबी है कि उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। पीपीगंज के टीचर कॉलोनी से शुरू हुआ यह खेल अब पूरे इलाके में फैल चुका है। कोई जमीन के नाम पर, कोई क्रिप्टो के लालच में, तो कोई नौकरी की उम्मीद में इनके चक्कर में फंस गया। लेकिन नतीजा वही—खाली जेब और टूटी उम्मीदें।

अब सवाल उठता है—क्या इन ठगों पर लगाम लगेगी? क्या पीड़ितों को उनका हक मिलेगा? या फिर ये भाई अपनी “पहुंच” के दम पर यूं ही कानून को ठेंगा दिखाते रहेंगे? जवाब का इंतजार तो पीड़ितों को है, लेकिन यह कहानी हर उस शख्स के लिए सबक है जो आसान कमाई के सपनों में अंधा हो जाता है। सावधान रहें, क्योंकि हर दोस्ती के पीछे दोस्त नहीं, कभी-कभी ठग भी छिपा होता है।

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