वाराणसी, 9 जुलाई 2025: काशी, वह प्राचीन नगरी जो संस्कृति, अध्यात्म और आधुनिकता का संगम है, आज एक अनोखे विरोधाभास का गवाह बन रही है। एक ओर, इस शहर के सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी योग को विश्व पटल पर ले जाकर स्वस्थ जीवन का संदेश दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनके ही संसदीय क्षेत्र में बरेका (बनारस रेल इंजन कारखाना) प्रशासन ने ऐसा फरमान जारी किया है, जिसने स्थानीय लोगों के मन में आक्रोश की ज्वाला भड़का दी है। टैगोर पार्क, जो सुबह की सैर करने वालों का पसंदीदा ठिकाना था, अब एक नोटिस की वजह से विवादों के घेरे में है। इस नोटिस में सख्त लहजे में लिखा गया है कि पार्क में रेल कर्मचारियों को छोड़कर बाहरी लोगों का प्रवेश “पूर्णतः वर्जित” है। मॉर्निंग वॉक के लिए पार्क में आने वाले किसी भी बाहरी व्यक्ति के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी गई है।
नोटिस ने भड़काया जनाक्रोश
बुधवार की सुबह, जब सूरज की पहली किरणों के साथ लोग टैगोर पार्क की ओर रुख कर रहे थे, तब पार्क के बाहर चस्पा इस नोटिस ने सबको चौंका दिया। यह नोटिस न केवल एक आदेश था, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए एक चुनौती बन गया। देखते ही देखते, सैकड़ों मॉर्निंग वॉकर्स में आक्रोश की लहर दौड़ गई। गुस्साए लोग बरेका महाप्रबंधक के आवास की ओर कूच करने को तैयार हो गए, लेकिन रेलवे प्रशासन ने उन्हें बीच में ही रोक दिया। इस घटना ने वाराणसी के आम नागरिकों के बीच एक सवाल खड़ा कर दिया—जब शहर में सार्वजनिक पार्कों की संख्या पहले ही सीमित है, तो मॉर्निंग वॉक और स्वास्थ्य के लिए लोग कहाँ जाएँ?
“हिटलरशाही फरमान” के खिलाफ बुलंद आवाज
आक्रोशित भीड़ में शामिल सिगरा के पूर्व पार्षद शंकर विशनानी ने बरेका प्रशासन के इस फैसले को “हिटलरशाही फरमान” करार दिया। उन्होंने तल्ख लहजे में कहा, “शहर में पहले ही पार्कों का अभाव है। जो बचे हैं, उन्हें या तो कमर्शियल बना दिया गया है या उन पर अतिक्रमण हो गया है। ऐसे में आम लोग, जो सुबह की सैर के लिए पार्कों पर निर्भर हैं, कहाँ जाएँ?” विशनानी ने चेतावनी दी कि यदि बरेका प्रशासन ने यह आदेश वापस नहीं लिया, तो शहर में एक बड़ा जनांदोलन छेड़ा जाएगा। उनके साथ राजन सिंह, पिंकी दुबे, धर्मेंद्र पटेल, संतोष परिहार, पंचानंद तिवारी, राजबहादुर पटेल, पंकज मिश्रा जैसे सैकड़ों लोग इस मुद्दे पर एकजुट हो गए। इन लोगों ने एक स्वर में प्रशासन से इस फैसले को तत्काल वापस लेने की माँग की।
स्वास्थ्य और स्वतंत्रता का सवाल
यह विवाद केवल एक पार्क तक सीमित नहीं है; यह स्वास्थ्य, स्वतंत्रता और सामुदायिक अधिकारों का सवाल है। जब देश का नेतृत्व योग और स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने की बात करता है, तब स्थानीय प्रशासन का ऐसा कदम विरोधाभास पैदा करता है। टैगोर पार्क न केवल एक हरा-भरा स्थल है, बल्कि यह उन लोगों का ठिकाना है जो सुबह की ताजगी में अपने दिन की शुरुआत करते हैं। बुजुर्ग, युवा और बच्चे यहाँ सैर, व्यायाम और सामाजिक मेलजोल के लिए आते हैं। ऐसे में, इस पार्क को केवल रेल कर्मचारियों तक सीमित करना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि यह शहरवासियों के स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता को भी दर्शाता है।
आगे क्या?
बरेका प्रशासन का यह कदम अब एक बड़े आंदोलन की चिंगारी बन सकता है। मॉर्निंग वॉकर्स का कहना है कि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ेंगे और इस “हिटलरशाही” के खिलाफ आवाज उठाते रहेंगे। दूसरी ओर, रेलवे प्रशासन ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। सवाल यह है कि क्या प्रशासन अपने फैसले पर कायम रहेगा, या जनता के दबाव में इसे वापस लेगा?
वाराणसी, जो गंगा की लहरों और अध्यात्म की शांति के लिए जानी जाती है, आज एक नए संघर्ष की कहानी लिख रही है। यह कहानी केवल एक पार्क की नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की है जो अपने स्वास्थ्य और अधिकारों के लिए लड़ना चाहता है। क्या टैगोर पार्क फिर से शहरवासियों की हंसी-खुशी और सुबह की सैर का गवाह बनेगा, या यह विवाद और गहरा जाएगा? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।