नई दिल्ली, 28 मार्च 2025, शुक्रवार। हाल के दिनों में कोविशील्ड वैक्सीन को लेकर एक बार फिर विवाद छिड़ गया है, और इस बार समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने केंद्र की भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोला है। अखिलेश ने कोविशील्ड वैक्सीन से ब्लड क्लॉटिंग के संभावित खतरे को लेकर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि इस जानलेवा जोखिम की जिम्मेदारी कौन लेगा। साथ ही, उन्होंने यह भी पूछा कि क्या वैक्सीन कंपनियों से चंदा लेते वक्त सरकार को इस खतरे की जानकारी थी, और यदि थी तो जनता के जीवन को खतरे में क्यों डाला गया। यदि नहीं थी, तो बिना जांच के इतना बड़ा फैसला किसने लिया और इसे नजरअंदाज करने के लिए कितना और किसने लिया।
कोविशील्ड और ब्लड क्लॉटिंग का विवाद
कोविशील्ड वैक्सीन, जिसे भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने एस्ट्राजेनेका के सहयोग से बनाया, कोविड-19 महामारी के दौरान देश में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल की गई थी। करीब 80 करोड़ से अधिक भारतीयों को यह वैक्सीन दी गई। हाल ही में एस्ट्राजेनेका ने ब्रिटेन के एक कोर्ट में स्वीकार किया कि उनकी वैक्सीन “बहुत दुर्लभ मामलों” में ब्लड क्लॉटिंग से जुड़ी जटिलता, TTS, का कारण बन सकती है। हालांकि, कंपनी ने यह भी कहा कि इसकी वजह का वैज्ञानिक लिंक अभी तक स्पष्ट नहीं है। इस खुलासे के बाद भारत में भी वैक्सीन की सुरक्षा पर सवाल उठने लगे।
2024 में एस्ट्राजेनेका ने वैश्विक स्तर पर अपनी वैक्सीन Vaxzevria (भारत में कोविशील्ड) को वापस लेने की घोषणा की, जिसका कारण कंपनी ने “अद्यतन वैक्सीनों की अधिकता” बताया। सीरम इंस्टीट्यूट ने भी कहा कि उन्होंने दिसंबर 2021 से कोविशील्ड का उत्पादन और आपूर्ति बंद कर दी थी, और पैकेजिंग में TTS जैसे दुर्लभ साइड इफेक्ट्स की जानकारी पहले ही दी गई थी।
अखिलेश यादव का हमला
अखिलेश यादव ने इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देते हुए भाजपा सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि सरकार को जवाब देना चाहिए कि क्या उसे वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स की जानकारी थी। यदि हां, तो यह जनता के साथ खिलवाड़ क्यों किया गया? और यदि नहीं, तो बिना पूरी जांच के इतना जोखिम भरा फैसला क्यों लिया गया? इसके साथ ही, उन्होंने वैक्सीन कंपनियों से चंदे के कथित लेन-देन पर सवाल उठाया, यह आरोप लगाते हुए कि क्या भाजपा ने पैसे के बदले जनता की जान को दांव पर लगाया। अखिलेश ने पहले भी कोविड-19 वैक्सीन को “भाजपा की वैक्सीन” कहकर इसका विरोध किया था, और अब इस नए विवाद ने उनके पुराने बयानों को फिर से चर्चा में ला दिया है।
सरकार और वैक्सीन निर्माताओं का पक्ष
केंद्र सरकार ने अभी तक अखिलेश के इन ताजा आरोपों पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि, महामारी के दौरान सरकार ने कोविशील्ड को सुरक्षित और प्रभावी बताते हुए इसके इस्तेमाल को मंजूरी दी थी। विशेषज्ञों का कहना है कि TTS जैसे साइड इफेक्ट्स बेहद दुर्लभ हैं (लाखों में कुछ मामले), और वैक्सीन के फायदे इसके जोखिमों से कहीं ज्यादा हैं। सीरम इंस्टीट्यूट ने भी अपने बयान में कहा कि सभी जरूरी जानकारी पारदर्शी तरीके से दी गई थी। भाजपा ने पहले अखिलेश के वैक्सीन विरोधी बयानों को “वैज्ञानिकों और डॉक्टरों का अपमान” करार दिया था। इस बार भी पार्टी संभवतः इसे राजनीतिक हमला मानकर खारिज कर सकती है। लेकिन चंदे के आरोपों पर अभी तक कोई ठोस सबूत सार्वजनिक नहीं हुए हैं, जिससे यह दावा जांच के अभाव में केवल राजनीतिक बयानबाजी तक सीमित है।
सच्चाई और सवाल
कोविशील्ड से जुड़े साइड इफेक्ट्स की बात वैज्ञानिक रूप से सही है, लेकिन यह भी सच है कि ऐसे मामले बेहद कम हैं। महामारी के दौरान वैक्सीन ने लाखों लोगों की जान बचाई, और इसकी मंजूरी अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर दी गई थी। अखिलेश के सवाल गंभीर हैं—यदि सरकार को खतरे की जानकारी थी, तो पारदर्शिता क्यों नहीं बरती गई? लेकिन उनके चंदे के दावे बिना सबूत के संदेहास्पद लगते हैं। दूसरी ओर, सरकार की चुप्पी और इस मुद्दे पर स्पष्ट जवाब न देना भी जनता में भ्रम पैदा कर रहा है।
यह विवाद न केवल वैक्सीन की सुरक्षा पर सवाल उठाता है, बल्कि राजनीति और जनस्वास्थ्य के बीच की जटिल कड़ी को भी उजागर करता है। अखिलेश यादव के आरोपों ने एक बार फिर सरकार को कठघरे में खड़ा किया है, लेकिन सच्चाई तब तक अस्पष्ट रहेगी जब तक कोई स्वतंत्र जांच या ठोस सबूत सामने नहीं आते। जनता के लिए जरूरी है कि इस मुद्दे पर भावनाओं के बजाय तथ्यों को आधार बनाया जाए। क्या यह केवल राजनीतिक खेल है या वास्तव में कोई बड़ी साजिश? इसका जवाब समय और जांच ही दे सकते हैं।