नई दिल्ली, 29 मई 2025, गुरुवार। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन को एक और करारा झटका लगा है! इस बार तगड़ा वार किया है मैनहट्टन की संघीय अदालत ने, जिसने ट्रंप के बहुचर्चित ‘लिबरेशन डे’ टैरिफ को असंवैधानिक करार देते हुए उस पर तत्काल रोक लगा दी। यह फैसला न सिर्फ ट्रंप की व्यापार नीति पर चोट है, बल्कि अमेरिकी संविधान की ताकत को भी रेखांकित करता है।
‘लिबरेशन डे’ टैरिफ था क्या?
ट्रंप प्रशासन ने अप्रैल में एक बड़ा दांव खेलते हुए उन देशों पर भारी-भरकम आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने का ऐलान किया था, जो अमेरिका को ज्यादा सामान बेचते हैं लेकिन वहां से कम खरीदते हैं। इस नीति को ‘लिबरेशन डे’ टैरिफ का नाम दिया गया। इसका मकसद था अमेरिका का व्यापार घाटा कम करना, लेकिन यह फैसला अमेरिकी व्यापारियों और कई राज्यों के लिए गले की हड्डी बन गया। नतीजा? उन्होंने इसे कोर्ट में चुनौती दे दी।
कोर्ट ने सुनाया कड़ा फैसला
मैनहट्टन की कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड में तीन जजों की बेंच ने ट्रंप के इस कदम को असंवैधानिक ठहराते हुए दो-टूक शब्दों में कहा कि राष्ट्रपति ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया। कोर्ट ने साफ किया कि अमेरिकी संविधान के तहत व्यापार नीति बनाने का हक सिर्फ कांग्रेस को है, न कि राष्ट्रपति को।
जजों ने अपने फैसले में लिखा, “ट्रंप का यह टैरिफ बिना किसी समय या दायरे की सीमा के लागू किया गया, जो कानून के दायरे से बाहर है। IEEPA (International Emergency Economic Powers Act) राष्ट्रपति को ऐसा अनियंत्रित अधिकार नहीं देता।” कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि व्यापार घाटे को ‘आपातकाल’ बताना तथ्यों से परे है, क्योंकि यह समस्या दशकों से चली आ रही है।
ट्रंप की दलीलें धरी की धरी
ट्रंप प्रशासन ने बचाव में 1971 के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के फैसले का हवाला दिया, जब उन्होंने आपातकाल के नाम पर टैरिफ लगाए थे। प्रशासन का यह भी दावा था कि आपातकाल की वैधता तय करना कोर्ट का काम नहीं, बल्कि कांग्रेस का है। लेकिन कोर्ट ने इन तर्कों को सिरे से खारिज कर दिया। जजों ने कहा कि व्यापार घाटा कोई नई या आपात स्थिति नहीं है, जिसे इस तरह से हथियार बनाया जाए।
कौन लाया चुनौती?
इस ऐतिहासिक फैसले के पीछे दो बड़े पक्ष थे। पहला, छोटे अमेरिकी व्यापारियों का एक समूह, जिन्हें ट्रंप के टैरिफ से भारी नुकसान हो रहा था। दूसरा, 12 डेमोक्रेटिक राज्यों के अटॉर्नी जनरल्स, जिन्होंने तर्क दिया कि IEEPA का दुरुपयोग कर वैश्विक टैरिफ थोपना ट्रंप के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
अब क्या होगा?
ट्रंप प्रशासन के पास अब यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स फॉर द फेडरल सर्किट में अपील करने का रास्ता खुला है। अगर बात नहीं बनी, तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है। यह पहली बार है जब किसी संघीय अदालत ने ट्रंप की टैरिफ नीति को अवैध ठहराया है, और यह भविष्य में ऐसी नीतियों के लिए एक मिसाल बन सकता है।
क्यों है यह फैसला खास?
यह न सिर्फ ट्रंप की नीतियों पर एक बड़ा प्रहार है, बल्कि यह भी दिखाता है कि अमेरिकी संविधान में शक्ति संतुलन कितना महत्वपूर्ण है। क्या यह फैसला वैश्विक व्यापार के नियमों को नया आकार देगा? यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन फिलहाल ट्रंप के ‘लिबरेशन डे’ टैरिफ की हवा निकल चुकी है!