नई दिल्ली, 23 मार्च 2025, रविवार। आजकल देश की कई बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियां दुनिया की बेहतरीन कारें बनाने की दौड़ में शामिल हैं। मगर अब तक किसी भी देसी कंपनी ने ऐसी सुपरकार नहीं बनाई, जो रफ्तार और तकनीक के मामले में वैश्विक स्तर पर अपनी छाप छोड़ सके। लेकिन अब प्रयागराज के एक युवा ने इस खालीपन को भरने की ठानी है। अभिषेक वैराग्य नाम के इस शख्स ने एक ऐसी सुपरकार डिज़ाइन की है, जो न सिर्फ देश की सड़कों पर दौड़ेगी, बल्कि दुनिया की सबसे किफायती सुपरकार बनने का दम भी रखती है। आइए, जानते हैं इस खास कहानी को।
‘थंडर’ – सपनों की सुपरकार
अभिषेक ने अपनी इस सुपरकार का नाम ‘थंडर’ रखा है, जो उनके मुताबिक देश की पहली सुपरकार का प्रोटोटाइप है। इस कार को देखकर लगता है कि यह रफ्तार का दूसरा नाम हो सकती है। अभी यह प्रोटोटाइप 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ता है, लेकिन अभिषेक का दावा है कि इसे और बेहतर करने के बाद यह 250 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ेगी। इस प्रोटोटाइप को बनाने में करीब 16 लाख रुपये की लागत आई है। अभिषेक का सपना है कि अगर सब कुछ ठीक रहा, तो जल्द ही यह सुपरकार पूरी तरह तैयार होकर सड़कों पर उतरेगी। तब इसकी कीमत लगभग 50 लाख रुपये होगी, जो इसे दुनिया की सबसे सस्ती सुपरकार बना देगी।
स्टार्टअप समिट में चर्चा का केंद्र
हाल ही में मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआईटी) के इनोवेशन एंड इन्क्यूबेशन हब और कैश क्राई द्वारा आयोजित दो दिवसीय स्टार्टअप समिट में ‘थंडर’ ने सबका ध्यान खींचा। खासतौर पर युवाओं में इस कार को लेकर जबरदस्त उत्साह देखने को मिला। इतना ही नहीं, इसकी अनोखी डिज़ाइन और तकनीक ने कई बड़ी कार निर्माता कंपनियों के प्रतिनिधियों को भी हैरान कर दिया। वे इस प्रोटोटाइप की बारीकियों को समझने में जुट गए। अभिषेक की कंपनी ‘एवी ऑटोमोटिव्स’ अब इस कार के जरिए एक नई पहचान बनाने की राह पर है।
इलेक्ट्रिक और किफायती
‘थंडर’ एक इलेक्ट्रिक सुपरकार है, जो एक बार फुल चार्ज होने पर 200 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकती है। अभी इसकी स्पीड सीमित है, लेकिन अभिषेक का कहना है कि तकनीकी बदलावों के बाद यह 250 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तक पहुंचेगी। पर्यावरण के लिहाज से यह कार एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकती है, क्योंकि यह न सिर्फ तेज़ है, बल्कि ईंधन की बजाय बिजली से चलती है।
अभिषेक की प्रेरक यात्रा
अभिषेक की कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं। 2016 में उन्होंने दिल्ली के महाराजा सूरजमल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में बीटेक (मैकेनिकल) में दाखिला लिया, लेकिन उनका मन वहां नहीं लगा। महज एक साल बाद पढ़ाई छोड़कर वे घर लौट आए। 2019 में उनके दिमाग में सुपरकार बनाने का विचार आया। अपने भाई अखिलेश के साथ मिलकर उन्होंने इस सपने को सच करने की ठानी। चार साल की कड़ी मेहनत के बाद ‘थंडर’ का प्रोटोटाइप तैयार हुआ। लागत कम करने के लिए अभिषेक ने पुराने मैटेरियल का इस्तेमाल किया और परिवार-दोस्तों की मदद से 16 लाख रुपये जुटाए। इस दौरान कई मुश्किलें आईं, लेकिन अभिषेक ने हार नहीं मानी।
भविष्य की उम्मीद
अभिषेक को भरोसा है कि उनकी मेहनत रंग लाएगी। वे कहते हैं, “अब जब प्रोटोटाइप तैयार हो गया है, तो मुझे उम्मीद है कि जल्द ही कोई बड़ी कंपनी इसे आगे बढ़ाने में मदद करेगी।” अगर ऐसा हुआ, तो ‘थंडर’ न सिर्फ अभिषेक का सपना पूरा करेगी, बल्कि देश के लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा बनकर सड़कों पर फर्राटे भरेगी।
यह कहानी सिर्फ एक कार की नहीं, बल्कि हौसले, मेहनत और सपनों की उड़ान की है। अभिषेक वैराग्य जैसे युवा साबित करते हैं कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी मंजिल दूर नहीं। ‘थंडर’ अब बस इस इंतज़ार में है कि कब यह सड़कों पर दहाड़े और दुनिया को अपनी रफ्तार का एहसास कराए।