वाराणसी, 12 मई 2025, सोमवार। सारनाथ, भगवान बुद्ध की पावन नगरी, जहां शांति और आध्यात्मिकता का वास है, हाल ही में एक अप्रत्याशित विवाद की चपेट में आ गई। बुद्ध पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर, वाराणसी विकास प्राधिकरण (VDA) द्वारा पुरातात्विक संग्रहालय के सामने स्थापित वैदिक ऋषि-मुनियों की मूर्तियों ने बौद्ध संगठनों की नाराजगी को हवा दी। लेकिन प्रशासन की तत्परता और संवेदनशीलता ने इस तनाव को एक बड़े विवाद में बदलने से रोक लिया।
विवाद की शुरुआत
सारनाथ, जो बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है, अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक पहचान के लिए जाना जाता है। यहां हाल ही में VDA ने वैदिक ऋषि-मुनियों की मूर्तियां स्थापित की थीं। इस कदम को बौद्ध संगठनों ने अपनी धार्मिक भावनाओं पर आघात माना। सम्राट अशोक बौद्ध महासंघ के नेतृत्व में करीब 50 अनुयायी धरना-प्रदर्शन की तैयारी में जुट गए। महासंघ के अध्यक्ष कवि चित्रप्रभाव त्रिशरण ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “सारनाथ भगवान बुद्ध की नगरी है। यहां केवल बुद्ध से जुड़ी चीजें ही स्वीकार्य हैं। किसी भी विपरीत कार्य का हम पुरजोर विरोध करेंगे।”
बौद्ध समुदाय का गुस्सा
विरोध में बौद्ध भिक्षुओं और अनुयायियों ने एकजुटता दिखाई। भंते अशोक मित्र, भंते आनंद, भंते हरिहर और डॉ. हरिश्चंद्र अशोक जैसे प्रमुख नाम इस आंदोलन में शामिल थे। बुद्ध पूर्णिमा जैसे पवित्र अवसर से ठीक पहले यह विवाद धार्मिक माहौल को तनावपूर्ण बनाने की ओर बढ़ रहा था। बौद्ध समुदाय का मानना था कि वैदिक मूर्तियों की स्थापना से सारनाथ की बौद्ध पहचान को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है।
प्रशासन की त्वरित कार्रवाई
जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार ने स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए तुरंत हस्तक्षेप किया। बुद्ध पूर्णिमा के शांतिपूर्ण माहौल को बनाए रखने के लिए मूर्तियों को हटाने का आदेश दिया गया। रविवार को VDA ने क्रेन मंगवाकर सभी प्रतिमाओं को हटा दिया। इस त्वरित कार्रवाई ने न केवल विवाद को शांत किया, बल्कि धार्मिक सद्भाव को भी कायम रखा।