विकास यादव
वाराणसी, 15 मई 2025, गुरुवार। वाराणसी का पवित्र स्थल सारनाथ, जहां कभी भगवान बुद्ध ने अपने पहले उपदेश से विश्व को ज्ञान का प्रकाश दिया, आज एक नए विवाद के केंद्र में है। शाक्य मुनि की प्रतिमा को हटाए जाने के बाद यहां तनाव बढ़ता जा रहा है। शाक्य मुनि के अनुयायी और संत समाज इस फैसले के खिलाफ लामबंद हो गए हैं, और उनकी मांग है कि प्रतिमा को तत्काल वापस उसी स्थान पर स्थापित किया जाए। यह मुद्दा अब धार्मिक आस्था, ऐतिहासिक महत्व और प्रशासनिक निर्णयों के बीच उलझता नजर आ रहा है।

विवाद की जड़: प्रतिमा क्यों हटाई गई?
सारनाथ में वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) द्वारा स्थापित शाक्य मुनि की प्रतिमा को हाल ही में एक बौद्ध संगठन की शिकायत के बाद हटा दिया गया। यह प्रतिमा पुरातात्विक संग्रहालय के सामने स्थापित थी और इसे वैदिक ऋषि-मुनियों के स्कल्पचर के रूप में देखा जा रहा था। बौद्ध संगठनों, विशेष रूप से सम्राट अशोक बौद्ध महासंघ, ने इसका कड़ा विरोध किया। उनका तर्क था कि सारनाथ भगवान बुद्ध की नगरी है, और यहां बुद्ध से इतर कोई भी प्रतीक स्वीकार्य नहीं है।
बुद्ध पूर्णिमा के दिन माहौल बिगड़ने की आशंका को देखते हुए जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार ने त्वरित कार्रवाई की और वीडीए को प्रतिमा हटाने का निर्देश दिया। क्रेन मंगाकर प्रतिमा को हटाया गया, लेकिन यह कदम शाक्य मुनि के अनुयायियों के लिए अस्वीकार्य साबित हुआ।

अनुयायियों का गुस्सा: आंदोलन की चेतावनी
शाक्य मुनि के अनुयायी इस फैसले से आहत हैं। संत रजनीश मुनि ने कहा, “3500 साल पहले शाक्य मुनि ने सारनाथ में संतों को उपदेश दिया था। उनकी प्रतिमा वर्ल्ड बैंक और वीडीए के सहयोग से स्थापित की गई थी, जो इस स्थल के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती थी। एक शिकायत के आधार पर इसे अचानक हटाना गलत है।” उन्होंने प्रशासन को चेतावनी दी कि यदि प्रतिमा को जल्द पुनः स्थापित नहीं किया गया, तो संत समाज बड़े आंदोलन के लिए बाध्य होगा।
वहीं, सम्राट अशोक बौद्ध महासंघ के अध्यक्ष चित्रप्रभात त्रिशरण, भंते अशोक मित्र, भंते आनंद, भंते हरिहर और डॉ. हरिश्चंद्र अशोक ने एक स्वर में कहा, “सारनाथ बुद्ध की नगरी है। यहां बुद्ध से संबंधित हर चीज का स्वागत है, लेकिन इससे इतर किसी भी कार्य का हम विरोध करेंगे।” संगठन के 40-50 सदस्य पहले ही धरना-प्रदर्शन की तैयारी में थे, जब प्रतिमा को हटाया गया।
प्रशासन पर बढ़ता दबाव
यह विवाद अब धार्मिक और सामाजिक संवेदनशीलता का रूप ले चुका है। शाक्य मुनि के अनुयायियों ने वाराणसी के कमिश्नर एस. राजलिंगम से प्रतिमा को पुनः स्थापित करने की मांग की है। दूसरी ओर, बौद्ध संगठनों का स्पष्ट रुख है कि सारनाथ में केवल बुद्ध से जुड़े प्रतीकों को ही स्थान मिलना चाहिए। प्रशासन के लिए यह स्थिति किसी पतली रस्सी पर चलने जैसी है, जहां दोनों पक्षों की भावनाओं का सम्मान करते हुए समाधान निकालना चुनौतीपूर्ण है।

सारनाथ का ऐतिहासिक महत्व
सारनाथ न केवल बौद्ध धर्म का पवित्र तीर्थ है, बल्कि यह विश्व धरोहर स्थल भी है। यहीं पर भगवान बुद्ध ने धम्मचक्र प्रवर्तन सूत्र के माध्यम से अपने पहले उपदेश दिए थे। शाक्य मुनि, जिन्हें ऐतिहासिक और धार्मिक संदर्भों में महत्वपूर्ण माना जाता है, का इस स्थल से गहरा नाता है। उनकी प्रतिमा को हटाने का फैसला न केवल धार्मिक भावनाओं को प्रभावित कर रहा है, बल्कि सारनाथ के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व पर भी सवाल उठा रहा है।
आगे क्या?
यह विवाद अब एक निर्णायक मोड़ पर है। क्या प्रशासन शाक्य मुनि की प्रतिमा को पुनः स्थापित करेगा, या बौद्ध संगठनों की मांग के आगे झुकेगा? दोनों पक्ष अपनी-अपनी बात पर अडिग हैं, और स्थिति तब तक शांत नहीं होगी, जब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकलता। यह मुद्दा न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित कर सकता है, क्योंकि सारनाथ वैश्विक बौद्ध समुदाय के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है।
सारनाथ की इस पवित्र धरती पर आस्था और इतिहास के बीच उभरता यह तनाव अब सभी की नजरों में है। प्रशासन के अगले कदम और दोनों पक्षों की प्रतिक्रिया इस विवाद के भविष्य को तय करेंगे।