पंजाब में मोदी की जान लेने की कांग्रेसी कोशिश और करतूत
मजबूत मोदी की अवधारणा टूट गयी/ मोदी के लिए काल बनें हैं अमित शाह ?
आचार्य श्री विष्णुगुप्त
अब मुझे नरेन्द्र मोदी पर अपनी अवधारणा पर विचार करना पड़ रहा है। मै नरेन्द्र मोदी को अब भी नायक मानू या न मानू? क्या मैं नरेन्द्र मोदी को अब तक के सबसे कमजोर और धुटनाटेक प्रधानमत्री मानू या न मानू? क्या मैं नरेन्द्र मोदी को संघीय ढ़ाचे की सुरक्षा में विफल होने वाले प्रधानमंत्री के रूप में मानू या न मानू? क्या अमित शाह गृहमंत्री के रूप में मोदी के लिए काल बन गये हैं? क्या शाहीनबाग, तथाकथित किसान आंदोलन और खालिस्ताानियों की हिंसा के खिलाफ अमित शाह की कमजोरी की कीमत मोदी की मजबूत और प्रेरक छबि चुका रही है? कभी मैंने नरेन्द्र मोदी को 21 वीं सदी का महानायक कहा था, कभी मैंने नरेन्द्र मोदी को देश का सबसे निडर प्रधानमंत्री कहा था। धारा 370 हटाने और फिर से केन्द्रीय चुनाव जीतने पर मैंने नरेन्द्र मोदी को महान और प्रतापी शासक की पदवी दी थी। मैने नरेन्द्र मोदी पर एक पुस्तक लिखी थी। पुस्तक का नाम है- नरेन्द्र मोदी 21 वीं सदी का महानायक। लेकिन पंजाब की घटना को देखते हुए नरेन्द्र मोदी के प्रति मेरी अवधारणाएं टूट रही हैं।
मैं 1971 से भारतीय प्रधानमंत्रियों की दृढ़ता और कमजोरी को देख रहा हूूं। यानी की भारतीय राजनीति पर मेरी दृष्टि 1971 से है। उस काल में इन्दिरा गांधी की दृढ़ता इतनी तेज और उबाल वाली होती थी कि उनके खिलाफ कोई बोल नहीं सकता था, बोलने वाले मारे जाते थे या फिर उनकी अकाल मृत्यु होती थी। कहने का अर्थ यह है कि इन्दिरा गांधी एक तरह से अधिनायक थी और इन्दिरा गांधी की अधिनायक की करतूत देश ने आपतकाल के तौर पर झेली थी।
आपातकाल में इन्दिरा गाधी जब फिर से सत्ता में आयी तो उनके सामने अकाली दल और कम्युनिस्ट तन कर खड़े थे। पंजाब में अकाली दल के लोगों को कमजोर करने के लिए इन्दिरा गांधी ने जनरैल सिंह भिंडरावाले को खड़ा किया जबकि पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्टों को सबक सिखाने के लिए गौरखालैंड जैसे हथकडे अपनायी थी। फिर भी इन्दिरा गाधी जब तक प्रधनमंत्री रही तब तक उनके खिलाफ विरोधी राज्य सरकारों ने सीमा रेखा पार नही की थीं। इसी तरह इन्दिरा गाधी-राजीव गांधी के समय भी एनटी रामाराव का आध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। एनटी रामाराव के खिलाफ इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी ने कैसी अलोकतात्रिक हथकंडे अपनाय थे, यह भी जगजाहिर है। फिर भी एनटी रामाराव राजीव गांधी के खिलाफ लक्ष्मण रेखा पार नहीं की थी।
इसी तरह ज्योति बसु ने भी राजीव गांधी या पीवी नरसिहराव के खिलाफ कोई लक्ष्मण रेखा पार नहीं की थी। असम में असम गण परिषद की सरकार रही फिर भी असम गण परिषद ने लक्ष्मण रेखा पार नहीं की थी।
भारतीय राजनीति के इतिहास में मनमोहन सिंह सबसे कमजोर और मोहरा प्रधानमंत्री माने जाते रहे हैं फिर भी कांग्रेस की विरोधी राज्य सरकारें लक्ष्मण रेखा पार नहीं करती थी।
अगर हम उपर्युक्त उदाहरणों की कसौटी पर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तुलना करते हैं तब बहुत ही निराशा होती है, हताशा होती है और संघीय भारत की संप्रभुत्ता और सुरक्षा को लेकर चिंता पसरती है। अभी-अभी पजाब में नरेन्द्र मोदी के साथ जो कुछ भी हुआ, जिस तरह से उनकी यात्रा रूकवाने की साजिश की गयी और जिस तरह से उनकी जान को खतरे में डाला गया था उसके सदेश बहुत ही जहरीला है, खतरनाक है और भारत की संप्रभुत्ता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा होता है।
सघीय भारत की पहली घटना है जिसमें सीधे तौर पर प्रधानमंत्री को निशाना बनाया गया, उनके सरकारी कार्यक्रम को रोका गया और उनकी जान पर संकट खड़ा किया गया। पंजाब सरकार का कोई भी स्पष्टीकरण हो पर यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की गोपनीय सड़क मार्ग की यात्रा की गोपनीयता को भंग की गयी और देश विरोधी तत्वों को उकसाया गया। लाॅडीस्पीकार पर प्रचार कर हिंसक द्रोहियों को एकत्रित किया गया। यह सब पंजाब पुलिस के अधीन में हुआ। पजाब पुलिस रास्ता रोकने वाले हिंसक द्रोहियों को रोक नहीं रही थी। पंजाब पुलिस तो हिंसक द्रोहियों के साथ चाय पी रही थी। हिंसक द्रोहियों की पंजाब पुलिस सहचर थी।
साजिश कितनी बड़ी थी और नरेन्द्र मोदी की जान पर कितना बड़ा खतरा उत्पन्न हुआ था उसका अदाजा तो नरेन्द्र मोदी का बयान ही है। नरेंन्द्र मोदी ने पंजाब के अधिकारियों से साफ कहा कि मै जिंदा एयरपोर्ट तक पहुंच गया, इसके लिए सीएम को थैंक्स कहना। मोदी ऐसा कहने के लिए बाध्य क्यों हुए। क्योंकि हिंसक द्रोही मोदी तक पहुच गये थे। प्रधानमंत्री की सुरक्षा करने वाला सुरक्षा बल एसपीजी ने सुझबूझ दिखायी और उसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जान पर सकट का अहसास हुआ। एसपीजी का निर्णय बहुत ही सटीक था। एसपीजी ने प्रधानमंत्री की यात्रा टालने की ही नीति बनायी और किसी तरह हिंसक द्रोहियों की चपेट में आने से पहले ही प्रधानमंत्री मोदी को सुरक्षित एयरपोर्ट पर ले आयी। इस दौरान एसपीजी को पंजाब पुलिस का अपेक्षित सहयोग नहीं मिला। अब पंजाब की सरकार बहानेबाजी की शुरूआत करेगी। पर सारी परिस्थितियां यही कहती हैं कि पंजाब की पुलिस राजनीतिक दबावों के कारण प्रधानमंत्री की जान को खतरे में डाली थी। काग्रेस के एक बड़े नेता इमरान मसूद ने मोदी की बोटी-बोटी काटकर फेंकने की घोषणा की थी। इसलिए कांग्रेसी राज में मोदी के साथ हुई घटना की प्रदूषित मानसिकता समझी जा सकती है।
पजाब से पूर्व पश्चिम बंगाल में भी प्रधानमंत्री मोदी के साथ सुरक्षा की चूक हुई थी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी किस तरह से प्रधानमंत्री के खिलाफ अमार्यादित टिप्पणियां करती हैं और नरेन्द्र मोदी की सरकारी यात्राआंें में भी आगवानी करने से इनकार कर देती है यह भी जगजाहिर है। जबकि प्रोटोकाॅल के अनुसार प्रधानमंत्री के सरकारी कार्यक्रम में आने पर मुख्यमंत्री द्वारा आगवानी करना अनिवार्य है।
नरेन्द्र मोदी की जान पर कोई पहली बार खतरा नहीं आया है। कभी बिहार में इसी तरह की साजिश हुई थी, बिहार में पंजाब की तरह ही नरेन्द्र मोदी की जान लेने की कोशिश हुई थी। इसमें नीतीश कुमार गुनहगार और खलनायक बने थे। उस समय नीतीश कुमार भी पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी की भाषा बोले थे। पटना के गांधी मैदान में जनसभा को मोदी संबोधित करने वाले थे। मोदी उस समय भाजपा के तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे। नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने पर भाजपा को लात मारकर नीतीश कुमार एनडीए से बाहर आ गये थे। उस काल में नीतीश कुमार मोदी के खिलाफ आग उगलते थे। मोदी के सबोधन के पूर्व ही पटना के गांधी मैदान में सीरियल बम विस्फोट हुए थे और कई जानें गयी थी। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि कई दर्जन लोग सीरियल बम विस्फोट में घायल हो गये थे। उस समय सीरियल बम विस्फोट के लिए नीतीश कुमार की सरकार को जिम्मेदार माना गया था। नीतीश कुमार की सरकार ने यह जानते हुए कि नरेन्द्र मोदी की जान का खतरा है फिर भी सुरक्षा की चाकचैबंद व्यवस्था नहीं की थी। उस समय भाजपा के एक बड़े समूह में यह चर्चा होती थी कि प्रधानमंत्री बनने से पहले ही मोदी का काम तमाम करने की व्यवस्था नीतीश कुमार ने करायी थी पर भाग्य भरोसे मोदी बच गये थे।
मोदी की राजनीति देखिये। जिस नीतीश कुमार की सरकार की साजिश से उनकी जान जाने वाली थी उसी नीतीश कुमार के साथ फिर से राजनीतिक गठजोड़ कर लिया। बिहार में भाजपा और नीतीश कुमार फिर से साथ-साथ हो लिये। पिछले विधानसभा चुनाव में कम सीट आने पर भी नीतीश कुमार को मुख्यमत्री बनाया गया। अगर नरेन्द्र मोदी की जगह कोई दूसरा व्यक्ति होता तो फिर प्रधानमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार से कभी भी समझौता नहीं करता, लाख मजबूरी होती फिर भी वह नीतीश कुमार को माफ नहीं करता। नीतीश कुमार को सबक जरूर सीखाता। पर मोदी के लिए नीतीश कुमार तो आईकाॅन बन गये।
जब कोई प्रधानमंत्री कमजोर होता है, उनमें संघीय शासन की मजबूती का अभाव होता है तब राज्य सरकारें बेलगाम हो जाती हैं। अगर कोई राज्य सरकार सीधे तौर पर प्रधानमंत्री को आंख दिखाती है और अमार्यादित टिप्पणियां करती है, प्रधानमंत्री की जान लेने की साजिश करती है, संघीय ढाचे के खिलाफ आचरण करती है तो फिर उस राज्य सरकार पर त्वरित और सबककारी कार्रवाई करनी जरूरी है। केन्द्रीय सरकार के पास ऐसी स्थिति में राष्टपति शासन लगाने का अधिकार है जिसका प्र्रयोग किया जाना चाहिएं। विरोधी राज्य सरकारें बेलगाम होती रही हैं और केन्द्रीय सरकार को आख भी दिखा रही हैं, इतना ही नहीं बल्कि केन्द्रीय मंत्रियों तक की गिरफ्तारी राज्य सरकारें करा रही है। महाराष्ट में भी उद्धव ठाकरे की सरकार ने केन्द्रीय मेंत्री को गिरफ्तार कराने का काम किया था। फिर भी नरेन्द्र मोदी की वीरता नही जगी थी। नरेन्द्र मोदी भी अपनी पार्टी के नेता स्व अटल बिहारी वाजपेयी की कमजोर नीति का अनुशरण कर रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भी केन्द्रीय मंत्रियों की गिरफ्तारी तमिलनाडु में हुई थी और उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मुकदर्शक बने हुए थें। नरेन्द्र मोदी के खिलाफ इनके ही राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कैसी भाषा का प्रयोग कर आलोचना की थी, यह भी जगजाहिर है।
जनमानस की समझ है कि शाहीनबाग पर मोदी का मूकदर्शन बना रहना घातक था। शाहीनबाग की देखा-देखी किसानों के वेश में अराजक तत्वों ने सड़क घेरने की नीति अपनायी। 26 जनवरी की घटना के समय ही तेंज और सबककारी कार्रवाई होती तो फिर तथाकथित किसान आदोलन की हवा निकल जाती। खालिस्तानियों को सबक मिल जाता, देश का जनमानस भी इनके खिलाफ था। लेकिन इन सभी विफलताएं अमित शाह के खाते में जाती हैं।
गृहमंत्री के रूप में अमित शाह पर शाहीनबाग या फिर किसानों के रूप में खालिस्तानियों पर कार्रवाई करने की जिम्मेदारी थी। अमित शाह की अकर्मण्यताएं मोदी की कमजोर छबि बनायी है। बहुत सारे लोग यह मानते हैं कि अमित शाह मोदी के लिए काल बन गये हैं। इन सभी कमजोरियों का संदेश यह गया कि नरेन्द्र मोदी पर अमार्यादित टिप्पणी करो, उस पर पत्थर मारो या फिर उनकी जान लेने की कोशिश करो, फिर भी सबककारी सजा नहीं मिलेगी। ऐसी धारणा की ही परिणति पंजाब में नरेन्द्र मोदी के साथ घटी घटना है। लेकिन सबसे बड़ी चिंता भारत की एकता और अखंडता की है। अगर ऐसी ही छूट राज्य सरकारों को मिलती रही तो फिर भारत की एकता और अखडता के लिए खतरा होगा |