वाराणसी, 10 अगस्त 2025। सावन की पूर्णिमा पर काशी विश्वनाथ धाम में एक अनूठा दृश्य देखने को मिला। नंगे पांव, माथे पर चंदन-त्रिपुंड, हाथ जोड़े, आस्था से ओतप्रोत हृदय और बुदबुदाते होंठों के साथ 16 ISRO वैज्ञानिकों का दल बाबा विश्वनाथ के चरणों में नतमस्तक हुआ। यह वही वैज्ञानिक थे, जिन्होंने चंद्रयान-3 की अभूतपूर्व सफलता से भारत का मान अंतरिक्ष में बढ़ाया।
विज्ञान और आध्यात्म का यह अनोखा संगम तब और गहरा हुआ, जब वैज्ञानिकों ने बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बाद भगवान अविमुक्तेश्वर का रुद्राभिषेक किया। इस दौरान चंद्रयान-3 की एक खास प्रतिकृति भगवान चंद्रमौलिश्वर के चरणों में अर्पित की गई। वैज्ञानिकों ने कहा, “हमारे धर्मग्रंथ विज्ञान को प्रेरणा देते हैं। सनातन धर्म ही ऐसा है, जो शोध को बढ़ावा देता है और नए सिद्धांतों को खुले मन से स्वीकार करता है।”
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्व भूषण मिश्र ने बताया कि चंद्रयान की यह प्रतिकृति अनमोल है और इसे मंदिर के प्रस्तावित संग्रहालय में संरक्षित किया जाएगा। उन्होंने कहा, “शास्त्रों में चंद्र को धारण करने वाले महादेव को सोमनाथ और चंद्रमौलिश्वर जैसे नामों से जाना जाता है। चंद्र दर्शन को भगवान शिव के साक्षात दर्शन का प्रतीक माना जाता है।”
वैज्ञानिकों ने धर्म, अध्यात्म और विज्ञान के गहरे रिश्तों पर चर्चा की। इस दल में ह्यूमन स्पेस सेंटर के निदेशक दिनेश कुमार सिंह, मास्टर कंट्रोल फेसिलिटी के निदेशक पंकज किल्लेदार, यूआर राव सैटेलाइट सेंटर के एसोसिएट निदेशक आर नादागौड़ा, लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर के उप निदेशक के शांबाय्य सहित अन्य वैज्ञानिक शामिल थे।
यह पल न केवल काशी की आध्यात्मिक नगरी में गूंजा, बल्कि यह संदेश भी दिया कि विज्ञान और आस्था एक-दूसरे के पूरक हैं।