नई दिल्ली, 16 जून 2025, सोमवार। केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ED) एक बार फिर विवादों के घेरे में है। इस बार मामला इतना गंभीर है कि सुप्रीम कोर्ट के वकील और ED आमने-सामने आ गए हैं। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड्स एसोसिएशन (SCAORA) ने ED की एक कार्रवाई को न सिर्फ अनुचित ठहराया है, बल्कि इसे कानून के शासन और वकीलों की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया है। आखिर क्या है यह मामला, जो कानूनी हलकों में तूफान खड़ा कर रहा है?
वरिष्ठ वकील को ED का समन: शुरू हुआ विवाद
हाल ही में ED ने सुप्रीम कोर्ट के प्रख्यात वकील अरविंद दातार को एक समन जारी किया। इस कदम ने कानूनी बिरादरी में हलचल मचा दी। SCAORA ने तुरंत इस कार्रवाई पर कड़ा ऐतराज जताया और 16 जून को एक बयान जारी कर ED के इरादों पर सवाल उठाए। मानद सचिव निखिल जैन के हस्ताक्षरित इस बयान में ED की इस हरकत को “जांच के दायरे से बाहर” और “कानूनी पेशे के लिए खतरा” बताया गया।
SCAORA का कहना है कि यह कार्रवाई न केवल अनुचित है, बल्कि यह कानूनी सलाह को आपराधिक साजिश के तौर पर पेश करने की कोशिश है, जो संवैधानिक रूप से गलत और खतरनाक है। बयान में यह भी कहा गया कि ऐसी कार्रवाइयां वकीलों की स्वतंत्रता और नागरिकों के बिना डर के कानूनी सलाह लेने के अधिकार को कमजोर करती हैं।
क्यों है अरविंद दातार का नाम सुर्खियों में?
अरविंद दातार सुप्रीम कोर्ट के उन चुनिंदा वकीलों में से हैं, जिनकी ईमानदारी और पेशेवर नैतिकता पर कभी सवाल नहीं उठा। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, SCAORA ने दातार की साख का हवाला देते हुए कहा, “उन्होंने हमेशा कानूनी नैतिकता के उच्चतम मानकों का पालन किया है।” फिर ED ने उन्हें क्यों निशाना बनाया?
दरअसल, यह मामला रेलिगेयर एंटरप्राइजेज की पूर्व चेयरपर्सन रश्मि सलूजा को दी गई कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना (ESOP) से जुड़ा है। दातार ने इस मामले में सलूजा को कानूनी सलाह दी थी। ED और भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDA) इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्या 2.27 करोड़ से ज्यादा ESOP, जिनकी कीमत 250 करोड़ रुपये से अधिक है, विनियामक नियमों का उल्लंघन या वित्तीय अनियमितता का हिस्सा हैं।
ED की कार्रवाई पर क्यों उठे सवाल?
SCAORA ने अपने बयान में ED की मंशा पर गहरी चिंता जताई। उनका कहना है कि इस तरह की कार्रवाइयां न केवल वकीलों को डराने का काम करती हैं, बल्कि यह हर नागरिक के संवैधानिक अधिकार—बिना किसी डर के कानूनी सलाह लेने—को भी खतरे में डालती हैं। बयान में जोर देकर कहा गया, “न्यायपालिका और बार की स्वतंत्रता हमारे लोकतंत्र के दो मजबूत स्तंभ हैं। अगर वकील बिना डर के काम नहीं कर सकते, तो अदालतों का प्रभावी संचालन असंभव है।”
ED को लेना पड़ा कदम पीछे
SCAORA के कड़े विरोध और कानूनी बिरादरी के दबाव के बाद ED को आखिरकार दातार को जारी समन वापस लेना पड़ा। लेकिन यह घटना एक बड़े सवाल को जन्म देती है—क्या जांच एजेंसियां अपनी शक्ति का मनमाना इस्तेमाल कर रही हैं? SCAORA ने इसे “कार्यकारी शक्ति का दुरुपयोग” करार देते हुए इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया।
क्या है इस टकराव का असल मकसद?
यह विवाद सिर्फ एक समन का नहीं, बल्कि कानूनी पेशे की स्वतंत्रता और नागरिकों के अधिकारों का है। ED की कार्रवाई को कानूनी हलकों में एक खतरनाक मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है, जो भविष्य में वकीलों को अपने क्लाइंट्स के लिए बेझिझक काम करने से रोक सकती है। SCAORA ने इसे “कानूनी समुदाय के लिए भयावह संदेश” करार दिया है।
आगे क्या?
हालांकि ED ने समन वापस ले लिया है, लेकिन यह मामला यहीं खत्म नहीं होता। यह घटना जांच एजेंसियों की कार्यशैली और उनकी जवाबदेही पर सवाल उठाती है। क्या यह कार्रवाई वाकई जांच का हिस्सा थी, या इसके पीछे कोई और मकसद था? यह सवाल कानूनी और लोकतांत्रिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है।
इस टकराव ने एक बार फिर साबित कर दिया कि जब बात कानून के शासन और स्वतंत्रता की आती है, तो सुप्रीम कोर्ट के वकील पीछे नहीं हटते। यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई है—क्या यह एक नई शुरुआत है?