N/A
Total Visitor
30.3 C
Delhi
Monday, June 23, 2025

गांधी का विरोधी था चर्चिल

नरेन्द्र भदौरिया

विस्टन लियोनार्ड स्पेन्सर चर्चिल यह दुनिया के इतिहास का एक बड़ा नाम है। चर्चिल दो बार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे। दूसरे विश्वयुद्ध (1940-45) के समय ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री रहे। ब्रिटेन की सेना में लम्बे समय तक काम किया। पहले विश्वयुद्ध (28 जुलाई, 1914-11 नवम्बर 1918) के समय 22 महीने भारत में रहे। चर्चिल भारत के प्रति सदा घृणास्पद विचार रखता था। वह मानता था कि भारत को एक राष्ट्र कहना ठीक नहीं है। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जब भारत की सेना ब्रिटेन का साथ दे रही थी, तब उसने भारत के किसानों से बल पूर्वक अन्न की उगाही करा ली थी। जिससे डेढ़ करोड़ लोग अकाल और भुखमरी से मर गये थे। भारत के नेताओं को वह कटु शब्दों का प्रयोग करके अपने विचार रखता था। महात्मा गांधी को भूखा-नंगा आदमी कहता था। चर्चिल को साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। अमेरिका ने चर्चिल को मानद नागरिकता दी थी। वस्तुत: चर्चिल ने ब्रिटेन और अमेरिका के राजनीतिक नेतृत्व पर अपनी धाक जमाने में सफलता पा ली थी। 1945 में जब चर्चिल की कंजरवेटिव पार्टी ब्रिटेन में चुनाव हारी तो उसे लीडर आफ अपोजीशन बनने का अवसर मिला। 1886 में वह मुम्बई में रहे। जहां सेना के एक अधिकारी के रूप में वह स्थानांतरित होकर आये थे।
भारत को स्वतन्त्रता दिलाने के लिए महात्मा गांधी ने जब असहयोग आंदोलन चलाया तो चर्चिल ने गांधी जी के खिलाफ बहुत अपमान जनक वक्तव्य दिया था। इस आन्दोलन को विद्रोह कहा था। यह भी कहा था कि मोहनदास करमचन्द अगर अनशन करके अपनी जान देना चाहें तो मरने देना चाहिए। विस्टन चर्चिल भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन का कटु आलोचक था। उसका कहना था कि भारत के लोग असभ्य हैं। भारतीय इसलिए बने हैं कि उन पर कोई दूसरा राज करे और व्हाइट लोगों पर यह भार है कि भारत के प्रति राज करने की अपनी ड्यूटी पूरी करें। यह हमारा कर्तव्य है कि हम उन पर कठोरता से राज करें।
भारत के गरीबों, अनुसूचित जाति के लोगों, पिछड़ों, आदिवासियों के प्रति चर्चिल का विचार था कि इन सब को धर्मान्तरित करके ईसाई बनाया जाना चाहिए। चर्चिल ने कहा था- इन्हें ईश्वर के घर में प्रवेश कराओ, यही इनकी नियति है।
भारत को स्वतन्त्रता मिलने के समय क्लेमेण्ट ऐटली ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे। उस समय लेबर पार्टी की सरकार थी। विपक्ष के नेता के नाते चर्चिल ने स्वतन्त्रता के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने भारतीय राजनीतिज्ञों के लिए कहा था कि यह सब आवारा, दुष्ट और लुटेरे हैं, जो स्वतन्त्रता मिलने पर राज करेंगे। वहाँ डकैतियां पड़ेंगी। पूरा देश लूट का अड्डा बन जाएगा। राज करने के नाम पर लूटपाट शुरू होगी। भ्रष्टाचार होगा। काला धन इकट्ठा होगा। अपराधी मौज करेंगे। पूरा देश छिन्न-भिन्न होगा। अनेक टुकड़ों में बंट जाएगा। कोई किसी पर विश्वास नहीं करेगा।
भारत के विभाजन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए विस्टन चर्चिल ने कहा था- भारत और पाकिस्तान परस्पर लड़ते रहेंगे। इस तरह भारत के ही दो खण्ड एक दूसरे का विनाश करने पर तुले रहेंगे। चर्चिल ने गांधी जी की तुलना में पंडित जवाहर ताल नेहरू को अच्छा माना था। उसने कहा था कि यह सही है कि नेहरू उन ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व करेगा जो सैकड़ों वर्षों से भारतीय समाज को मूर्ख बनाते आये हैं। लेकिन यह ब्रिटेन के हित में सदा काम करेगा। इसलिए नेहरू को गांधी से अधिक महत्व देना होगा। नेहरू को बढ़ावा देने में ब्रिटेन का भला होगा। चर्चिल की यह गालियां इतिहास में अंकित हैं। भारतीय समाज के प्रति इस कपटी विचारक, घृणा फैलाने वाले लेखक की अवधारणाएं बहुत अनुचित थीं फिर भी नेहरू सरकार चर्चिल की प्रशंसक बनी रही। भारत के प्रति चर्चिल के घृणास्पद विचार उसके 1930 से लेकर 1947 तक के भाषणों में देखने को मिलते हैं।
चर्चिल यदि उस समय प्रधानमंत्री रहा होता तो निश्चित रूप से भारत को स्वतन्त्रता नहीं मिलने देता। स्वतन्त्रता के आन्दोलन को कुचलने में कोई कसर न छोड़ता। भारत के हिन्दू समाज के प्रति उसके विचार बहुत निन्दनीय थे। समाज के बड़े वर्ग को धर्मान्तरित कराने का प्रयत्न करने पर वह बहुत जोर देता था। नेहरू के नेतृत्व में भारत जब स्वतन्त्रता हुआ तो ईसाई मिशनरियों को हिन्दुओं के मतान्तरण के लिए खुली छूट दी गयी। नेहरू ने ऐसा चर्चिल की बातों को नीति नियामक मानकर स्वीकार किया था। जबकि गांधी जी का मानना था कि मिशनरियों को भारत से चले जाना चाहिए। भारत के निर्बल वर्ग का मतान्तरण कराये जाने का विरोध गांधी जी ने किया था। पर नेहरू ने उनकी नहीं सुनी। ईसाई मिशनरियों ने नेहरू से साठगांठ करके 1947 के बाद हिन्दु जनसंख्या का मतान्तरण करने की योजना पर बड़ी तेजी से काम शुरू किया था। मिशनरियों का यह संजाल दिन-प्रतिदिन सुदृढ़ होता गया। नेहरू के बाद इन्दिरा फिर राजीव और उनके बाद सोनिया गांधी की सम्मति और सहयोग से ईसाई मिशनरियों ने भारत में 10 करोड़ से अधिक हिन्दुओं को ईसाई बना डाला।
यह षडयंत्र स्वतन्त्रता मिलने के बाद ब्रिटेन ने ईसाई मिशनरियों को आगे करके योजनाबद्ध रीति से भारत के हिन्दु समाज को अशक्त बनाया। यही कारण है कि भारत में ईसाई जनसंख्या जो स्वतन्त्रता मिलने के समय केवल 76 लाख थी, आज बढ़कर 10 करोड़ से अधिक हो गयी है। साढ़े चार करोड़ से अधिक कृप्टो किश्चियन हैं। अर्थात जो अपना नाम पूर्ववर्ती ही बनाये रखते हैं। लेकिन धर्म बदल लेते हैं। मतान्तरण के कारण ईसाई जनसंख्या भारत में पनपी है। कई राज्यों में ईसाई जनसंख्या सत्ता पर हावी है। इनमें पूर्वात्तर भारत के राज्य विशेष रूप से गिनाये जा सकते हैं।
चर्चिल कहता था कि जैसे जर्मनी में यहूदियों के प्रति गुलामों जैसा बर्ताव हुआ। अमेरिका में रेड इण्डियंश पर राज्य किया गया। वैसा ही व्यवहार भारत में हिन्दुओं के साथ किया जाना चाहिए। उन पर गोरों का शासन बना रहना चाहिए।
नेहरू समर्थक कांग्रेस नेताओं का मानना है कि चर्चिल ने अपने देश और समाज के प्रति आदर और गर्व की भावना रखने के साथ भारतीयों को यह गालियां दी थीं। वह अपने देश के पक्ष का बचाव कर रहा था। विश्व स्तर पर जिसे एक महान हस्ती कहा गया हो वह भारत के करोड़ों लोगों के प्रति कितनी दुर्भावना रखता था। यह बात क्या अपने आप में सराहनीय कही जा सकती है। वस्तुत: जिसे ब्रिटेन के लोग और उसके भारतीय समर्थक महान कहते आ रहे हैं, उसे इस बात पर कभी लज्जा नहीं आयी कि संसार में सबसे समृद्ध भारत में लूटपाट करने वाले मुसलिम और ईसाई थे। मुगलों का काल समाप्त होने के बाद ब्रिटिश शासकों ने क्रूरता की सभी सीमाएं लांघते हुए भारत को हर प्रकार से निर्बल और निरीह बना डाला था।
जाति और रंग भेद के आधार पर विभेद की बात करने वाला चर्चिल महान कैसे हो सकता है। स्वतन्त्रता भारतीयों का जन्मसिद्ध अधिकार है। कोई समाज यहां तक की पशु-पक्षी भी दास बनकर नहीं रहना चाहते। फिर भारत तो मूर्धा और ज्ञान की दृष्टि से सम्पूर्ण पृथ्वी का जगमगाता देश रहा है। हर क्षेत्र में समृद्धि यहाँ की पहचान थी। यह अलग बात है कि 1947 में एक ऐसे व्यक्ति के हाथों में गांधी जी ने नेतृत्व सौंप दिया, जिसकी श्रद्धा न तो हिन्दु धर्म थी और न ही भारत की उत्कृष्ट संस्कृति में उसका कोई विश्वास था।
स्वतन्त्रता के आन्दोलन के प्रति दुर्भावना रखना या भारतीय राजनीतिज्ञों को आवारा, दुष्ट और लुटेरा कहना चर्चिल की विकृत मानसिकता का द्योतक था। चर्चिल भले ही ब्रिटेन के लिए आदरणीय रहा हो। पर उसके वक्तव्यों के लिए ब्रिटेन के लोगों को भारत के सवा अरब लोगों से क्षमा याचना करनी चाहिए। भारत के लोगों ने यह दिखा दिया है कि वह अपने महान लोकतन्त्र के न केवल संरक्षक हैं। अपितु न्याय और तर्क संगत तरीके से शासन चलाना भी जानते हैं। आज भारत दुनिया की एक महाशक्ति बनकर उभरा है। एक बड़ा उपभोक्ता बाजार होने के साथ संसार को अनेक वस्तुओं का निर्यात करने में सक्षम है। चर्चिल जिन्दा होता तो उसे अपनी कही गयी बातों के लिए शर्मिन्दगी होती। चर्चिल का जन्म 30 नवम्बर 1874 को हुआ था। उसकी मृत्यु 24 जनवरी, 1965 को हुई। 1940 से 1945 और फिर 1951 से 1955 तक दो बार वह ब्रिटेन का प्रधानमन्त्री रहा।

Advertisement

spot_img

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

2,300FansLike
9,694FollowersFollow
19,500SubscribersSubscribe

Advertisement Section

- Advertisement -spot_imgspot_imgspot_img

Latest Articles

Translate »