पटना, 27 जुलाई 2025: बिहार की सियासत में इन दिनों एक नया तूफान उठ रहा है, और इसके केंद्र में हैं केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान। एनडीए का हिस्सा होने के बावजूद चिराग के तीखे तेवर और बिहार की नीतीश सरकार पर लगातार हमले हर किसी को हैरान कर रहे हैं। आखिर चिराग पासवान का मकसद क्या है? क्या यह उनकी सियासी चाल है या बिहार में अपनी पार्टी को मजबूत करने का मास्टर प्लान? आइए, इस सियासी ड्रामे को करीब से समझते हैं।
नीतीश सरकार पर चिराग का वार
चिराग पासवान ने हाल के दिनों में बिहार की कानून-व्यवस्था को लेकर नीतीश सरकार पर कई बार निशाना साधा है। पटना में मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, “राज्य में अपराध की घटनाएं एक सिलसिला बन चुकी हैं। प्रशासन अपराधियों के सामने पूरी तरह नतमस्तक नजर आ रहा है।” चिराग ने यह भी जोड़ा कि भले ही कुछ मामलों में कार्रवाई हुई हो, लेकिन सवाल यह है कि ऐसी घटनाएं बार-बार क्यों हो रही हैं? उनके मुताबिक, अगर यही हाल रहा तो बिहार के लिए भविष्य में हालात और भयावह हो सकते हैं।
चिराग के ये बयान सिर्फ नीतीश सरकार के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे एनडीए गठबंधन के लिए असहज करने वाले हैं। आखिर कोई नेता अपनी ही गठबंधन सरकार पर इस तरह सवाल क्यों उठाएगा?
तेजस्वी का तंज: “कुर्सी से प्यार है”
चिराग के बयानों पर विपक्ष भी चुप नहीं रहा। राजद नेता तेजस्वी यादव ने चिराग पर तंज कसते हुए कहा, “चिराग पासवान भी सरकार का हिस्सा हैं। उनके पास पांच सांसद हैं, वह केंद्रीय मंत्री हैं, फिर खुद को कमजोर क्यों बता रहे हैं? अगर बिहार में अपराध बढ़ रहा है, महिलाओं के खिलाफ अत्याचार हो रहा है, तो वह उस गठबंधन में क्यों हैं? यह दिखाता है कि उन्हें कुर्सी से प्यार है।” तेजस्वी का यह बयान चिराग के लिए एक बड़ा सियासी हमला है, जो उनकी मंशा पर सवाल उठाता है।
चिराग का बिहार प्लान: रणनीति या दबाव की राजनीति?
बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं, और चिराग पासवान की हरकतें इसे देखते हुए एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा लग रही हैं। उनकी पार्टी के पास वर्तमान में बिहार विधानसभा में एक भी सीट नहीं है। ऐसे में चिराग का बार-बार कानून-व्यवस्था का मुद्दा उठाना और नीतीश सरकार को कठघरे में खड़ा करना उनकी पार्टी को मजबूत करने की दिशा में एक कदम हो सकता है।
कुछ राजनीतिक विश्लेषक इसे “दबाव की राजनीति” के तौर पर देख रहे हैं। चिराग शायद एनडीए के भीतर अपनी पार्टी की स्थिति को और मजबूत करना चाहते हैं। उन्होंने पहले भी कहा था कि उनका लक्ष्य लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को बिहार में ज्यादा से ज्यादा सीटों वाली पार्टी बनाना है। क्या चिराग का यह आक्रामक रुख नीतीश कुमार पर दबाव बनाकर गठबंधन में ज्यादा सीटें हासिल करने की रणनीति है? या फिर वह बिहार की जनता के बीच अपनी छवि को एक मजबूत, निष्पक्ष और बेबाक नेता के रूप में स्थापित करना चाहते हैं?
क्या कहती है बिहार की सियासत?
चिराग पासवान की यह रणनीति जोखिम भरी भी हो सकती है। एक तरफ, वह एनडीए के साथी हैं और नीतीश कुमार की सरकार में शामिल हैं। दूसरी तरफ, उनके बयान गठबंधन की एकता पर सवाल उठा रहे हैं। अगर चिराग का यह दांव काम कर गया, तो वह बिहार की जनता के बीच अपनी पार्टी को एक मजबूत विकल्प के रूप में पेश कर सकते हैं। लेकिन अगर यह रणनीति उलटी पड़ी, तो एनडीए के भीतर उनकी स्थिति कमजोर हो सकती है।
आगे क्या?
बिहार की सियासत में चिराग पासवान का यह नया अवतार निश्चित रूप से चर्चा का विषय बना हुआ है। क्या वह अपनी पार्टी को बिहार में एक बड़ी ताकत बनाएंगे? क्या उनकी यह रणनीति उन्हें विधानसभा चुनाव में फायदा पहुंचाएगी? या फिर यह सिर्फ सियासी शोर है, जो समय के साथ ठंडा पड़ जाएगा? इन सवालों का जवाब तो वक्त ही देगा, लेकिन इतना तय है कि चिराग पासवान की चाल ने बिहार की सियासत में हलचल मचा दी है।
अब देखना यह है कि क्या चिराग का यह “बिहार प्लान” उन्हें सियासी मैदान में नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा, या फिर यह एक जोखिम भरा दांव साबित होगा। बिहार की जनता और सियासी पंडितों की नजरें अब चिराग के अगले कदम पर टिकी हैं।