देहरादून, 8 अप्रैल 2025, मंगलवार। देहरादून की हरी-भरी वादियों में एक नई शुरुआत हुई। भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने यहाँ दो दिवसीय ‘चिंतन शिविर 2025’ का सोमवार को शुभारंभ किया, जो सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि देश के हर कोने तक समानता और सम्मान पहुँचाने का एक संकल्प है। यह मंच केंद्र और राज्यों को एक साथ लाया, ताकि उपेक्षित समुदायों के लिए नीतियाँ मज़बूत हों, कल्याण योजनाएँ बेहतर हों और सामाजिक न्याय का सपना साकार हो।

उद्घाटन का भव्य माहौल
हिमालय की गोद में बसे देहरादून में यह चिंतन शिविर केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार के हाथों शुरू हुआ। उनके साथ राज्य मंत्री रामदास अठावले, बी.एल. वर्मा और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मौके को खास बनाया। देश भर से 23 राज्यों के सामाजिक न्याय विभाग के मंत्रियों ने भी शिरकत की।

उद्घाटन सत्र में डॉ. वीरेंद्र कुमार ने जोश भरे शब्दों में कहा, “सामाजिक समानता के बिना देश की तरक्की अधूरी है। यह शिविर सिर्फ समीक्षा का मंच नहीं, बल्कि विचारों का सृजन और ‘विकसित भारत’ के लिए हमारी प्रतिबद्धता को परखने का ज़रिया है। हमारा लक्ष्य हर नागरिक को आगे बढ़ने का बराबर मौका देना है—चाहे वह किसी भी जाति, लिंग या पृष्ठभूमि से हो।” उन्होंने आगे कहा, “कल्याण से सशक्तिकरण तक का सफर हमारी साझा ज़िम्मेदारी है। यहाँ हम खुद से सवाल करेंगे—हम कहाँ हैं और हमें कहाँ पहुँचना है।”
देश भर से जुटी आवाज़ें
इस शिविर में आंध्र प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल, असम से केरल, और दिल्ली से पुडुचेरी तक—हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के प्रतिनिधि शामिल हुए। यह एक ऐसा मंच बना, जहाँ अलग-अलग क्षेत्रों की चुनौतियाँ और समाधान एक साथ सामने आए।

पहले दिन की चर्चा: चार मज़बूत स्तंभ
शिविर के पहले दिन चार बड़े मुद्दों पर गहन विचार-मंथन हुआ—शिक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक संरक्षण और सुगम्यता। दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (DEPwD) ने ADIP योजना, छात्रवृत्तियों, कौशल विकास और डिजिटल समावेशन की प्रगति को साझा किया। राज्यों ने अपने अनोखे प्रयासों की मिसाल पेश की—मोबाइल मूल्यांकन शिविर, समावेशी स्कूलों का ढांचा और सुगम परिवहन मॉडल जैसे कदमों ने सबका ध्यान खींचा।
शिक्षा का सशक्तिकरण: भविष्य की नींव
एक खास सत्र में प्री-मैट्रिक, पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति और पीएम-यशस्वी जैसी योजनाओं पर बात हुई। ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में डिजिटल आवेदन, सत्यापन और जागरूकता की चुनौतियों को भी उठाया गया। यह साफ था कि शिक्षा के ज़रिए समावेशी समाज की नींव मज़बूत करने की कोशिशें तेज़ हो रही हैं, लेकिन अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।

एक नई सोच का जन्म
‘चिंतन शिविर 2025’ सिर्फ चर्चा का मंच नहीं, बल्कि एक नई सोच का बीज है। यहाँ उठा हर सवाल, हर सुझाव और हर अनुभव देश के उस कोने तक पहुँचेगा, जहाँ अभी रोशनी कम है। देहरादून की यह पहल दिखाती है कि जब केंद्र और राज्य मिलकर चलते हैं, तो बदलाव की बयार दूर तक जाती है। यह शिविर न सिर्फ आज की समीक्षा कर रहा है, बल्कि कल के भारत को समावेशी और सशक्त बनाने का रोडमैप भी तैयार कर रहा है।