देहरादून, 8 अप्रैल 2025, मंगलवार। देहरादून में चल रहा सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का ‘चिंतन शिविर 2025’ सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि देश के वंचित वर्ग को सशक्त करने का एक नया नक्शा है। दो दिन के इस शिविर में कमजोर तबकों की चिंता सबसे ऊपर रही, और इसे मजबूती देने के लिए चार मंत्रों पर जोर दिया गया—शिक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक सुरक्षा और योजनाओं की सीधी पहुँच। यह संकल्प है कि हर वंचित तक शिक्षा पहुँचे, उसकी आर्थिक तरक्की हो, उसकी सुरक्षा सुनिश्चित हो और सरकार की योजनाएँ उसके दरवाजे तक बिना रुकावट पहुँचें।

पहले दिन का निचोड़: चार स्तंभों पर मंथन
शिविर के पहले दिन सत्रों में इन चार मंत्रों के इर्द-गिर्द गहरी चर्चा हुई। केंद्र और राज्यों ने मिलकर कल्याणकारी योजनाओं को परखा और वंचितों के सशक्तिकरण का रास्ता तलाशा। शिक्षा से लेकर आर्थिक उन्नति तक, सामाजिक संरक्षण से लेकर सुविधाओं की पहुँच तक—हर पहलू पर विचारों का तूफान उठा। केंद्रीय मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार ने इसे एक ऐसा मंच बताया, जो न सिर्फ समीक्षा करता है, बल्कि भविष्य की राह भी बनाता है।

छात्रवृत्ति में देरी नहीं: सचिव की अपील
सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग के सचिव अमित यादव ने राज्यों से दो टूक कहा, “अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग के बच्चों की छात्रवृत्ति के प्रस्ताव जल्द भेजें। पढ़ाई शुरू होते ही बच्चों को इसका लाभ मिलना चाहिए।” उन्होंने भरोसा दिलाया कि फंड की कोई कमी नहीं है—बस इरादे मजबूत होने चाहिए।

दिव्यांगों के लिए गोवा-उड़ीसा की मिसाल
दिव्यांग सशक्तिकरण विभाग के सचिव राजेश अग्रवाल ने गोवा और उड़ीसा के प्रयासों को मिसाल बनाकर पेश किया। गोवा में समाज के हर वर्ग को जोड़कर शानदार काम हुआ, तो उड़ीसा ने आंगनबाड़ी और आशा वर्करों के जरिए दिव्यांगों तक मदद पहुँचाई। ये उदाहरण बाकी राज्यों के लिए प्रेरणा बने।
नशामुक्ति की कहानी: उत्तराखंड का जिक्र
केंद्रीय मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार ने नशामुक्ति अभियान की चर्चा में उत्तराखंड का ज़िक्र छेड़ा। एक नौजवान की कहानी सुनाई, जिसे नशे की दलदल से निकालकर नई जिंदगी दी गई। नाम और जगह गुप्त रखते हुए उन्होंने बताया कि इस नौजवान ने नशामुक्ति अभियान से जुड़कर समाज से बुराई मिटाने का बीड़ा उठाया। यह कहानी हर किसी के लिए उम्मीद की किरण बनी।

साइन लैंग्वेज में गूँजा शिविर
दिव्यांगों के लिए आयोजित खास सत्र में एक अनोखा नजारा देखने को मिला। एनआईवीएच के विशेषज्ञों ने मंच पर बोली गई हर बात को साइन लैंग्वेज में पेश किया। यह समावेशिता की ऐसी मिसाल थी, जिसने सभी का दिल जीत लिया।
केंद्र-राज्य का तालमेल: नई उम्मीद
यह शिविर सिर्फ चर्चा का मंच नहीं, बल्कि केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर तालमेल का वादा है। चार मंत्रों के जरिए कमजोर वर्ग की चिंता को हल करने की यह कोशिश नया रास्ता दिखा रही है। देहरादून की यह पहल बताती है कि जब इरादे साफ हों, तो बदलाव की बयार दूर तक जाती है।