नई दिल्ली, 3 जुलाई 2025: दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक समीकरण एक बार फिर बदलते नजर आ रहे हैं। पाकिस्तान के एक प्रमुख अखबार में छपी खबर के मुताबिक, चीन दक्षिण एशियाई देशों को एकजुट कर दक्षिण एशिया सहयोग संगठन (सार्क) का विकल्प तैयार करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। यह खबर क्षेत्रीय कूटनीति में नई हलचल पैदा कर रही है।
खबरों के अनुसार, चीन ने हाल ही में पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ त्रिपक्षीय बैठक की थी, जिसके बाद अब वह श्रीलंका, नेपाल, मालदीव और अफगानिस्तान जैसे देशों को शामिल कर एक नए क्षेत्रीय संगठन की रूपरेखा तैयार कर रहा है। हैरानी की बात यह है कि इस प्रस्तावित संगठन में भारत को भी शामिल होने का न्योता देने की बात कही जा रही है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का इस संगठन में शामिल होना मुश्किल है, खासकर तब जब नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में सार्क लगभग निष्क्रिय हो चुका है।
सार्क की उपेक्षा और भारत की नीति
2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद सार्क का केवल एक शिखर सम्मेलन 2014 में काठमांडू में हुआ था। उस दौरान कई सदस्य देशों ने चीन को सार्क में पर्यवेक्षक का दर्जा देने की मांग उठाई थी, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया था। 2016 में उरी आतंकवादी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ संवाद बंद कर दिया, जिसका असर सार्क की गतिविधियों पर भी पड़ा। इसके बाद भारत ने बिम्सटेक (बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन) को प्राथमिकता दी, लेकिन यह संगठन अब तक कोई ठोस प्रभाव नहीं छोड़ पाया है।
चीन की बढ़ती सक्रियता
दूसरी ओर, चीन ने दक्षिण एशिया में अपने कदम लगातार मजबूत किए हैं। भारत और भूटान को छोड़कर इस क्षेत्र के सभी देश चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का हिस्सा बन चुके हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन ने द्विपक्षीय संबंधों के जरिए पहले ही एक क्षेत्रीय संगठन की जमीन तैयार कर ली है। यदि वह इस दिशा में आगे बढ़ता है, तो यह भारत के लिए एक नई कूटनीतिक चुनौती साबित हो सकता है।
भारत के लिए चुनौती
विदेश नीति के जानकारों का मानना है कि चीन का यह कदम दक्षिण एशिया में भारत के प्रभाव को कम करने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है। भारत ने जहां बिम्सटेक को बढ़ावा देने की कोशिश की, वहीं चीन का प्रस्तावित संगठन क्षेत्र में उसकी स्थिति को और मजबूत कर सकता है। सवाल यह है कि क्या भारत इस नए संगठन को अनदेखा कर पाएगा या फिर क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने के लिए कोई नई रणनीति अपनाएगा?
फिलहाल, यह खबर दक्षिण एशिया की कूटनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत का संकेत दे रही है, जिस पर भारत सहित सभी क्षेत्रीय देशों की नजरें टिकी हैं।