बीजिंग, 21 जुलाई 2025। चीन ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में यारलुंग सांगपो नदी पर दुनिया के सबसे बड़े जलविद्युत बांध के निर्माण की आधिकारिक शुरुआत कर दी है। इस मेगा परियोजना की अनुमानित लागत 1.2 ट्रिलियन युआन (लगभग 167.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर) है, जो भारत के लिए चिंता का विषय बन गई है। चीनी परिषद ने अपनी वेबसाइट पर घोषणा की कि प्रधानमंत्री ली कियांग ने शनिवार को इस परियोजना का शुभारंभ किया।
इस जलविद्युत परियोजना में पांच सीढ़ीदार (कैस्केड) जलविद्युत संयंत्र शामिल होंगे, जिनकी कुल स्थापित क्षमता 60 मिलियन किलोवाट होगी। यह क्षमता मध्य चीन की यांग्त्ज़ी नदी पर स्थित सैंक्सिया (तीन घाटियां) बांध की क्षमता (22.4 मिलियन किलोवाट) से लगभग तीन गुना अधिक है। परियोजना का निर्माण और संचालन चाइना याजियांग ग्रुप कंपनी द्वारा किया जाएगा। परियोजना से उत्पन्न बिजली का उपयोग तिब्बत की स्थानीय मांग के साथ-साथ बाहरी खपत के लिए भी होगा।
भारत की चिंताएं
भारत ने इस परियोजना को लेकर पहले ही अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी। यारलुंग सांगपो नदी, जो भारत में ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाती है, असम और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों के लिए जीवनरेखा है। इस बांध के निर्माण से नदी के जल प्रवाह पर असर पड़ सकता है, जिससे भारत में बाढ़, सूखा और पर्यावरणीय असंतुलन का खतरा बढ़ सकता है। इसके अलावा, सामरिक दृष्टिकोण से भी यह परियोजना भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यह सीमा के निकट संवेदनशील क्षेत्र में स्थित है।
चीन का रुख
चीन ने भारत की चिंताओं को खारिज करते हुए कहा है कि यह परियोजना पर्यावरणीय मानकों का पालन करेगी और इसका उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इस परियोजना से क्षेत्रीय जल संसाधनों और पर्यावरण पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकते हैं।
भारत सरकार ने इस मुद्दे पर कूटनीतिक स्तर पर चर्चा की बात कही है। विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, “हम इस परियोजना के संभावित प्रभावों पर नजर रख रहे हैं और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए सभी पक्षों से जिम्मेदार व्यवहार की अपेक्षा करते हैं।”