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Thursday, March 28, 2024

मुख्यमंत्री भगवंत मान ने किसान यूनियनों को नारेबाजी बंद कर पंजाब में गिरते जल स्तर को थामने में राज्य सरकार का सहयोग करने को कहा

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने किसान आंदोलन को अनावश्यक और अनचाहा बताया। उन्होंने किसान यूनियनों को नारेबाजी बंद करने व पंजाब में गिरते जल स्तर को थामने में राज्य सरकार का सहयोग करने को कहा है। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि धान की बुवाई कार्यक्रम से किसानों के हितों को कोई नुकसान नहीं होगा बल्कि यह प्रयास राज्य में जल स्तर को बचाने में बहुत ही सहायक सिद्ध हो सकता है।

भगवंत मान ने कहा कि वह महान गुरु साहिबान के दिखाए मार्ग पर चल रहे हैं और उनको इससे कोई रोक नहीं सकता। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि किसानों के साथ बातचीत के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले हैं। भगवंत मान ने कहा कि मैं खुद एक किसान का बेटा हूं और मुझे अच्छी तरह पता है कि किसानों को कौन सी जरूरत है।

मैं 10 जून और 18 जून के बीच फर्क से भी पूरी तरह अवगत हूं। हालांकि भगवंत मान ने कहा कि पानी और हवा को बचाने में मेरा कोई निजी हित नहीं छिपा बल्कि इन बहुमूल्य कुदरती स्रोतों को बचाने के लिए उनकी बड़ी जिम्मेदारी बनती है। उन्होंने कहा कि किसानों को धरने और प्रदर्शन करने के बजाय पंजाब और पंजाबियों की बेहतरी के लिए इस नेक कार्य में आगे आकर राज्य सरकार का साथ देना चाहिए। भगवंत मान ने कहा कि वह बासमती और मूंग की फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने का एलान पहले ही कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार सीधी बुवाई करने वाले किसानों को भी प्रेरित कर रही है।

 

मुख्यमंत्री ने किसानों से एक साल तक राज्य सरकार के प्रयासों को सहयोग करने की अपील की और कहा कि अगर इस दौरान किसानों का कोई नुकसान होता भी है तो राज्य सरकार उस की भरपाई करेगी। उन्होंने आंदोलनकारी किसान यूनियनों से कहा कि वह बताएं कि अगर राज्य में पानी बचाने और पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के बारे वह (मुख्यमंत्री) अच्छा सोच रहे हैं तो इस में वह कहां गलत हैं। भगवंत मान ने आंदोलनकारी संगठनों से सवाल किया कि जब बटाला में स्कूल बच्चों की बस का पराली जलाने के कारण हादसा हुआ या आग लगने कारण दो छोटे बच्चों की मौत हो गई तो उन्होंने उस समय पर चुप्पी क्यों साध रखी

anita
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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