आज (मंगलवार, ५ नवंबर) कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि है, जिसे विनायकी चतुर्थी कहा जाता है। जब चतुर्थी मंगलवार को आती है तो इसे अंगारक चतुर्थी भी कहते हैं। आज से ही नहाय-खाय के साथ सूर्य और छठ माता का महापर्व छठ पूजा व्रत आरंभ होता है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, विनायकी चतुर्थी पर महिलाएं अपने परिवार की सुख-शांति के लिए व्रत करती हैं। चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश की पूजा की जाती है। जो लोग चतुर्थी व्रत नहीं कर पा रहे हैं, वे गणेश को कम से कम दूर्वा अवश्य चढ़ाएं। मंगलवार और चतुर्थी के योग में मंगल ग्रह की पूजा भी करें। मंगल की पूजा शिवलिंग के रूप में की जाती है, इसलिए किसी शिवलिंग पर लाल गुलाल और लाल फूल चढ़ाएं।
ऊँ अं अंगारकाय नमः मंत्र का जाप करें। गणेश जी को दूर्वा के जोड़े बनाकर चढ़ाने चाहिए। २२ दूर्वा को एक साथ जोड़ने पर ११ जोड़े तैयार करें। दूर्वा के ये ११ जोड़े गणेश मंत्र जप करते हुए भगवान को चढ़ाएं। ध्यान रखें पूजा के लिए किसी मंदिर के बगीचे में उगी हुई या किसी साफ जगह पर उगी हुई दूर्वा लेनी चाहिए। जिस जगह गंदा पानी बहकर आता हो, वहां की दूर्वा लेने से बचें। भगवान को चढ़ाने से पहले दूर्वा को साफ पानी से धो लेना चाहिए।
दूर्वा चढ़ाते समय गणेश जी के 11 मंत्रों का जप कर सकते हैं। ये मंत्र हैं…
ऊँ गं गणपतेय नम:, ऊँ गणाधिपाय नमः, ऊँ उमापुत्राय नमः, ऊँ विघ्ननाशनाय नमः, ऊँ विनायकाय नमः, ऊँ ईशपुत्राय नमः, ऊँ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः, ऊँएकदन्ताय नमः, ऊँ इभवक्त्राय नमः, ऊँ मूषकवाहनाय नमः, ऊँ कुमारगुरवे नमः
इन मंत्रों का जाप करते हुए गणेश जी को दूर्वा चढ़ानी चाहिए। आप चाहे तों ये मंत्र भी बोल सकते हैं – श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि।
छठ पर्व: एक पवित्र और महत्वपूर्ण लोकपर्व
छठ पर्व भारत के प्रमुख लोकपर्वों में से एक है, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देवता और छठी माई की पूजा के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
पहला दिन: नहाय-खाय
छठ पर्व का पहला दिन नहाय-खाय के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत करने वाले लोग स्नान करते हैं और नए वस्त्र पहनते हैं। इसके बाद वे लौकी की सब्जी और चावल बनाते हैं और पूजा के बाद प्रसाद के रूप में खाते हैं।
दूसरा दिन: खरना
छठ पर्व का दूसरा दिन खरने का होता है। इस दिन व्रत करने वाले लोग गाय के दूध से खीर बनाते हैं और सूर्यास्त के बाद खाते हैं। इसके बाद वे 36 घंटों का निर्जल व्रत शुरू करते हैं।
तीसरा दिन: सूर्यास्त की पूजा
छठ पर्व का तीसरा दिन सूर्यास्त की पूजा के लिए विशेष है। इस दिन व्रत करने वाले लोग सूर्य देवता को अर्घ्य देते हैं और पूजा करते हैं। इसके बाद वे रात में निर्जल व्रत में रहते हैं।
चौथा दिन: सूर्योदय की पूजा और परना
छठ पर्व का चौथा दिन सूर्योदय की पूजा के लिए विशेष है। इस दिन व्रत करने वाले लोग सूर्य देवता को अर्घ्य देते हैं और पूजा करते हैं। इसके बाद वे व्रत को तोड़ते हैं और परना करते हैं।
छठ पर्व का महत्व
छठ पर्व का महत्व सूर्य देवता और छठी माई की पूजा के लिए है। यह पर्व लोगों को अपने परिवार और समाज के साथ जुड़ने का अवसर प्रदान करता है। यह पर्व लोगों को अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना करने का अवसर भी प्रदान करता है।