नई दिल्ली, 30 मार्च 2025, रविवार। चैत्र अथवा वासंतिक नवरात्र के शुभारंभ के साथ ही सनातनी नव वर्ष की शुरुआत हुई। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार अनिता चौधरी ने विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार से कई गंभीर और समसामयिक मुद्दों पर खुलकर बातचीत की। यह संवाद न केवल सनातन संस्कृति की महत्ता को रेखांकित करता है, बल्कि समाज के सामने मौजूद चुनौतियों पर भी प्रकाश डालता है। आइए, इस रोचक और विचारोत्तेजक बातचीत के प्रमुख अंशों पर नजर डालें।
भारतीय नव वर्ष: संस्कृति और संयम का प्रतीक
अनिता चौधरी ने सवाल उठाया कि सनातनी नव वर्ष को किस तरह मनाया जाना चाहिए और समाज को क्या संदेश देना चाहिए। जवाब में आलोक कुमार ने स्पष्ट कहा, “यह सिर्फ सनातनियों का नहीं, बल्कि सभी भारतीयों का नव वर्ष है।” उन्होंने अंग्रेजी नव वर्ष पर तंज कसते हुए कहा कि भारतीय नव वर्ष दिसंबर की सर्द रातों में नहीं, बल्कि वासंतिक नवरात्र के उजाले और उत्साह में आता है। जहां अंग्रेजी नव वर्ष को पब-बार में शराब और अंधेरे में अश्लील नृत्यों के साथ जोड़ा जाता है, वहीं भारतीय नव वर्ष सूर्य को अर्घ्य, मंदिरों में आरती, नौ दिनों का उपवास और शंखनाद के साथ मनाया जाता है। आलोक कुमार ने जोर देकर कहा कि यह नव वर्ष संस्कारों और संयम का संदेश देता है। जो उपवास नहीं भी करते, वे भी इस दौरान मांस-मदिरा से दूर रहते हैं और राम जन्म की प्रतीक्षा से लेकर हनुमान जयंती तक उत्सव में डूबे रहते हैं।
वाराणसी में मांस-मछली पर रोक: संवेदना या विवाद?
बातचीत में अनिता चौधरी ने वाराणसी प्रशासन के उस फैसले का जिक्र किया, जिसमें वासंतिक नवरात्र के दौरान मांस-मछली की बिक्री पर रोक लगाई गई। इस पर मुस्लिम समुदाय और विपक्ष ने सवाल उठाए। आलोक कुमार ने इसे सहजता से लेते हुए कहा, “इसमें व्यथित होने की क्या बात है? भारत में हर जाति-धर्म के लोग रहते हैं। क्या हम एक-दूसरे की संवेदनाओं का ख्याल नहीं रख सकते?” उन्होंने गंगा-जमुनी तहजीब का हवाला देते हुए कहा कि जब हिंदू रोजा-इफ्तार में शिरकत करते हैं, तो नवरात्र के नौ दिनों तक मांस-मछली की बिक्री रोकने में क्या आपत्ति हो सकती है। सख्त लहजे में उन्होंने चेतावनी भी दी कि संयम न रखने वालों पर कानून का हस्तक्षेप होगा।
सलमान की घड़ी और मौलानाओं का फतवा
अनिता चौधरी ने मायानगरी बॉलीवुड का जिक्र करते हुए सलमान खान की घड़ी पर छिड़े विवाद को उठाया। सलमान की कलाई पर सजी घड़ी में भगवान राम की तस्वीर है, जिसे कुछ मौलानाओं ने शरीयत के खिलाफ बताकर फतवा जारी करने की बात कही। इस पर आलोक कुमार ने कहा, “मौलानाओं को इस संकीर्ण सोच से बाहर आना चाहिए। क्या कोई इनकार कर सकता है कि राम भारत के पुरखा और महापुरुष थे? उन्होंने मर्यादा का जीवन जिया। अगर कोई उनकी तस्वीर लगाता है, तो इसमें आपत्ति क्यों?” उन्होंने एक मुस्लिम सेलिब्रिटी का उदाहरण देते हुए बताया कि जब उसने अपनी आंखें दान करने की घोषणा की, तो मौलानाओं ने फतवा जारी कर दिया कि कयामत की रात वह जन्नत कैसे देखेगा। मजाकिया लहजे में आलोक कुमार ने कहा, “इन फिजूल बातों से निकलकर सबको मिल-जुलकर रहना चाहिए।”
हिंदू परिवार और संस्कारों पर जोर
विश्व हिंदू परिषद की ओर से सनातनी नव वर्ष पर कुछ संदेशों का जिक्र करते हुए अनिता चौधरी ने जनसंख्या और शादी जैसे मुद्दों पर सवाल किया। आलोक कुमार ने कहा कि परिषद हिंदू परिवारों को सनातन संस्कारों से जोड़ने की कोशिश कर रही है। उन्होंने सुझाव दिया कि हिंदू परिवारों में दो-तीन बच्चे हों, शादी समय पर हो और जीवन में हिंदुत्व की भावना बनी रहे। शायद यह हिंदुओं की घटती जनसंख्या पर उनकी चिंता का संकेत था।
वक्फ बोर्ड संशोधन: पारदर्शिता में क्या बुराई?
वक्फ बोर्ड संशोधन को लेकर हुए हंगामे पर आलोक कुमार ने कहा कि विवाद इस बात पर नहीं होना चाहिए कि संशोधन क्यों हो रहा है, बल्कि यह देखना चाहिए कि संशोधन क्या है। उन्होंने पूछा, “अगर तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भत्ता मिले या वक्फ नियमों में पारदर्शिता आए, तो इसमें बुराई क्या है?” उनका मानना था कि सही जानकारी के अभाव में ही हंगामा हो रहा है।
बजिंदर सिंह मामला: धर्म का ढाल नहीं
अंत में अनिता चौधरी ने स्वयंभू पादरी बजिंदर सिंह का जिक्र किया, जिन्हें 2018 के यौन उत्पीड़न मामले में दोषी ठहराया गया। कुछ लोग इसे धर्म से जोड़कर उनका बचाव कर रहे हैं। इस पर आलोक कुमार ने साफ कहा, “इसमें धर्म का कोई सवाल नहीं। ऐसी घिनौनी हरकत करने वालों को सख्त सजा मिलनी चाहिए।”
आलोक कुमार और अनिता चौधरी की यह बातचीत सनातन संस्कृति की महत्ता, सामाजिक संवेदनशीलता और समसामयिक मुद्दों पर एक गहरी सोच को उजागर करती है। भारतीय नव वर्ष को संस्कारों का प्रतीक बताते हुए आलोक कुमार ने समाज को एकजुटता और संयम का संदेश दिया। यह संवाद निश्चित रूप से पाठकों के मन में कई सवाल और विचार छोड़ता है।