नई दिल्ली, 1 मई 2025, गुरुवार। केंद्र सरकार ने आगामी जनगणना में जातिगत गणना को शामिल करने का ऐलान कर देश की सियासत में हलचल मचा दी है। यह फैसला सामाजिक न्याय और पारदर्शिता की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है, लेकिन इसका श्रेय लेने की होड़ ने राजनीतिक माहौल को और गर्म कर दिया है। विपक्षी दल—कांग्रेस, राजद और समाजवादी पार्टी—इस फैसले को अपनी-अपनी जीत बता रहे हैं, जबकि सरकार ने इसे सामाजिक ढांचे को मजबूत करने की दिशा में उठाया गया कदम करार दिया है।
विपक्ष का दावा: “हमारी मांग, हमारी जीत”
राजद नेता तेजस्वी यादव ने इसे समाजवादियों की ऐतिहासिक जीत बताया। उन्होंने कहा, “यह लालू यादव और राजद की 30 साल पुरानी मांग थी। हमने प्रधानमंत्री से बार-बार इसकी मांग की, लेकिन पहले हमें ठुकराया गया। आज सरकार को हमारी बात माननी पड़ी, यह हमारी एकजुटता की ताकत है।”
कांग्रेस भी पीछे नहीं रही। पार्टी नेता उदित राज ने इसे कांग्रेस की जीत करार देते हुए कहा, “मोदी सरकार को आखिरकार हमारी बात माननी पड़ी।” वहीं, कांग्रेस सांसद चामला किरण कुमार रेड्डी ने दावा किया कि यह मांग तेलंगाना से शुरू हुई, जहां हाल ही में जाति गणना हुई थी। उन्होंने कहा, “यह राहुल गांधी का सपना था, जिसे अब हकीकत में बदला गया है।”
समाजवादी पार्टी ने भी अपनी पीठ थपथपाई। सपा नेता रविदास मेहरोत्रा ने कहा, “जाति गणना दलितों और पिछड़ों की जीत है। यह सपा की लंबी लड़ाई का नतीजा है।”
सरकार का पलटवार: “विपक्ष का दावा खोखला”
केंद्र सरकार ने विपक्ष के दावों को सिरे से खारिज कर दिया। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, “विपक्ष इसे राजनीतिक हथियार बना रहा है। कांग्रेस ने हमेशा जाति गणना का विरोध किया, और अब वही इसका श्रेय लेने की कोशिश में है।” उन्होंने जोड़ा कि आजादी के बाद कभी भी जनगणना में जाति को शामिल नहीं किया गया। “अब इसे शामिल करना सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को मजबूत करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।”
क्यों अहम है यह फैसला?
जाति गणना लंबे समय से सामाजिक न्याय की वकालत करने वाले दलों की प्रमुख मांग रही है। यह न केवल सामाजिक समीकरणों को समझने में मदद करेगी, बल्कि नीति निर्माण और संसाधन वितरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। हालांकि, इसका राजनीतिकरण होना तय है, जैसा कि मौजूदा श्रेय की जंग से साफ है।
आगे क्या?
जाति गणना का फैसला निस्संदेह एक बड़ा कदम है, लेकिन इसे लागू करने की प्रक्रिया और इसके नतीजे देश की सियासत को नई दिशा दे सकते हैं। फिलहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि इस फैसले का असली श्रेय जनता किसे देती है—सरकार को, जो इसे लागू कर रही है, या विपक्ष को, जो इसके लिए दशकों से आवाज उठाता रहा है। यह सियासी रंगमंच अभी और ड्रामे के लिए तैयार है!