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Thursday, July 31, 2025

कंबोडिया: एक समृद्ध इतिहास, स्वतंत्रता की गाथा… प्राचीन गौरव से थाईलैंड संग तनाव तक

नई दिल्ली, 28 जुलाई 2025: दक्षिण-पूर्व एशिया का छोटा सा देश कंबोडिया अपनी सांस्कृतिक धरोहर, प्राचीन मंदिरों और इतिहास की गहरी परतों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। लेकिन हाल के दिनों में यह देश थाईलैंड के साथ सीमा विवाद को लेकर सुर्खियों में रहा है। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हस्तक्षेप के बाद दोनों देशों ने युद्धविराम पर सहमति जताई है, फिर भी तनाव की आग अब भी सुलग रही है। इस विवाद के बीच आइए, कंबोडिया के गौरवशाली इतिहास, स्वतंत्रता की कहानी और वर्तमान परिदृश्य पर एक नजर डालते हैं।

कब्जों और साम्राज्यों का इतिहास

कंबोडिया का इतिहास उतार-चढ़ावों से भरा रहा है। पहली शताब्दी में यहां फुनान साम्राज्य ने करीब 500 वर्षों तक शासन किया। इसके बाद चेनला साम्राज्य ने सत्ता संभाली, जिसे जल और थल चेनला में बांटा गया। इस दौरान भारत का प्रभाव कंबोडिया पर स्पष्ट दिखता था। व्यापार और संस्कृति के जरिए भारत के साथ इसके रिश्ते गहरे थे।

नौवीं शताब्दी में खमेर साम्राज्य का उदय हुआ, जिसे कंबोडिया का स्वर्ण युग माना जाता है। जयवर्मन द्वितीय द्वारा स्थापित इस साम्राज्य ने 600 वर्षों तक शासन किया। यही वह दौर था जब विश्व प्रसिद्ध अंगकोर वाट मंदिर का निर्माण हुआ। शुरू में हिंदू धर्म को मानने वाला यह साम्राज्य बाद में बौद्ध धर्म की ओर झुका। लेकिन 1431 में थाईलैंड (तब स्याम) की सेना ने अंगकोर को लूट लिया, जिससे खमेर साम्राज्य का पतन शुरू हुआ।

15वीं शताब्दी के बाद कंबोडिया पर थाईलैंड और वियतनाम का प्रभाव बढ़ा। दोनों देशों ने इसकी जमीन और राजनीति पर कब्जा जमाया। 1863 में फ्रांस ने कंबोडिया को अपने संरक्षण में ले लिया और यह फ्रांसीसी इंडोचाइना का हिस्सा बन गया। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान 1941 से 1945 तक जापान ने यहां कब्जा किया, लेकिन युद्ध के बाद फ्रांस ने फिर नियंत्रण हासिल कर लिया।

स्वतंत्रता की लंबी लड़ाई

कंबोडिया को 9 नवंबर 1953 को फ्रांस से आजादी मिली। लेकिन इसके बाद भी देश में गृहयुद्ध, अस्थिरता और खमेर रूज की तानाशाही का काला दौर देखा गया। 1975 से 1979 तक खमेर रूज के शासक पोल पॉट के अत्याचारों ने देश को हिलाकर रख दिया। 1979 में वियतनाम की सेना ने हस्तक्षेप कर खमेर रूज को सत्ता से हटाया और अगले दस सालों तक कंबोडिया पर नियंत्रण बनाए रखा। धीरे-धीरे देश ने स्थिरता की ओर कदम बढ़ाए।

वर्तमान शासन और अर्थव्यवस्था

आज कंबोडिया एक संवैधानिक राजतंत्र है। राजा नरोदम सिहामोनी 2004 से सिंहासन पर हैं, जबकि हून मानेट 2023 से प्रधानमंत्री हैं। कंबोडिया की अर्थव्यवस्था कृषि, वस्त्र, पर्यटन और निर्माण पर टिकी है। चावल, रबर और मछली पालन इसके प्रमुख कृषि उत्पाद हैं, जबकि अंगकोर वाट जैसे ऐतिहासिक स्थल पर्यटन को बढ़ावा देते हैं। हालांकि, गरीबी, भ्रष्टाचार और आर्थिक असमानता अब भी चुनौतियां हैं।

थाईलैंड से तनाव का कारण

कंबोडिया और थाईलैंड के बीच मुख्य विवाद प्रेह विहार मंदिर को लेकर है, जो दोनों देशों की सीमा पर स्थित है। 1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने इसे कंबोडिया का हिस्सा माना, लेकिन थाईलैंड ने इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं किया। 2008-2011 के बीच इस क्षेत्र में सैन्य झड़पें हुईं, और हाल ही में फिर से तनाव बढ़ा है। दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं, और थाईलैंड के फाइटर जेट हमलों ने स्थिति को और जटिल कर दिया है।

भारत से गहरे रिश्ते

भारत और कंबोडिया के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्ते प्राचीन काल से हैं। अंगकोर वाट जैसे मंदिरों में भारतीय स्थापत्य की छाप देखी जा सकती है। 1952 में राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद भारत ने कंबोडिया को विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहायता दी है। भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत दोनों देशों के रिश्ते और मजबूत हो रहे हैं।

रोचक तथ्य

  • अंगकोर वाट दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
  • कंबोडिया का झंडा दुनिया का एकमात्र राष्ट्रीय ध्वज है, जिसमें किसी इमारत (अंगकोर वाट) की तस्वीर है।
  • कंबोडिया की मुद्रा ‘रियल’ है, लेकिन अमेरिकी डॉलर भी व्यापक रूप से प्रचलन में है।
  • देश की 95% से अधिक आबादी बौद्ध धर्म को मानती है।

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