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Wednesday, June 25, 2025

कलकत्ता नरसंहार: इतिहास पर एक नज़र

शहर में पुलिस की अनुपस्थिति में मुस्लिमों ने हिंदू-सिख नरसंहार किया, बलात्कार किए, डकैतियां कीं, और चोरी की घटनाएं हुईं। कलकत्ता से शुरू हुआ यह नरसंहार 19 अगस्त को नोखाली (वर्तमान बांग्लादेश) शहर पहुंचा। यह स्थान हिंदू बहुसंख्यक था, लेकिन भारत विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान बनने से यह इलाका मुस्लिम बहुसंख्यक हो गया, जिसमें 95% आबादी मुस्लिम और 4% आबादी हिंदू थी।

भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण भाग बंगाल प्रदेश था, जो भारतीय साहित्य, आध्यात्मिकता और धार्मिक भावनाओं के लिए प्रसिद्ध था। बंगाल प्रेसिडेंसी, जो वर्तमान बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा, बंगाल, बांग्लादेश, और असम के कुछ हिस्सों को शामिल करती थी, की कुल आबादी 7 करोड़ 80 लाख थी। इस क्षेत्र का मुख्य शहर, कलकत्ता, ब्रिटिश साम्राज्य की प्रशासनिक और न्यायिक राजधानी हुआ करता था।

ब्रिटिश साम्राज्य की शासन प्रणाली में सुधार के उद्देश्य से, लॉर्ड कर्ज़न ने 19 जुलाई 1905 को बंगाल को विभाजित करने का प्रस्ताव दिया। इस प्रस्ताव के तहत, बंगाल को दो भागों—पूर्वी और पश्चिमी बंगाल में बांटा जाना था। पूर्वी भाग में वर्तमान बंगाल, बांग्लादेश, और असम शामिल थे, जबकि पश्चिमी भाग में बिहार, उड़ीसा आदि थे। इस विभाजन प्रस्ताव को 16 अक्टूबर 1905 को वॉयसराय द्वारा स्वीकृति दी गई।

उस समय की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी, इंडियन नेशनल कांग्रेस, ने पार्टी अध्यक्ष गोपाल कृष्ण गोखले के नेतृत्व में इस प्रस्ताव का विरोध किया। वहीं, दूसरी ओर, धर्म और समुदाय की राजनीति करने के लिए नवाब सलीमुल्ला, सैयद अहमद खान, मोहम्मद अली जिन्ना, और लियाकत अली खान ने इस विभाजन को समर्थन दिया। धार्मिक भावनाओं का सहारा लेते हुए, सैयद अहमद खान और मोहम्मद अली जिन्ना ने 1906 में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना की। इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य भारत की राष्ट्रवादी राजनीति को धार्मिक रूप देना था।

1911 में, किंग जॉर्ज ने ब्रिटिश साम्राज्य की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया और साथ ही, भाषा के आधार पर विभाजित बंगाल को पुनः एकजुट कर दिया, जिससे बिहार, उड़ीसा, और असम पुनः बंगाल में शामिल न हो सके।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, ब्रिटिश साम्राज्य की सैन्य शक्ति कमजोर हो गई, जिसका लाभ उठाते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी द्वारा पकड़े गए इंडियन ब्रिटिश आर्मी के जवानों को इंडियन नेशनल आर्मी में शामिल किया। उन्होंने उन्हें अच्छा प्रशिक्षण देकर ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया।

नेताजी की विद्रोही सोच ही भारत की स्वतंत्रता का मुख्य कारण बनी, जिसके परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार को वित्तीय और सैन्य शक्ति का आघात हुआ। वे इतने कमजोर हो गए कि भारत जैसे उपनिवेश को संभाल नहीं पाए।

जिस ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता था, उसका भारत में सूर्य हमेशा के लिए अस्त हो चुका था। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री सर क्लेमेंट एटली ने भारत को आज़ाद करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने तीन सदस्यों (कैथी लॉरेंस, स्टैफर्ड क्रिप्स, और ए.वी. अलेक्जेंडर) की ‘कैबिनेट मिशन’ नाम से एक समिति बनाई, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत को साम्राज्य सौंपना था।

1940 का दशक भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय चिंतन से हटकर धार्मिक और सांप्रदायिक मुद्दों की ओर मुड़ गया। उस समय की दो सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियां—इंडियन नेशनल कांग्रेस और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग—के आपसी मतभेद और विभिन्न विचारधाराओं के कारण भारत की आंतरिक राजनीति बिगड़ने लगी।

कैबिनेट मिशन के सदस्यों ने सत्ता परिवर्तन के लिए दोनों पार्टियों को कई प्रस्ताव दिए, लेकिन 16 जून 1946 का प्रस्ताव, जिसमें भारत का विभाजन निश्चित किया गया था, कांग्रेस ने ठुकरा दिया। दूसरी ओर, ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्र पाकिस्तान के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।

कांग्रेस द्वारा विभाजन प्रस्ताव ठुकराने पर वैचारिक मतभेद और बढ़ गए। इसके बाद कैबिनेट मिशन ने दोनों पार्टियों को अंतरिम सरकार बनाने का मौका दिया। इस प्रस्ताव को भी कांग्रेस ने ठुकरा दिया और जिन्ना ने सरकार बनाने का निर्णय लिया।

हालांकि, मुस्लिम लीग के धार्मिक और छोटी पार्टी होने की वजह से वायसराय ने जिन्ना का यह प्रस्ताव रद्द कर दिया। दूसरी ओर, वायसराय ने कांग्रेस को सरकार बनाने का आदेश दिया। मोहम्मद अली जिन्ना ने इसे अपना अपमान समझा और मुसलमानों का हक यानी पाकिस्तान लेने के लिए असंवैधानिक तरीकों का सहारा लेने का निर्णय लिया।

मुस्लिम लीग के नेता हुसैन सैयद सुहरावर्दी ने बंगाल के गवर्नर सर फेडरिक बरोस को शांति का आश्वासन देकर सभी पुलिसकर्मियों को छुट्टी पर भेजने को कहा। 16 अगस्त 1946 को मुस्लिम लीग के नेताओं मोहम्मद अली जिन्ना, लियाकत अली खान, और सैयद सुहरावर्दी ने मुस्लिम समुदाय के लोगों को मोहम्मद और कुरान का हवाला देकर जमीनी जिहाद के लिए प्रेरित किया। यह घटना इतिहास में ‘डायरेक्ट एक्शन’ के नाम से जानी जाती है।

शहर में पुलिस की अनुपस्थिति में मुस्लिमों ने हिंदू-सिख नरसंहार किया, बलात्कार किए, डकैतियां कीं, और चोरी की घटनाएं हुईं। कलकत्ता से शुरू हुआ यह नरसंहार 19 अगस्त को नोखाली (वर्तमान बांग्लादेश) शहर पहुंचा। यह स्थान हिंदू बहुसंख्यक था, लेकिन भारत विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान बनने से यह इलाका मुस्लिम बहुसंख्यक हो गया, जिसमें 95% आबादी मुस्लिम और 4% आबादी हिंदू थी।

‘डायरेक्ट एक्शन’ प्लान के बाद, ब्रिटिश सरकार ने मुस्लिमों का यह खौफनाक चेहरा देख, भारत का धार्मिक आधार पर विभाजन करने का निर्णय लिया और देखते ही देखते अखंड भारत को दो भागों में खंडित किया गया—पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिम पाकिस्तान।

हालांकि, प्रशासनिक दुर्बलता के कारण 1971 के युद्ध के बाद, पूर्वी पाकिस्तान को भाषा के आधार पर पाकिस्तान से अलग कर दिया गया और एक नए देश का जन्म हुआ, जिसे बांग्लादेश कहा गया।

वर्तमान समय में, बंगाल में जहाँ एक ओर वामपंथी विचारधारा से प्रभावित सरकार तुष्टीकरण की राजनीति कर सत्ता में बनी हुई है, वहीं दूसरी ओर बांग्लादेश में पश्चिमी विचारधारा और अमेरिकी हस्तक्षेप से गृह युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो चुकी है। हालात ऐसे बन चुके हैं कि वहाँ की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी राज्य छोड़ना पड़ा और वहाँ के अल्पसंख्यक हिंदू जघन्य हिंसा के शिकार हो रहे है ।ठीक उसी तरह जैसे 1946 में हुए थे ।

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