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Sunday, August 10, 2025

बुद्ध पूर्णिमा और सारनाथ: जहां बुद्ध की स्मृतियां बिखरी हैं

वाराणसी, 12 मई 2025, सोमवार। हर साल वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध पूर्णिमा का पावन पर्व मनाया जाता है, और इस बार 12 मई यानी आज यह विशेष दिन भगवान गौतम बुद्ध के जीवन की त्रिवेणी—जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण—को याद करने का अवसर लेकर आया है। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए यह दिन असीम श्रद्धा और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक है। लेकिन इस पर्व का एक अनूठा केंद्र है—शिव की नगरी काशी के पास बसा सारनाथ, जहां भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। आइए, इस बुद्ध पूर्णिमा पर जानें कि क्यों है सारनाथ इतना खास और कैसे यह बुद्ध की स्मृतियों का जीवंत तीर्थ बन गया।

सारनाथ: बुद्ध की आध्यात्मिक विरासत का केंद्र

सारनाथ, बौद्ध धर्म का एक ऐसा तीर्थ है जहां भगवान बुद्ध की स्मृतियां आज भी जीवंत हैं। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के बौद्ध अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. आनंद शंकर चौधरी बताते हैं कि सारनाथ बुद्ध के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है। यहीं पर बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद अपने पांच शिष्यों को पहला उपदेश, जिसे धर्म चक्र प्रवर्तन कहा जाता है, दिया था। यह उपदेश बौद्ध धर्म की नींव बना।

सारनाथ की खासियत केवल इसके ऐतिहासिक महत्व तक सीमित नहीं है। यहां की हर मिट्टी, हर पत्थर और हर पीपल का पेड़ बुद्ध की मौजूदगी का एहसास कराता है। प्रो. चौधरी कहते हैं, “काशी हमेशा से ज्ञान की नगरी रही है। बुद्ध को पता था कि यहीं उन्हें अपने पहले शिष्य मिलेंगे। प्रकृति के प्रेमी बुद्ध के जीवन में पीपल के वृक्ष का विशेष स्थान रहा, और सारनाथ में यह प्राकृतिक आध्यात्मिकता आज भी महसूस की जा सकती है।”

धमेख स्तूप: बुद्ध के उपदेश का प्रतीक

सारनाथ का धमेख स्तूप इस स्थल की शान है। सम्राट अशोक द्वारा निर्मित यह 43.6 मीटर ऊंचा और 28 मीटर चौड़ा स्तूप उस पवित्र स्थान को चिह्नित करता है जहां बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। मिट्टी और ईंटों से बना यह स्तूप न केवल स्थापत्य कला का नमूना है, बल्कि इसकी दीवारों पर उकेरे गए फूलों, मनुष्यों और पक्षियों के चित्र और ब्राह्मी लिपि के शिलालेख इसे और भी विशेष बनाते हैं।

इसके अलावा, चौखंडी स्तूप, जो गुप्त काल में बना, भी अपनी अष्टकोणीय मीनार के लिए प्रसिद्ध है। यहीं पर बुद्ध अपने पंचवर्गीय शिष्यों से मिले थे। ये स्तूप आज भी बौद्ध अनुयायियों के लिए तीर्थ के समान हैं, जो दुनिया भर से यहां आकर शांति और प्रेरणा की तलाश करते हैं।

बुद्ध की अस्थियां और उनका दांत: एक पवित्र अवशेष

सारनाथ की सबसे अनमोल धरोहर है भगवान बुद्ध की अस्थियां, जिनमें उनका एक दांत भी शामिल है। प्रो. चौधरी बताते हैं कि बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनकी अस्थियों को आठ राजाओं में बांटा गया था। सम्राट अशोक ने इन अस्थियों को देश भर में फैलाया, और एक हिस्सा सारनाथ में संरक्षित है। पुरातत्व खुदाई के दौरान मिला यह दांत आज भी मूलगंध कुटी विहार मंदिर में रखा गया है, जिसका दर्शन बुद्ध पूर्णिमा के दिन भक्तों के लिए खुलता है।

यह अवशेष श्रीलंका, चीन, जापान, तिब्बत, म्यांमार और भारत के बौद्ध अनुयायियों के लिए गहरी आस्था का केंद्र है। 1931 में श्रीलंका के सहयोग से निर्मित इस मंदिर में बुद्ध की अस्थियां रखी गईं, जो इस स्थान को और भी पवित्र बनाती हैं।

पीपल की पत्तियां: आध्यात्मिक स्मृति का प्रतीक

सारनाथ में पीपल के वृक्ष की पत्तियां बौद्ध अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि जिस स्थान पर बुद्ध ने पहला उपदेश दिया, वहां के पीपल की पत्तियों को घर ले जाना शुभ होता है। भक्त इन पत्तियों को अपने साथ ले जाकर बुद्ध की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारने की प्रेरणा पाते हैं।

सारनाथ की शांत और ऊर्जावान वायु हर किसी को आध्यात्मिक सुकून देती है। यह स्थान लुंबिनी, बोधगया और कुशीनगर के बाद बौद्ध धर्म का चौथा सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ माना जाता है।

सारनाथ संग्रहालय: इतिहास का खजाना

सारनाथ में एक संग्रहालय भी है, जहां भारतीय प्रतीक अशोक चक्र और अशोक का चतुर्मुख शेर स्तंभ सुरक्षित हैं। 1905 में पुरातत्व विभाग की खुदाई में मिलीं प्राचीन वस्तुएं, जैसे जैन मंदिर, चीनी मंदिर, श्रीलंका मंदिर और नवीन बिहार, इस स्थान को और भी समृद्ध बनाती हैं। ये सभी दर्शनीय स्थल सारनाथ को एक जीवंत ऐतिहासिक और आध्यात्मिक केंद्र बनाते हैं।

अशोक और अस्थियों की कहानी

प्रो. चौधरी बताते हैं कि बुद्ध की अस्थियों को सम्राट अशोक ने सात स्तूपों से निकालकर हजारों टुकड़ों में बांटा और देश-विदेश में फैलाया। इनमें से एक हिस्सा सांची स्तूप, मध्य प्रदेश, और दूसरा मद्रास प्रेसीडेंसी में रखा गया। ब्रिटिश शासन के दौरान इन अस्थियों को लंदन ले जाने की योजना थी, लेकिन अंगारिका धर्मपाल के प्रयासों से इन्हें वाराणसी लाया गया। इसके बाद मूलगंध कुटी विपहार मंदिर में इन्हें संरक्षित किया गया, जो आज भी बुद्ध पूर्णिमा पर भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

क्यों है सारनाथ इतना खास?

सारनाथ केवल एक तीर्थ स्थल नहीं, बल्कि बुद्ध की शिक्षाओं, शांति और करुणा का जीवंत प्रतीक है। यहां की हर चीज—धमेख स्तूप, पीपल के पेड़, बुद्ध की अस्थियां, और संग्रहालय में संरक्षित अवशेष—बुद्ध के जीवन और उनके संदेश को जीवित रखती है। यह स्थान न केवल बौद्ध अनुयायियों, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणादायक है जो शांति और ज्ञान की तलाश में है।

इस बुद्ध पूर्णिमा पर, अगर आप सारनाथ की यात्रा करें, तो वहां की शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा आपको बुद्ध की शिक्षाओं के करीब ले जाएगी। यह स्थान हमें याद दिलाता है कि सत्य, करुणा और अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही जीवन का असली मोल समझा जा सकता है।

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