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Saturday, August 9, 2025

गंगा तट पर ब्राह्मणों ने किया श्रावणी उपाकर्म, सूर्य से मांगा तेज

वाराणसी, 9 अगस्त 2025: काशी के पवित्र गंगा तट पर शनिवार को श्रावणी उपाकर्म का भव्य आयोजन हुआ। अहिल्याबाई घाट पर शास्त्रार्थ महाविद्यालय और विप्र समाज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस अनुष्ठान में सैकड़ों जनेऊधारी ब्राह्मणों ने हिस्सा लिया। वैदिक परंपराओं के अनुसार, ब्राह्मणों ने गंगा को साक्षी मानकर जाने-अनजाने पापों के शमन के लिए प्रायश्चित किया और सूर्य से तेज व ऊर्जा की प्रार्थना की।

वैदिक मंत्रों से गूंजा घाट

पौ फटते ही शुक्लयजुर्वेदीय माध्यानंदिनी शाखा के ब्राह्मण गंगा तट पर एकत्र हुए। संयोजक और राष्ट्रपति पुरस्कृत पूर्व प्राचार्य डॉ. गणेश दत्त शास्त्री ने बताया कि यह अनुष्ठान आत्मशुद्धि, ज्ञान के प्रति समर्पण और ऋषियों के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। पं. विकास दीक्षित के आचार्यत्व में सामूहिक रूप से वेद मंत्रों का पाठ किया गया, जिसमें सूर्य से तेज और ऊर्जा मांगी गई।

हेमाद्रि संकल्प और तर्पण

शास्त्रार्थ महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. पवन कुमार शुक्ल ने बताया कि श्रावणी उपाकर्म में द्विजत्व के संकल्प का नवीनीकरण किया जाता है। इसके तहत तीर्थ अवगाहन, दशस्नान, हेमाद्रि संकल्प और तर्पण जैसे कर्म किए गए। हेमाद्रि संकल्प में भविष्य में पापों से बचने, परनिंदा न करने, हिंसा से दूर रहने, इंद्रियों का संयम और सदाचरण की प्रतिज्ञा ली गई। डॉ. शुक्ल ने कहा, “यह अनुष्ठान नई शुरुआत और ईश्वरीय योजना के अनुरूप सृष्टि निर्माण का अवसर है।”

पंचगव्य प्राशन और यज्ञोपवीत संस्कार

अनुष्ठान में दशविधि स्नान और पंचगव्य प्राशन का विशेष महत्व रहा। गाय के गोबर, दही, घी, दूध और गोमूत्र से मार्जन के साथ स्नान किया गया। इसके बाद शास्त्रार्थ महाविद्यालय के सरस्वती सभागार में गणपति और ऋषि पूजन के साथ पुराने जनेऊ को बदलकर नया जनेऊ धारण किया गया।

प्रमुख लोगों की उपस्थिति

कार्यक्रम में डॉ. गणेश दत्त शास्त्री, डॉ. अमोद दत्त शास्त्री, डॉ. पवन कुमार शुक्ल, विनय कुमार तिवारी “गुल्लू महाराज”, विशाल औढेकर, विकास दीक्षित, अशोक पाण्डेय, दिनेश शंकर दूबे, अविनाश पाण्डेय “सुट्टू महाराज”, राजेश त्रिपाठी, संतोष झा, विजय द्विवेदी, मुकुंद मुरारी पाण्डेय और अजय पाण्डेय सहित कई गणमान्य लोग शामिल हुए।

गंगा के बढ़े जलस्तर के बावजूद ब्राह्मणों का उत्साह अटल रहा। यह आयोजन काशी की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं को जीवंत करता रहा।

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