नई दिल्ली, 2 दिसंबर 2024, सोमवार। बोफोर्स घोटाले की जांच में एक नया मोड़ आ सकता है। सीबीआई जल्द ही प्राइवेट जासूस माइकल हर्शमैन से जानकारी मांगने के लिए अमेरिका को कानूनी अपील कर सकती है। इससे पहले, हर्शमैन ने 64 करोड़ रुपये के बोफोर्स रिश्वत घोटाले के बारे में भारतीय एजेंसियों के साथ महत्वपूर्ण जानकारी साझा करने की इच्छा व्यक्त की थी।
अफसरों के अनुसार, अमेरिका को न्यायिक अनुरोध भेजने के बारे में स्पेशल कोर्ट को बताया गया है। यह अदालत इस मामले की आगे की जांच के लिए सीबीआई की अर्जी पर सुनवाई कर रही है। लेटर्स रोगेटरी (एलआर) भेजने की प्रक्रिया इस साल अक्टूबर में शुरू हुई थी। इस प्रक्रिया में लगभग 90 दिन लग सकते हैं। इसका मकसद मामले की जांच के लिए जानकारी हासिल करना है।
बोफोर्स घोटाला: भारतीय राजनीति का एक काला अध्याय!
बोफोर्स घोटाला भारतीय राजनीति का एक काला अध्याय है, जिसने देश को हिलाकर रख दिया था। यह घोटाला 1980 के दशक में हुआ था और इसका भारतीय राजनीति पर गहरा असर पड़ा। 1986 में भारत सरकार ने स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स से 155 एमएम की 400 होवित्जर तोपें खरीदने का सौदा किया था। यह सौदा भारतीय सेना को आधुनिक हथियार मुहैया करने के मकसद से किया गया था। हालांकि, कुछ समय बाद यह बात सामने आई कि इस सौदे में भारी पैमाने पर रिश्वतखोरी हुई थी। इस घोटाले में राजीव गांधी परिवार के नजदीकी बताए जाने वाले इतालवी व्यापारी ओत्तावियो क्वात्रोक्की का नाम भी सामने आया था। आरोप था कि क्वात्रोक्की ने इस मामले में बिचौलिये की भूमिका अदा की थी, जिसके बदले में उसे दलाली की रकम का बड़ा हिस्सा मिला था।
बोफोर्स घोटाला: भारतीय राजनीति का एक बड़ा कलंक!
बोफोर्स घोटाला एक ऐसा मामला है जिसने भारतीय राजनीति को हिलाकर रख दिया था। यह घोटाला 1987 में स्वीडिश रेडियो द्वारा उजागर किया गया था, जिसमें बताया गया था कि बोफोर्स कंपनी ने भारतीय राजनेताओं और सेना के अफसरों को इस सौदे को हासिल करने के लिए भारी रकम दी थी। इस घोटाले में लगभग 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का सौदा शामिल था, जिसमें भारतीय अधिकारियों, राजनेताओं और बिचौलियों को भारी रिश्वत दी गई थी। इस खुलासे से भारत में सनसनी फैल गई और राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मच गया।
बोफोर्स घोटाला: एक ऐसा मामला जिसने राजीव गांधी की सरकार को गिरा दिया!
राजीव गांधी सरकार के दौरान बोफोर्स घोटाला एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया था। यह घोटाला 1,437 करोड़ रुपये के सौदे में रिश्वतखोरी के आरोपों से जुड़ा था। स्वीडिश रेडियो ने 1987 में इसका खुलासा किया था, जिसके बाद यह मामला भारत में बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया। विपक्षी पार्टियों ने राजीव गांधी की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, जिससे 1989 में उनकी सरकार गिर गई। हालांकि जांच के दौरान कोई ठोस सबूत नहीं मिले, लेकिन राजनीतिक विरोधियों ने इसे राजीव गांधी और उनकी पार्टी के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा बनाकर भुनाया।