लखनऊ, 6 जुलाई 2025: उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिर जातिगत समीकरणों का खेल तेज हो गया है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) जल्द ही अपने नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करने वाली है, और यह फैसला समाजवादी पार्टी (सपा) के ‘PDA’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) नारे की काट के रूप में देखा जा रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा के इस फॉर्मूले ने BJP को बड़ा झटका दिया, जब उसकी सीटें 62 से घटकर 33 रह गईं। अब BJP एक ऐसी रणनीति पर काम कर रही है, जो 2025 के पंचायत चुनाव और 2027 के विधानसभा चुनाव में उसकी खोई जमीन वापस दिला सके।
BJP की नई रणनीति: ‘P-D’ कार्ड
सूत्रों की मानें तो BJP, सपा के PDA के जवाब में ‘P-D’ यानी पिछड़ा (OBC) और दलित कार्ड खेलने की तैयारी में है। नए प्रदेश अध्यक्ष की जाति से पार्टी की इस रणनीति का खुलासा होगा। BJP का लक्ष्य गैर-यादव OBC और गैर-जाटव दलित वोटरों को एकजुट करना है, जो उत्तर प्रदेश की सियासत में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया, “हम ऐसा चेहरा चाहते हैं, जो न सिर्फ संगठन को मजबूत करे, बल्कि चुनावों में जीत के लिए जातिगत समीकरणों को भी साध सके।” इस रणनीति के तहत OBC और दलित समुदाय से कई दिग्गजों के नाम चर्चा में हैं। OBC वर्ग से केंद्रीय मंत्री बी.एल. वर्मा, जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, पशुपालन मंत्री धर्मपाल सिंह, राज्यसभा सांसद बाबूराम निषाद और MLC अशोक कटारिया के नाम सामने आ रहे हैं। वहीं, दलित समुदाय से पूर्व सांसद राम शंकर कठेरिया और MLC विद्यासागर सोनकर भी रेस में हैं।
इतिहास का संयोग या रणनीति?
BJP का इतिहास बताता है कि उसने अतीत में भी बड़े चुनावों से पहले OBC नेताओं को अध्यक्ष पद सौंपा है। 2017 में केशव प्रसाद मौर्य और 2022 में स्वतंत्र देव सिंह को यह जिम्मेदारी दी गई थी। मौजूदा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, जो जाट समुदाय से हैं, 2022 में स्वतंत्र देव सिंह के योगी मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद नियुक्त किए गए थे। उनका कार्यकाल इस साल की शुरुआत में खत्म हो चुका है। अब नया चेहरा चुनने की कवायद तेज है।
UP BJP के प्रवक्ता हीरो बाजपेयी ने कहा, “पार्टी नेतृत्व सबसे उपयुक्त उम्मीदवार चुनने में समय लेगा, लेकिन संगठन का काम बिना रुकावट चल रहा है।”
जाति का खेल और सियासी संदेश
उत्तर प्रदेश में जाति हमेशा से चुनावी समीकरणों का केंद्र रही है। विश्लेषकों का मानना है कि सपा के PDA फॉर्मूले ने 2024 में BJP के वर्चस्व को चुनौती दी। इसने नीचे से ऊपर तक एक ऐसा जातिगत गठबंधन बनाया, जो वोटरों को आकर्षित करने में कामयाब रहा। एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, “यह सब प्रतीकों का खेल है। नए अध्यक्ष की जाति यह संदेश देगी कि BJP किन वोटरों को प्राथमिकता दे रही है।”
P-D रणनीति के जरिए BJP न सिर्फ सपा के गठबंधन को तोड़ने की कोशिश करेगी, बल्कि पसमांदा मुसलमानों जैसे नए वोटर समूहों तक भी पहुंचने की कोशिश कर सकती है। 2025 के पंचायत चुनाव इस नई रणनीति का पहला बड़ा इम्तिहान होंगे, जिसका असर 2027 के विधानसभा चुनाव तक देखने को मिलेगा।
बदलाव का संकेत
BJP की नई नियुक्ति सिर्फ एक संगठनात्मक बदलाव नहीं, बल्कि एक सियासी मास्टरस्ट्रोक हो सकता है। यह कदम न केवल जातिगत समीकरणों को साधने की कोशिश है, बल्कि 2024 की हार के बाद BJP की नई शुरुआत का भी संकेत है। सवाल यह है कि क्या यह नया चेहरा सपा के PDA की काट ढूंढ पाएगा? आने वाले महीने इस सियासी दांव का असली रंग दिखाएंगे।