ओडिशा में भाजपा का 21 लोकसभा सीटों से कहीं अधिक ध्यान इस बार विधानसभा चुनाव पर है। बीजद सरकार के 25 वर्षों के कामकाज पर निशाना साधकर और लंबी सत्ता विरोधी लहर के फासले में भाजपा खुद को फिट करना चाहती है। यही कारण है कि चुनावी घमासान में पहली बार भाजपा और बीजद नेताओं के बीच खुलकर तीखी बयानबाजी देखने को मिल रही है।
भाजपा-बीजद के लंबे मुधर राजनीतिक रिश्तों में आई खटास स्थानीय स्तर पर भी दिखने लगी है। राज्य के बड़े भाजपा नेता जमीन पर बदलाव की उम्मीद के साथ लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि, भाजपा के लिए मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के चेहरे और छवि के सामने एक राय से कोई मजबूत चेहरा लाना फिलहाल चुनौती भरा है। बीजद नेता भी भाजपा की रणनीति को समझकर चेहरे के सवाल पर लगातार सवाल उठा रहे हैं। ओडिशा के मतदाता चार चरणों में अपने सांसद के साथ-साथ राज्य सरकार के लिए विधायकों का भी चयन करेंगे। 13 मई को पहले चरण की चार लोकसभा सीटों के साथ 28 विधानसभा सीटों पर भी मतदान हो चुका है। आमतौर पर पूर्व के चुनावों में राज्य की जनता और खुद भाजपा भी मानकर चलती थी कि नवीन पटनायक की मजबूत राजनीतिक दीवार फिलहाल टूटेगी नहीं, लेकिन अब भाजपा खुद को सामने रखकर बीजद के विकल्प के तौर पर पेश कर रही है। दोनों दलों के बीच बदले रिश्ते में भाजपा नेता बदलाव की बात कह कर बोजद की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। भाजपा के कुछ बड़े नेता जो चुनाव तो लोकसभा का लड़ रहे हैं, लेकिन उनकी निगाहें भी राज्य के बदलाव में खुद को शामिल करने पर टिकी हैं। ये भी कारण है कि ओडिशा इकाई फिलहाल चेहरे का फैसला संसदीय बोर्ड और केंद्रीय नेतृत्व पर छोड़ रही है। राज्य के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, एक चेहरा तय होने का फायदा विधानसभा चुनाव में तो मिल सकता है, लेकिन उसका नुकसान लोकसभा सीटों पर पड़ सकता है। चुनाव में विधानसभा की सीटों की संख्या तय होने के बाद भी सीएम उम्मीदवार तय हो सकता है।
भाजपा के इन चेहरों पर नजर
राज्य में केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेता धर्मेंद्र प्रधान संबलपुर से लोकसभा चुनाव लड़ रह हैं। पांच बार के सांसद और आदिवासी चेहरा जुएल उरांव सुंदरगढ़ से तो प्रवक्ता संबित पात्रा पुरी से लड़ रहे हैं। इनके अलावा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनमोहन सामल और पूर्व सांसद प्रताप सारंगी, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और अपराजिता सारंगी भी बड़े चेहरे हैं।
भाजपा की जीती लोस सीटों पर भी बीजद विधायकों का दबदबा
भाजपा ने 2019 में राज्य की आठ लोकसभा सीटें जीती थीं, लेकिन इन क्षेत्रों में आने वाली विधानसभाओं पर बड़ी संख्या में बीजद के विधायक हैं। विपक्ष के आरोपों के साथ मतदाताओं के बीच भी यही धारणा रही है कि दोनों दल एक-दूसरे को मौका देकर चुनाव लड़ते रहे हैं। भुवनेश्वर लोकसभा सीट भाजपा के पास है, लेकिन यहां सात विधानसभा सीटों में एक भी भाजपा के पास नहीं है। छह बीजद और एक कांग्रेस के पास है। बरगढ़ में सांसद भाजपा के हैं, लेकिन सातों विधानसभा सीटें बीजद के पास हैं। बालासोर में सांसद के अलावा दो विधायक भाजपा के हैं, जबकि चार विधायक बीजद के और एक निर्दलीय हैं।
मयूरभंज में सांसद के साथ भाजपा ने विधानसभा में बेहतर प्रदर्शन किया था। यहां पांच विधायक भाजपा के जीते थे, जबकि दो बीजद के। आमतौर पर लंबे समय से ओडिशा का मतदाता स्पष्ट तौर पर विधानसभा चुनाव में बीजद पर भरोसा जताता रहा है। वहीं, भाजपा ने जिन आठ लोकसभा सीटों को जीता भी है वहां मयूरभंज को छोड़कर लगभग सभी जगह बीजद विधानसभा में मजबूत है। भाजपा लोकसभा चुनाव के नतीजों को संबंधित विधानसभा क्षेत्रों में भी उतारना चाहती है।
पटनायक के सामने चुनौतियां
78 वर्ष के हो रहे नवीन पटनायक के सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं। इतने वर्ष सीएम रहने के बावजूद वह उड़िया ठीक से लिख-पढ़ नहीं सकते। दूसरा उन्होंने कोई दूसरी लाइन नहीं बनाई। उनकी विरासत पूर्व नौकरशाह और अब बीजद का प्रमुख चेहरा बने तमिल वीके पांडियन के हवाले है। भाजपा इन दोनों मुद्दों को लेकर बेहद हमलावर है।
क्या पटनायक तोड़ पाएंगे चामलिंग का रिकॉर्ड
सिक्किम के पूर्व सीएम पवन कुमार चामलिंग 12 दिसंबर, 1994 से 26 मई 2019 तक यानी लगातार 24 साल 165 दिन तक सीएम रहे। वहीं, नवीन पटनायक लगातार 24 साल 70 दिन से अधिक समय से इस पद पर हैं।
2019 विस चुनाव की स्थिति (कुल सीटें-147) | |||
पार्टी | सीटें | मत फीसदी | बदलाव |
बीजद | 112 | 44.71 | 5 घटीं |
भाजपा | 23 | 32.49 | 13 बढ़ीं |
कांग्रेस | 9 | 16.12 | 7 घटीं |
2019 विस चुनाव की स्थिति (कुल सीटें-21) | |||
पार्टी | सीटें | मत फीसदी | बदलाव |
बीजद | 12 | 42.8 | 8 घटीं |
भाजपा | 8 | 38.4 | 7 घटीं |
कांग्रेस | 1 | 13.4 | 1 बढ़ीं |