नई दिल्ली, 16 अप्रैल 2025, बुधवार। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन का इंतजार और लंबा हो सकता है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के इस महत्वपूर्ण फैसले में देरी की वजह दो राज्य—गुजरात और उत्तर प्रदेश—बने हुए हैं। सूत्रों की मानें तो इन राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव में देरी के कारण राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव अगले महीने तक टल सकता है। यह देरी न केवल संगठन के भीतर बदलाव की प्रक्रिया को प्रभावित कर रही है, बल्कि पार्टी की भविष्य की रणनीति पर भी सवाल उठा रही है।
क्यों हो रही है देरी?
बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव इस साल जनवरी में प्रस्तावित था, लेकिन अब अप्रैल के मध्य तक भी यह प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी। गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों के चयन में देरी ने इस प्रक्रिया को जटिल बना दिया है। इन राज्यों में संगठनात्मक स्तर पर सहमति और समायोजन की कमी इसका प्रमुख कारण मानी जा रही है। इसके अलावा, केंद्र सरकार और पार्टी संगठन में बड़े बदलाव की संभावना भी इस देरी को बढ़ा रही है। नए अध्यक्ष के चयन के बाद ही इन बदलावों को अमल में लाया जाएगा।
संगठन को मजबूती देने की कवायद
बीजेपी का फोकस इस बार ऐसे नेता को अध्यक्ष चुनने पर है, जो संगठन को और मजबूत कर सके। पार्टी राजनीतिक, जातिगत या क्षेत्रीय संदेश देने के बजाय संगठनात्मक दक्षता को प्राथमिकता दे रही है। नए अध्यक्ष के नेतृत्व में राष्ट्रीय महासचिवों की टीम में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। सूत्रों के अनुसार, मौजूदा महासचिवों में से आधे की छुट्टी हो सकती है, जबकि युवा और ऊर्जावान नेताओं को नई जिम्मेदारियां दी जाएंगी। केंद्र सरकार से भी कुछ नेताओं को संगठन में लाने की योजना है, जिससे पार्टी का केंद्रीय और क्षेत्रीय नेतृत्व संतुलित हो सके।
जमीनी कार्यकर्ताओं पर भरोसा
बीजेपी ने अपने संगठनात्मक चुनावों में जमीनी कार्यकर्ताओं को तरजीह दी है। जिला अध्यक्षों के चयन में 60 वर्ष की आयु सीमा तय की गई है, हालांकि कुछ अपवाद भी देखने को मिले हैं। इसके अलावा, केवल उन कार्यकर्ताओं को चुना गया है, जो कम से कम दस साल से संगठन में सक्रिय हैं। केरल में राजीव चंद्रशेखर जैसे नेता इस नियम के अपवाद रहे हैं, जो संगठन में नए चेहरों को मौका देने की रणनीति को दर्शाता है।
मोदी मंत्रिमंडल में फेरबदल की सुगबुगाहट
दूसरी ओर, बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल होने की संभावना है। सहयोगी दलों को मंत्रिमंडल में जगह देकर गठबंधन को और मजबूत करने की रणनीति बन रही है। हाल ही में एनडीए में शामिल हुई एआईएडीएमके को भी मंत्रिमंडल में स्थान मिल सकता है, जो दक्षिण भारत में बीजेपी की स्थिति को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
आगे क्या?
बीजेपी के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव केवल एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह संगठन की भविष्य की दिशा तय करने वाला कदम है। गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में संगठनात्मक स्थिरता के बाद ही इस दिशा में तेजी आएगी। नए अध्यक्ष के चयन के साथ ही पार्टी में युवा नेतृत्व को बढ़ावा और सहयोगी दलों के साथ बेहतर तालमेल की उम्मीद की जा रही है।
क्या बीजेपी इस देरी को अवसर में बदल पाएगी? यह सवाल पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। आने वाले दिन इस दिशा में कई बड़े फैसलों के गवाह बन सकते हैं।