महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे से भाजपा बमबम है। पार्टी के जबर्दस्त प्रदर्शन ने किसी दूसरे दल के लिए मुख्यमंत्री बनने की संभावना पर तकरीबन पूर्ण विराम लगा दिया है। हालांकि नब्बे फीसदी के स्ट्राइक रेट और बहुमत से चंद कदम की दूरी के बावजूद भाजपा के लिए सरकार का चेहरा तय करना और नई सरकार के गठन के कील-कांटे दूर करना आसान नहीं होगा। नतीजे के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या भाजपा पहले की तरह सीएम पद के लिए देवेंद्र फडणवीस पर दांव लगाएगी या मराठा बनाम ओबीसी की नए सियासी समीकरण को साधने की कोशिश करेगी। सिर्फ 149 सीटों पर लड़कर 90 फीसदी की विजयी स्ट्राइक रेट के साथ 132 सीटें जीतने वाली भाजपा बहुमत से महज 10 कदम दूर रही। इससे पहले पार्टी ने बिहार में 2010 के विधानसभा चुनाव में 102 सीटों पर लड़ कर 91 सीटें जीती थी। तब भी पार्टी की जीत का स्ट्राइक रेट करीब 90 फीसदी ही था।
महाराष्ट्र भाजपा के एक वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय पदाधिकारी के मुताबिक राज्य की सियासत में अचानक ओबीसी और मराठा सबसे अहम हो गए हैं। मराठा आरक्षण के सवाल पर इन दोनों के बीच तालमेल बैठाने में नाकाम रहने की कीमत पार्टी को लोकसभा चुनाव में चुकानी पड़ी थी। इस नई राजनीतिक परिस्थितियों के कारण दूसरे कई राज्यों की तरह महाराष्ट्र में भी अगड़ा वर्ग की राजनीति की राह बेहद कठिन हो गई है। ऐसे में निश्चित रूप सीएम पद का चेहरा तय करना इस बार इतना आसान नहीं होगा।
शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र चुनाव नतीजों को पूरी तरह से अप्रत्याशित और समझ से बाहर बताया। उन्होंने कहा, आशा है कि भाजपा का मुख्यमंत्री बनेगा। उद्धव ने कहा, नतीजे दर्शाते हैं कि लहर नहीं, बल्कि सुनामी थी। उन्होंने सवाल किया कि क्या परिणाम जनता को स्वीकार है। अगर स्वीकार है, तो कुछ नहीं कहा जाएग।