पटना 30 मार्च 2025, रविवार। बिहार की सियासत और भ्रष्टाचार की दुनिया में एक बार फिर हलचल मच गई है। 27 साल पुराने बिटुमेन परिवहन घोटाले में सीबीआई कोर्ट ने शनिवार को अपना फैसला सुनाया, जिसमें बिहार के पूर्व मंत्री मोहम्मद इलियास हुसैन सहित पांच लोगों को दोषी ठहराया गया। यह मामला न सिर्फ भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कानून का पहिया भले ही धीमा चलता हो, लेकिन अपनी मंजिल तक पहुंच ही जाता है।
क्या है पूरा मामला?
1994 में बिहार के पथ निर्माण विभाग के हजारीबाग डिविजन में सड़कों के निर्माण के लिए हल्दिया ऑयल रिफाइनरी से बिटुमेन (अलकतरा) मंगवाया जाना था। यह बिटुमेन हल्दिया से बरौनी होते हुए हजारीबाग पहुंचना था। लेकिन जांच में जो खुलासा हुआ, वह चौंकाने वाला था। बिटुमेन कभी अपनी मंजिल तक पहुंचा ही नहीं। ट्रांसपोर्टर ने इसे हल्दिया से लादने के बाद कोलकाता के खुले बाजार में बेच दिया और ऊपर से परिवहन शुल्क भी वसूल कर लिया। इस घोटाले में तत्कालीन मंत्री इलियास हुसैन, उनके सचिव शहाबुद्दीन बेग और तीन अन्य लोग—पवन कुमार अग्रवाल, अशोक कुमार अग्रवाल और विनय कुमार सिन्हा—शामिल पाए गए। इस सांठगांठ ने सरकार को करोड़ों रुपये का चूना लगाया।
कोर्ट का फैसला
सीबीआई कोर्ट ने सभी पांच दोषियों को तीन साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई और हर एक पर 32 लाख रुपये का भारी-भरकम जुर्माना ठोका। हालांकि, इस मामले में सात अन्य आरोपियों—केदार पासवान, गणपति रामनाथ, शीतल प्रसाद माथुर, तरुण कुमार गांगुली, रंजन प्रधान, शोभा सिन्हा और महेश चंद्र अग्रवाल—को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया। कोर्ट ने 24 जनवरी को 12 आरोपियों के बयान दर्ज किए थे और 22 मार्च को दोनों पक्षों की बहस पूरी होने के बाद फैसले की तारीख तय की थी।
घोटाले का पर्दाफाश और सीबीआई की जांच
इस घोटाले की कहानी 1997 में तब शुरू हुई, जब सीबीआई ने 7 मई को पहली एफआईआर दर्ज की। उस समय बिटुमेन घोटाले से जुड़े सात अलग-अलग मामले सामने आए थे। जांच में पता चला कि तत्कालीन पथ निर्माण मंत्री इलियास हुसैन, इंजीनियरों और कुछ निजी व्यक्तियों ने मिलकर एक सुनियोजित साजिश रची थी। सीबीआई ने 2001 में चार्जशीट दाखिल की, जिसमें तीन दर्जन से ज्यादा लोगों के नाम शामिल थे। सालों तक चली कानूनी प्रक्रिया के बाद आखिरकार 27 साल बाद इस मामले में इंसाफ का चेहरा सामने आया।
सरकार को करोड़ों का नुकसान
यह घोटाला सिर्फ कागजी खेल नहीं था, बल्कि इससे बिहार सरकार को करोड़ों रुपये की चपत लगी। सड़कें बनाने के नाम पर जो पैसा आवंटित हुआ, वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। हल्दिया से बिटुमेन लाने का ढोंग रचा गया, लेकिन असल में यह बाजार में बिक गया और इसका फायदा नेताओं, अधिकारियों और ट्रांसपोर्टरों की जेब में गया।
सबक और सवाल
यह फैसला भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ी जीत तो है, लेकिन कई सवाल भी खड़े करता है। क्या 27 साल तक इंसाफ के लिए इंतजार करना जायज है? क्या इस तरह के घोटालों को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएंगे? बिहार के इस बिटुमेन घोटाले ने एक बार फिर साबित कर दिया कि सत्ता और भ्रष्टाचार का गठजोड़ कितना खतरनाक हो सकता है। अब देखना यह है कि यह सजा भविष्य में ऐसे अपराधों पर लगाम लगा पाएगी या नहीं।