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Thursday, November 21, 2024

बिहार की मधुबनी दिग्गजों की जमीन, आज भी दशरथ मांझी का इंतजार

इसे विडंबना ही कहेंगे कि जिस मधुबनी पेंटिंग की दुनियाभर में ख्याति है, उसका मधुबनी शहर में ही कोई आसरा नहीं है। रेलवे स्टेशन पर विशालकाय पेंटिंग है, लेकिन अगर कोई इसे खरीदना चाहे तो ऑनलाइन ही सर्च करना होगा। रेलवे स्टेशन पर वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ओडीओपी) के तहत एक स्टाल पेंटिंग के लिए बनाया गया था, पर कुछ ही दिन में वहां नमकीन और भूंजा बिकने लगा। कुछ ऐसा ही इस लोकसभा क्षेत्र के साथ है। पहले कांग्रेस, फिर भाकपा और बाद में भाजपा का गढ़ रही इस सीट पर जगन्नाथ मिश्र, भोगेंद्र झा, चतुरानन मिश्र, हुकुमदेव नारायण यादव जैसे दिग्गज सांसद रहे। लेकिन दशकों से हालात जस के तस हैं। समस्याओं का पहाड़ काटने कोई दशरथ मांझी यहां नहीं आया।

भाजपा की तरफ से हुकुमदेव नारायण यादव के बेटे अशोक कुमार यादव मैदान में हैं, तो राजद ने कद्दावर नेता अली अशरफ फातमी को टिकट दिया है। फातमी शुरू से लालू प्रसाद यादव के साथ रहे और दरभंगा सीट से चार बार सांसद रहे। 2004 में केंद्र की यूपीए सरकार में राज्यमंत्री रहे। उनका लंबा अनुभव है। पहली बार 1991 में सांसद बने, लेकिन हाल में उनकी तेजस्वी यादव से अनबन हो गई। उन्हें राजद से निकाला गया, तो वे बसपा में चले गए। 2019 में वे जनता दल-यू में शामिल हो गए। वह मधुबनी से लड़ना चाहते थे। भाजपा और जद-यू के टिकट समझौते में यह सीट भाजपा के खाते में गई तो, वे फिर राजद में शामिल हो गए। पार्टी ने उन्हें मधुबनी से टिकट भी दे दिया। इस सीट से कुल 12 प्रत्याशी मैदान में हैं, पर मुकाबला भाजपा और राजद के बीच है। हालांकि ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने भी वकार सिद्दीकी के रूप में अपना प्रत्याशी उतारा है। इससे मुस्लिम वोट बंटेंगे और फातमी की राह मुश्किल हो जाएगी।

बीते तीन चुनाव से हुकुमदेव और बेटे का रहा दबदबा
पहले यह सीट दरभंगा पूर्व और जयनगर के नाम से बंटी हुई थी। दरभंगा पूर्व से 1952 और 57 में कांग्रेस के अनिरुद्ध सिन्हा सांसद रहे। 1962 में पीएसपी के योगेंद्र झा, 1967 में ससोपा के शिवचंद्र झा सांसद रहे। 1971 में जगन्नाथ मिश्र की जीत के साथ यह सीट कांग्रेस के पास वापस आई। जयनगर से 57 में कांग्रेस से श्याम नंदन मिश्र और 62 में यमुना मंडल जीते। 67 और 71 में भाकपा के भोगेंद्र झा जीते। 1977 में सीट मधुबनी हुई और जनता पार्टी से हुकुम देव नारायण यादव जीते। 80 में कांग्रेस के शफीकुल्ला जीते, पर कुछ माह बाद ही उनका निधन हो गया। उप चुनाव में जीत भोगेंद्र झा को मिली। 84 में कांग्रेस से अब्दुल हन्नान जीते। 89 और 91 में फिर भोगेंद्र जीते। 96 में सीपीआई के ही चतुरानन मिश्र जीते। 98 में कांग्रेस से शकील अहमद जीते। 99 में भाजपा के टिकट पर हुकुमदेव जीते। यह भाजपा की पहली जीत थी। 2004 में कांग्रेस के शकील फिर जीते। 2009 और 2014 में हुकुमदेव फिर जीते और 2019 में उनके बेटे अशोक यादव जीते।विज्ञापन

बेरोजगारी समस्या, बाढ़ से किसान परेशान, मेडिकल कॉलेज तक नहीं
इस सीट पर करीब 17 लाख मतदाता हैं और छह विधानसभा सीटें इससे जुड़ी हैं। लोगों की सबसे बड़ी दिक्कत रोजगार की है। साथ ही नेपाल की नदियों से हर साल आने वाली बाढ़ से किसान परेशान हैं और स्थायी समाधान चाहते हैं। रेल नेटवर्क बेहतर होने की मांग भी ज्यादातर लोगों ने की। दरभंगा तक चलने वाली ट्रेन को जयनगर तक चलाने की पुरानी मांग है।

भाजपा की तरफ से हुकुमदेव नारायण यादव के बेटे अशोक कुमार यादव मैदान में हैं, तो राजद ने कद्दावर नेता अली अशरफ फातमी को टिकट दिया है। फातमी शुरू से लालू प्रसाद यादव के साथ रहे और दरभंगा सीट से चार बार सांसद रहे। 2004 में केंद्र की यूपीए सरकार में राज्यमंत्री रहे। उनका लंबा अनुभव है। पहली बार 1991 में सांसद बने, लेकिन हाल में उनकी तेजस्वी यादव से अनबन हो गई। उन्हें राजद से निकाला गया, तो वे बसपा में चले गए। 2019 में वे जनता दल-यू में शामिल हो गए। वह मधुबनी से लड़ना चाहते थे। भाजपा और जद-यू के टिकट समझौते में यह सीट भाजपा के खाते में गई तो, वे फिर राजद में शामिल हो गए। पार्टी ने उन्हें मधुबनी से टिकट भी दे दिया। इस सीट से कुल 12 प्रत्याशी मैदान में हैं, पर मुकाबला भाजपा और राजद के बीच है। हालांकि ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने भी वकार सिद्दीकी के रूप में अपना प्रत्याशी उतारा है। इससे मुस्लिम वोट बंटेंगे और फातमी की राह मुश्किल हो जाएगी।

बीते तीन चुनाव से हुकुमदेव और बेटे का रहा दबदबा
पहले यह सीट दरभंगा पूर्व और जयनगर के नाम से बंटी हुई थी। दरभंगा पूर्व से 1952 और 57 में कांग्रेस के अनिरुद्ध सिन्हा सांसद रहे। 1962 में पीएसपी के योगेंद्र झा, 1967 में ससोपा के शिवचंद्र झा सांसद रहे। 1971 में जगन्नाथ मिश्र की जीत के साथ यह सीट कांग्रेस के पास वापस आई। जयनगर से 57 में कांग्रेस से श्याम नंदन मिश्र और 62 में यमुना मंडल जीते। 67 और 71 में भाकपा के भोगेंद्र झा जीते। 1977 में सीट मधुबनी हुई और जनता पार्टी से हुकुम देव नारायण यादव जीते। 80 में कांग्रेस के शफीकुल्ला जीते, पर कुछ माह बाद ही उनका निधन हो गया। उप चुनाव में जीत भोगेंद्र झा को मिली। 84 में कांग्रेस से अब्दुल हन्नान जीते। 89 और 91 में फिर भोगेंद्र जीते। 96 में सीपीआई के ही चतुरानन मिश्र जीते। 98 में कांग्रेस से शकील अहमद जीते। 99 में भाजपा के टिकट पर हुकुमदेव जीते। यह भाजपा की पहली जीत थी। 2004 में कांग्रेस के शकील फिर जीते। 2009 और 2014 में हुकुमदेव फिर जीते और 2019 में उनके बेटे अशोक यादव जीते।

बेरोजगारी समस्या, बाढ़ से किसान परेशान, मेडिकल कॉलेज तक नहीं
इस सीट पर करीब 17 लाख मतदाता हैं और छह विधानसभा सीटें इससे जुड़ी हैं। लोगों की सबसे बड़ी दिक्कत रोजगार की है। साथ ही नेपाल की नदियों से हर साल आने वाली बाढ़ से किसान परेशान हैं और स्थायी समाधान चाहते हैं। रेल नेटवर्क बेहतर होने की मांग भी ज्यादातर लोगों ने की। दरभंगा तक चलने वाली ट्रेन को जयनगर तक चलाने की पुरानी मांग है।

स्टेशन के बाहर यात्री विजय मंडल कहते हैं, यहां कोई काम नहीं है। किसी को भी वोट देने का मन नहीं करता। हालत यह है कि यहां सरकारी मेडिकल कॉलेज तक नहीं है। लोगों को इलाज के लिए दरभंगा जाना पड़ता है। जातीय समीकरणों की बात करें, तो इस सीट पर ब्राह्मण मतदाता 35 फीसदी हैं, मुस्लिम 19 फीसदी और निषाद दस फीसदी हैं।

कवि कोकिल व कालिदास की भूमि यानी मधुबन
मधुबनी की पहचान कवि कोकिल और कालिदास की जन्मभूमि के रूप में भी है। मधुबन का अर्थ है शहद का जंगल। इसी का अपभ्रंश मधुबनी है। कुछ जानकार यह भी कहते हैं कि इस इलाके की बोली में बड़ी मिठास है, मधु वाणी, शहद जैसी वाणी यानी मधुबनी। विदेह के राजा मिथि के नाम पर भी इसका नामकरण कुछ लोग बताते हैं।

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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