महाकुंभ नगर, 15 दिसंबर 2024, रविवार। महाकुंभ, जो कि सनातन धर्म का सबसे बड़ा त्योहार है, इसमें 13 अखाड़े हैं जो कि इसके सबसे बड़े आकर्षण हैं। इन अखाड़ों का श्रृंगार हैं इनके नागा संन्यासी। ये नागा संन्यासी सामान्य दिनों में इंसानी बस्तियों से दूर गुफाओं और कंदराओं में वास करते हैं। महाकुंभ में ये नागा संन्यासी अपनी बाकायदा टाऊन शिप बन जाते हैं। जिसकी बुनियाद जूना अखाड़े की छावनी प्रवेश यात्रा में पड़ गई है। इस बार के महाकुंभ में करीब 40 करोड़ से ज्यादा भक्तों के आने का अनुमान लगाया जा रहा है।
प्रयागराज में जनवरी 2025 में आयोजित होने जा रहे महाकुंभ में जन आस्था के सबसे बड़े आकर्षण 13 अखाड़ों का महाकुंभ नगर में प्रवेश का सिलसिला शुरू हो गया है। नागा संन्यासियों की सबसे अधिक संख्या वाले श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़े ने पूरी भव्यता और राजसी अंदाज के साथ महाकुंभ नगर में अपना नगर प्रवेश किया। जिसकी अगुवाई नागा संन्यासियों ने की है। तन में भस्म की भभूत और हाथों में अस्त्र लिए अपनी ही मस्ती में डूबे इन नागा संन्यासियों को न दुनिया की चमक धमक से लेना देना है और न धर्माचार्यों के वैभव की जिंदगी से कुछ लेना-देना है। अपनी ही धुन में डूबे इन नागा संन्यासियों के भी अपने कई वर्ग हैं। ये नागा संन्यासी अपने जीवन को भगवान की सेवा में समर्पित करते हैं और अपने जीवन को एक साधु की तरह जीते हैं।
नागा संन्यासियों की विविधता: एक अनोखी दुनिया
नागा संन्यासियों की दुनिया बहुत ही अनोखी और विविध है। इनमें कई उप जातियां हैं जो अपने आप में एक अलग ही पहचान रखती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख उप जातियां हैं दिगंबर, श्रीदिगंबर, खूनी नागा, बर्फानी नागा, खिचड़िया नागा, और महिला नागा। हरिद्वार में दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को बर्फानी नागा कहा जाता है जबकि, नासिक में दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को खिचड़िया नागा कहा जाता है।
दिगंबर और श्रीदिगंबर: दो अलग-अलग पहचान
दिगंबर और श्रीदिगंबर दो अलग-अलग उप जातियां हैं जो अपने आप में एक अलग ही पहचान रखती हैं। दिगंबर वह होते हैं जो एक लंगोटी पहनते हैं, जबकि श्रीदिगंबर एक भी लंगोटी नहीं पहनते। यह उनकी एक अलग पहचान है जो उन्हें अन्य नागा संन्यासियों से अलग बनाती है।
खूनी नागा: सबसे खतरनाक उप जाति
खूनी नागा सबसे खतरनाक उप जाति है जो पूरी तरह जूना अखाड़ा की आर्मी ब्रिगेड है। ये सैनिक की तरह होते हैं और धर्म की रक्षा के लिए खून भी बहा सकते हैं। यह उनकी एक अलग पहचान है जो उन्हें अन्य नागा संन्यासियों से अलग बनाती है।
महिला नागा: एक अलग पहचान
महिला नागा भी एक अलग पहचान रखती हैं। ये महिलाएं भी नागा संन्यासियों की तरह ही जीवन जीती हैं और धर्म की रक्षा के लिए काम करती हैं। यह उनकी एक अलग पहचान है जो उन्हें अन्य नागा संन्यासियों से अलग बनाती है। महिलाएं जब संन्यास में दीक्षा लेती हैं, तो उन्हें भी नागा बनाया जाता है. वे सभी वस्त्रधारी होती हैं। जूना अखाड़े की महिला साधुओं को ‘नागिन’ भी कहा जाता है।
नागा संन्यासियों की भव्य छावनी यात्रा: शक्ति और आध्यात्म का अद्भुत संगम
स्थानीय अखाड़ा कार्यालय मौज गिरी आश्रम से छावनी यात्रा शुरू होते ही नागा संन्यासी अपना युद्ध कौशल दिखाने लगे। किसी के हाथ में तकवती, किसी के हाथ त्रिशूल तो किसी के हाथ भाला था। हर नागा योद्धा का रूप बहुत ही निराला था।इन नागा संन्यासियों में भी सबसे शक्तिशाली नागा वो होते हैं, जो इस अखाड़े के पूजे जाने वाले दो भाला देवताओं को अपनी पीठ में रखकर चलते हैं। जिनका वजन करीब 250 किलो होता है। इन्हें अखाड़े में विशिष्ट सम्मान हासिल है।
इन नागा संन्यासियों की भव्य प्रदर्शन देखने लायक होती है। कोई घोड़े पर सवार दुंदुभी बजा रहा था, तो कोई अपनी अनसुलझी जटाओं को सुलझा रहा था। यह दृश्य बहुत ही आकर्षक और भव्य था। नागा संन्यासियों की महत्ता अखाड़े में बहुत अधिक है। ये नागा संन्यासी अखाड़े की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। ये नागा संन्यासी अखाड़े के पूजे जाने वाले देवताओं की पूजा भी करते हैं।