वाराणसी, 20 मार्च 2025, गुरुवार। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के प्रतिष्ठित सर सुंदरलाल अस्पताल में एक बड़े घोटाले ने सबको चौंका दिया है। इस सनसनीखेज मामले में अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक प्रो. कैलाश कुमार, रेडियोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. एएनडी द्विवेदी, डिप्टी रजिस्ट्रार रश्मि रंजन और पल्स डायग्नोस्टिक के एमडी मनोज कुमार शाह व निदेशक सुनैना बिहानी पर गंभीर आरोप लगे हैं। वाराणसी की एक अदालत ने इन सभी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का सख्त आदेश दिया है, जिसके बाद लंका थाने में FIR भी दर्ज हो चुकी है।
यह पूरा मामला बीएचयू अस्पताल के एक टेंडर में हुई कथित धांधली से जुड़ा है। दरअसल, डॉ. उदयभान सिंह नाम के एक चिकित्सक, जो नोबल हेल्थ सर्विस से जुड़े हैं, ने इस घोटाले की परतें उजागर कीं। उनकी शिकायत पर एसीजेएम तृतीय पवन कुमार सिंह की अदालत ने यह बड़ा फैसला सुनाया। डॉ. सिंह ने बताया कि 6 अगस्त 2024 को बीएचयू अस्पताल ने पीपीपी मोड पर डायग्नोस्टिक इमेजिंग सेवाओं के लिए एक टेंडर निकाला था। इसमें हिस्सा लेते हुए उन्होंने 19 सितंबर 2024 को अपना आवेदन जमा किया। टेंडर की तकनीकी समिति के अध्यक्ष प्रो. कैलाश कुमार थे, जबकि डॉ. द्विवेदी और रश्मि रंजन इसके सदस्य थे।
लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आया जब 30 दिसंबर 2024 को डॉ. सिंह को सूचना मिली कि उनका टेंडर खारिज कर दिया गया है। हैरान और निराश डॉ. सिंह ने इसकी तह तक जाने का फैसला किया। जांच में चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि पल्स डायग्नोस्टिक के मनोज शाह और सुनैना बिहानी ने टेंडर में फर्जी जीएसटी नंबर का इस्तेमाल किया था। इसके बावजूद उनकी कंपनी को समिति ने हरी झंडी दे दी। डॉ. सिंह का आरोप है कि इन पांचों ने मिलकर विश्वविद्यालय के धन को हड़पने की साजिश रची और टेंडर प्रक्रिया को मनमाने ढंग से प्रभावित किया।
डॉ. सिंह ने इसकी शिकायत फरवरी 2025 में बीएचयू के वरिष्ठ अधिकारियों से की और लंका थाने में तहरीर भी दी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। आखिरकार, उन्हें न्याय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा। अब कोर्ट के इस सख्त रुख के बाद मामला गरमा गया है और सभी की निगाहें इसकी अगली कड़ी पर टिकी हैं। यह मामला न सिर्फ बीएचयू की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि पारदर्शिता और ईमानदारी की मांग को भी तेज करता है।