नई दिल्ली, 27 मार्च 2025, गुरुवार: देश की सर्वोच्च अदालत ने बुधवार को एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस विवादास्पद फैसले पर रोक लगा दी, जिसे ‘असंवेदनशील और अमानवीय’ करार दिया गया। यह मामला एक नाबालिग के यौन उत्पीड़न से जुड़ा था, जिसमें हाईकोर्ट ने बलात्कार के प्रयास की परिभाषा को लेकर ऐसा तर्क दिया था, जिसने कानूनी और सामाजिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया। सुप्रीम कोर्ट ने न केवल इस फैसले को स्थगित किया, बल्कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को जिम्मेदार जज के खिलाफ ‘उचित कदम’ उठाने का भी निर्देश दिया।
क्या था हाईकोर्ट का फैसला?
17 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने एक नाबालिग के यौन उत्पीड़न के मामले में चौंकाने वाला फैसला सुनाया था। जस्टिस मिश्रा ने कहा था कि पीड़िता के स्तन पकड़ना और उसके पायजामे का कमरबंद तोड़ना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता। इस फैसले में निचली अदालत द्वारा दो आरोपियों पर लगाए गए आरोपों को संशोधित करने का आदेश दिया गया था। इस टिप्पणी ने न केवल कानूनी विशेषज्ञों को हैरान किया, बल्कि पीड़ितों के अधिकारों की वकालत करने वालों में भी गुस्सा पैदा किया।
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार
जस्टिस भूषण आर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया, जब वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने हस्तक्षेप की मांग करते हुए एक पत्र लिखा। बुधवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले की कड़ी आलोचना की। पीठ ने कहा, “यह बहुत गंभीर मामला है। यह फैसला न केवल कानून के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, बल्कि जज के भीतर संवेदनशीलता की कमी को भी उजागर करता है। हमें एक संवैधानिक अदालत के जज के खिलाफ कठोर शब्दों का इस्तेमाल करने का खेद है, लेकिन यह ऐसा मामला है जो इसकी मांग करता है।”
पीठ ने यह भी बताया कि यह फैसला कोई जल्दबाजी में लिया गया निर्णय नहीं था। इसे नवंबर में सुरक्षित रखा गया था और चार महीने बाद सुनाया गया, जिससे यह साफ है कि जज ने सोच-विचार के बाद यह लिखा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा, “फैसले के पैराग्राफ 21, 22 और 26 पूरी तरह से असंवेदनशील और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। हम इस पर कड़ी आपत्ति जताते हैं और इसे तत्काल प्रभाव से स्थगित करते हैं।”
सॉलिसिटर जनरल ने भी जताई नाराजगी
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी सुप्रीम कोर्ट की चिंता का समर्थन किया। उन्होंने कहा, “मैं इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताता हूं। यह उन मामलों में से एक है जहां हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को कार्रवाई करनी चाहिए।” उनकी यह टिप्पणी मामले की गंभीरता को और रेखांकित करती है।
आगे की कार्रवाई का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को तत्काल सूचित करने और मुख्य न्यायाधीश से इस मामले की जांच करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश को जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा के खिलाफ ‘उचित समझे जाने पर’ कार्रवाई करनी चाहिए। यह कदम न केवल इस फैसले को पलटने के लिए उठाया गया, बल्कि भविष्य में ऐसी असंवेदनशीलता को रोकने के लिए भी एक मिसाल कायम करता है।
समाज और कानून के लिए सबक
यह घटना एक बार फिर यह सवाल उठाती है कि क्या हमारे न्यायिक तंत्र में पीड़ितों, खासकर यौन उत्पीड़न के शिकार लोगों के प्रति पर्याप्त संवेदनशीलता है? सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप न केवल कानून की गरिमा को बहाल करता है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि ऐसी गलतियां बर्दाश्त नहीं की जाएंगी। अब सबकी नजरें इलाहाबाद हाईकोर्ट के अगले कदम पर टिकी हैं।