नई दिल्ली, 28 जनवरी 2025, मंगलवार। उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि पुलिस आरोपी व्यक्तियों को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 के तहत व्हाट्सऐप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से नोटिस नहीं भेज सकती। न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने यह निर्देश दिया है कि पुलिस को केवल कानून के तहत निर्धारित सेवा के माध्यम से नोटिस जारी करने के लिए उचित निर्देश जारी किए जाने चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह बिलकुल स्पष्ट है कि व्हाट्सऐप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से नोटिस जारी करने को सीआरपीसी, 1973/बीएनएसएस, 2023 के तहत मान्यता प्राप्त और निर्धारित सेवा के तरीके के विकल्प रूप में नहीं माना जा सकता। यह निर्देश तब आया जब अदालत ने मामले में नियुक्त न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा के सुझाव को स्वीकार कर लिया। लूथरा ने ऐसे उदाहरणों को चिह्नित किया जहां सीआरपीसी, 1973 की धारा 41-ए के तहत व्हाट्सऐप के माध्यम से नोटिस भेजा गया, लेकिन आरोपी जांच अधिकारी के सामने पेश नहीं हुए।
शीर्ष अदालत ने नोएडा में ईपीएफओ के क्षेत्रीय कार्यालय में सहायक भविष्य निधि आयुक्त रहे सतेंद्र कुमार अंतिल के मामले से संबंधित याचिका पर निर्देश पारित किया। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने अंतिल के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था। अदालत ने उनके मामले में कई निर्देश पारित किए थे और केंद्र को जमानत देने को सुव्यवस्थित करने के लिए ”जमानत अधिनियम” की प्रकृति में एक विशेष अधिनियम पेश करने की सिफारिश की थी।
शीर्ष अदालत ने मामले में अदालत की सहायता करने और जमानत देने, पुलिस द्वारा नोटिस जारी किए जाने आदि सहित विभिन्न मुद्दों पर सुझाव प्रस्तुत करने के लिए लूथरा को नियुक्त किया था। पीठ ने सभी उच्च न्यायालयों को अपनी संबंधित समिति की बैठकें आयोजित करने का निर्देश दिया ताकि उसके पूर्व के और वर्तमान दोनों निर्णयों को ”सभी स्तरों पर” मासिक आधार पर लागू किया जाना एवं संबंधित अधिकारियों द्वारा मासिक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत किया जाना सुनिश्चित हो सके।
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल और सभी राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को तीन सप्ताह के भीतर अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।