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Thursday, June 19, 2025

कोविड-19 कोवैक्सिन के दुष्प्रभाव बताकर फंसे बीएचयू के वैज्ञानिक, कंपनी ने ठोका 5 करोड़ मानहानि

वाराणसी, 28 सितंबर। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के शोधकर्ताओं द्वारा कोविड-19 वैक्सीन कोवैक्सिन रिसर्च कर उसके दुष्प्रभावों को बताना महंगा पड़ गया है। वैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक ने बीते 13 सितंबर को BHU के 11 वैज्ञानिकों पर 5 करोड़ रुपए के मानहानि का दावा किया है। बीएचयू के प्रो.शंख शुभ्रा चक्रवर्ती सहित रिसर्च में शामिल 11 वैज्ञानिकों पर भारत बायोटेक कंपनी द्वारा मानहानि का दावा ठोक जाने से विश्वविद्यालय में हड़कंप मचा हुआ हुआ। वही रिसर्च को लेकर नेचर के ड्रग सेफ्टी जर्नल के एडिटर ने बताया कि लोगों पर वैक्सीन के इफेक्ट को गलत तरीके से दिखाया गया है। ऐसे में इस रिसर्च को 27 सितंबर को पब्लिक डोमेन से हटा लिया गया है। ये रिसर्च IMS BHU के फार्माकोलॉजी और जीरियाट्रिक विभाग में संयुक्त रूप से किया गया था।

BHU के वैज्ञानिक प्रोफेसर शंख शुभ्रा चक्रवर्ती सहित 11 वैज्ञानिकों की टीम ने 635 किशोर और 291 वयस्क शामिल भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ पर एक टेलीफोनिक रिसर्च किया था। इसका रिसर्च पेपर 13 मई को कौवैक्सीन के ‘सुरक्षा विश्लेषण’ (बीबीवी152) नाम से जर्नल में प्रकाशित हुआ था। इसमें इसके साइड इफेक्ट की चर्चा थी और इसे एक साल में कम्प्लीट होना बताया गया था।

बीएचयू के वैज्ञानिकों के रिसर्च में कोवैक्सीन के प्रकाशन के बाद ही हुए लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने इसे बड़ा मुद्दा बनाकर बीजेपी को घेरा। सोशल मीडिया से लेकर सरकार पर विपक्ष ने चौतरफा हमला किया और लोकसभा चुनाव में विपक्ष सत्ता पक्ष पर हावी हो गया था। रिसर्च पेपर की प्रतियां प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखाई जाने लगी थी। इस पर उसी समय ICMR ने प्रतिबंध की मांग की थी। क्योंकि इस रिसर्च में ICMR का भी नाम था। 28 मई को इस लिखित मांग के जवाब में वैज्ञानिकों ने नाम हटाने की बात कही थी। ICMR का नाम रिसर्च में यूज करने पर उसने IMS BHU के डायरेक्टर प्रोफेसर एसएन संखवार को नोटिस भेजा था। नोटिस का जवाब मांगा गया था कि यह रिसर्च कैसे किया गया? नोटिस के बाद डायरेक्टर ने एक जांच कमेटी बनाकर इस रिसर्च को आधा अधूरा बताया था।

स्टडी में वैक्सीन से होने वाली 3 समस्याएं सामने आईं…

2). स्किन से जुड़ी बीमारियां देखी गईं स्टडी में पाया गया कि स्टडी में हिस्सा लेने वाले टीनएजर्स में स्किन से जुड़ी बीमारियां (10.5%), नर्वस सिस्टम से जुड़े डिसऑर्डर (4.7%) और जनरल डिसऑर्डर (10.2%) देखे गए। वहीं, वयस्कों में जनरल डिसऑर्डर (8.9%), मांसपेशियों और हड्डियों से जुड़े डिसऑर्डर (5.8%) और नर्वस सिस्टम से जुड़े डिसऑर्डर (5.5%) देखे गए।

1). लोगों में सांस संबंधी इन्फेक्शन बढ़ रहा स्टडी करने वाले शंख शुभ्रा चक्रवर्ती ने कहा, “हमने उन लोगों का डेटा कलेक्ट किया जिन्हें वैक्सीन लगे एक साल हो गया था। 1,024 लोगों पर स्टडी हुई। इनमें से 635 किशोर और 291 वयस्क शामिल थे।” स्टडी के मुताबिक, 304 (47.9%) किशोरों और 124 (42.6%) वयस्कों में सांस संबंधी इन्फेक्शन (अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन) देखे गए। इससे लोगों में सर्दी, खांसी जैसी समस्याएं देखी गईं।

3). गुलियन बेरी सिंड्रोम भी हो सकता है कोवैक्सिन के साइड इफेक्ट्स पर हुई स्टडी में 4.6% किशोरियों में मासिक धर्म संबंधी असामान्यताएं (अनियमित पीरियड्स) देखी गईं। प्रतिभागियों में आंखों से जुड़ी असामान्यताएं (2.7%) और हाइपोथायरायडिज्म (0.6%) भी देखा गया। वहीं, 0.3% प्रतिभागियों में स्ट्रोक और 0.1% प्रतिभागियों में गुलियन बेरी सिंड्रोम की पहचान भी हुई।

क्या है गुलियन बेरी सिंड्रोम

गुलियन बेरी सिंड्रोम बीमारी से पीड़ित लोगों की इम्यूनिटी अपने शरीर के इम्यूनिटी के खिलाफ काम करने लगती है। इसलिए इसे ऑटो इम्यून डिसऑर्डर की श्रेणी में रखा गया है। इस बीमारी से पीड़ितों में कमजोरी के अलावा हाथ और पैरों में झुनझुनी का महसूस करना बताया जाता है।
दरअसल शुरूआत में सांस संबधी बीमारी भी महसूस होती है लेकिन लंबे समय के बाद शरीर पूरी तरह विकलांग हो सकता है।

भारत बायोटेक का दावा, कोवैक्सिन का कोई साइड इफेक्ट नहीं

भारत बायोटेक का दावा है कि कोवैक्सिन की सुरक्षा का मूल्यांकन देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने किया है। कोवैक्सिन बनाने से लगाने तक लगातार इसकी सेफ्टी मॉनिटरिंग की गई थी। कोवैक्सिन के ट्रायल से जुड़ी सभी स्टडीज और सेफ्टी फॉलोअप एक्टिविटीज से कोवैक्सिन का बेहतरीन सेफ्टी रिकॉर्ड सामने आया है। अब तक कोवैक्सिन को लेकर ब्लड क्लॉटिंग, थ्रॉम्बोसाइटोपीनिया, TTS, VITT, पेरिकार्डिटिस, मायोकार्डिटिस जैसी किसी भी बीमारी का कोई केस सामने नहीं आया है। कंपनी ने कहा है कि अनुभवी इनोवेटर्स और प्रोडक्ट डेवलपर्स के तौर पर भारत बायोटेक की टीम यह जानती थी कि कोरोना वैक्सीन का प्रभाव कुछ समय के लिए हो सकता है, पर मरीज की सुरक्षा पर इसका असर जीवनभर रह सकता है। यही वजह है कि हमारी सभी वैक्सीन में सेफ्टी पर हमारा सबसे पहले फोकस रहता है।

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