मुंबई, 7 जुलाई 2025: महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर चल रहे विवाद ने एक नया मोड़ ले लिया है। भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार और गायक दिनेश लाल यादव, जिन्हें प्यार से ‘निरहुआ’ कहा जाता है, ने ठाकरे बंधुओं (उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे) को खुली चुनौती दे डाली है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के कार्यकर्ताओं द्वारा सड़कों पर भोजपुरी भाषियों के खिलाफ कथित मारपीट की घटनाओं के बाद निरहुआ का यह बयान आया है। उन्होंने ठाकरे बंधुओं से कहा, “अगर हिम्मत है तो मुझे भोजपुरी बोलने की वजह से महाराष्ट्र से बाहर निकालकर दिखाएं!” इस चुनौती का मनसे ने करारा जवाब दिया है, जिसमें धमकी भरे लहजे में “गालों पर तमाचा” मारने की बात कही गई है।
निरहुआ का दिलेर बयान: “भारत की खूबसूरती है उसकी भाषाएं”
निरहुआ ने इस विवाद को न सिर्फ अपनी व्यक्तिगत लड़ाई बनाया, बल्कि इसे भारत की सांस्कृतिक विविधता से जोड़कर एक बड़ा संदेश दिया। उन्होंने कहा, “मैं मराठी नहीं बोलता, भोजपुरी बोलता हूं। मैं महाराष्ट्र में ही रहूंगा। गरीबों को क्यों निकाला जा रहा है? भारत की सुंदरता उसकी विभिन्न भाषाओं में है। क्या कुछ लोग इस खूबसूरती को खत्म करना चाहते हैं?” निरहुआ का यह बयान भाषा के नाम पर बांटने वाली राजनीति के खिलाफ एक तीखा प्रहार है। उन्होंने साफ कहा कि भारत का हर नागरिक अपनी भाषा और संस्कृति के साथ कहीं भी रहने का हकदार है।
मनसे का पलटवार: “महाराष्ट्र आकर दिखाओ!”
निरहुआ की इस ललकार का जवाब देने में मनसे के नेता यशस्वी किलेदार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “उत्तर प्रदेश में बैठकर बयानबाजी मत करो, महाराष्ट्र आकर अपनी चुनौती को साबित करो।” किलेदार ने चेतावनी दी कि मनसे कार्यकर्ता निरहुआ को मुंबई की सड़कों पर ही जवाब देंगे। उन्होंने बीजेपी पर भी निशाना साधा और आरोप लगाया कि बीजेपी मराठी एकता से डरती है और इसलिए निरहुआ जैसे लोगों को बढ़ावा दे रही है। किलेदार ने धमकी भरे अंदाज में कहा, “निरहुआ को उनकी चुनौती का परिणाम पता चल जाएगा। मनसे कार्यकर्ता उनके गालों पर तमाचा मारेंगे।”
आजमगढ़ में हार, लेकिन निरहुआ का जज्बा बरकरार
दिनेश लाल यादव सिर्फ भोजपुरी सिनेमा के हीरो ही नहीं, बल्कि राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने आजमगढ़ से समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव के खिलाफ ताल ठोकी थी, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके, निरहुआ का जोश और जुनून कम नहीं हुआ है। उनकी यह चुनौती न केवल ठाकरे बंधुओं के लिए, बल्कि उन तमाम लोगों के लिए है जो भाषा और क्षेत्र के नाम पर समाज को बांटने की कोशिश करते हैं।
क्या है विवाद की जड़?
यह पूरा विवाद महाराष्ट्र में मराठी भाषा और संस्कृति को लेकर मनसे की सख्त नीतियों से शुरू हुआ। मनसे लंबे समय से गैर-मराठी भाषियों, खासकर उत्तर भारतीयों, के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाती रही है। हाल की कुछ घटनाओं में मनसे कार्यकर्ताओं पर भोजपुरी बोलने वालों के साथ मारपीट के आरोप लगे हैं। निरहुआ का बयान इसी के खिलाफ एक मजबूत प्रतिक्रिया है, जो न केवल व्यक्तिगत साहस को दर्शाता है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता की वकालत भी करता है।
भारत की आत्मा है उसकी विविधता
निरहुआ का यह बयान हमें याद दिलाता है कि भारत की ताकत उसकी विविधता में है। भोजपुरी, मराठी, हिंदी, तमिल या कोई अन्य भाषा—ये सभी भारत की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं। भाषा के नाम पर नफरत फैलाने की बजाय हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए। यह विवाद भले ही दो पक्षों के बीच की तकरार से शुरू हुआ हो, लेकिन यह हमें एक गहरे सवाल की ओर ले जाता है—क्या हम अपनी विविधता को ताकत बनाएंगे या इसे कमजोरी बनने देंगे?
इस जंग में अगला कदम क्या होगा? क्या निरहुआ अपनी बात पर कायम रहेंगे, या मनसे का जवाब और तीखा होगा? यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विवाद कहां तक जाता है। तब तक, निरहुआ की यह ललकार हर उस शख्स के लिए प्रेरणा है जो अपनी पहचान और भाषा के लिए बिना डरे खड़ा होना चाहता है।