लखनऊ, 6 अगस्त 2025: वृंदावन के विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन को लेकर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक अहम शर्त रखी है। सरकार ने साफ कहा कि मंदिर प्रबंधन के लिए गठित होने वाली अंतरिम समिति का नेतृत्व केवल सनातनी हिंदू को ही सौंपा जाए। इस शर्त ने मामले को नया मोड़ दे दिया है, क्योंकि इसका मतलब है कि अन्य पंथ या धर्म को मानने वाले इस समिति के प्रमुख नहीं बन सकेंगे।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जयमाला बागची की पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने यह रुख स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि सरकार को सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज की अगुवाई में अंतरिम समिति के गठन पर कोई आपत्ति नहीं है, बशर्ते समिति का प्रमुख सनातनी हिंदू हो। यह समिति मंदिर के प्रशासन, फंड प्रबंधन और विकास कार्यों की देखरेख करेगी, जब तक कि इलाहाबाद हाई कोर्ट बांके बिहारी कॉरिडोर निर्माण और अन्य सुविधाओं से संबंधित यूपी सरकार के अध्यादेश पर फैसला नहीं सुना देता।
कॉरिडोर निर्माण और अध्यादेश पर विवाद
योगी सरकार ने बांके बिहारी मंदिर के लिए एक भव्य कॉरिडोर बनाने का प्रस्ताव रखा है, जिसके लिए फंडिंग का आधा हिस्सा सरकार और आधा मंदिर ट्रस्ट द्वारा वहन किया जाएगा। इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए लाए गए अध्यादेश को मंदिर प्रशासन ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है। सरकार का तर्क है कि काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लिए भी इसी तरह की नीति अपनाई गई थी, जो सफल रही।
“मंदिर की गरिमा और पवित्रता सर्वोपरि”
यूपी सरकार ने अपने पक्ष में तर्क दिया कि समिति का प्रमुख सनातनी हिंदू होने से श्री बांके बिहारी जी महाराज की गरिमा और पवित्रता बनी रहेगी। यह शर्त मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था और परंपराओं को संरक्षित करने के लिए रखी गई है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित होने वाली अंतरिम समिति तब तक मंदिर का प्रबंधन संभालेगी, जब तक अध्यादेश की वैधता पर अंतिम फैसला नहीं हो जाता।
इस मामले ने धार्मिक और प्रशासनिक हलकों में चर्चा तेज कर दी है। अब सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के अगले कदम और समिति के गठन पर टिकी हैं। क्या यह शर्त मंदिर प्रबंधन के लिए एक नया मानक स्थापित करेगी? यह सवाल हर किसी के जेहन में है।