नई दिल्ली, 30 जुलाई 2025: मथुरा के विश्व प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन और कॉरिडोर परियोजना से जुड़े विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने गोस्वामी परिवार के वकीलों को कड़ी फटकार लगाई है। मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “कल ही हमने इस मामले को खारिज कर दिया था। इसे आज फिर से उठाना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ऐसी चालबाजियां बंद कीजिए।” कोर्ट ने प्रक्रियात्मक हेराफेरी पर सख्त नाराजगी जताते हुए गोस्वामी पक्ष को अवमानना की कार्रवाई की चेतावनी दी।
मामले की पृष्ठभूमि
श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन और कॉरिडोर परियोजना को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी “श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास अध्यादेश, 2025” के खिलाफ मंदिर प्रबंधन समिति और गोस्वामी परिवार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह अध्यादेश मंदिर की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन करता है और संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 का उल्लंघन है। मंदिर, जो स्वामी हरिदास के वंशजों द्वारा पीढ़ियों से संचालित होता आया है, को निजी मंदिर बताते हुए गोस्वामी समाज ने सरकारी हस्तक्षेप का विरोध किया है।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सीजेआई बी.आर. गवई, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने सुनवाई के दौरान गोस्वामी पक्ष के वकीलों पर नाराजगी जाहिर की। कोर्ट ने कहा कि एक ही मामले को बार-बार अलग-अलग पीठों के समक्ष पेश करना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। पीठ ने स्पष्ट किया, “अगर इस तरह की प्रक्रियात्मक हेराफेरी दोबारा हुई, तो अवमानना की कार्रवाई की जाएगी।” कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि मामले की सुनवाई अब सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ही करेगी, ताकि एकरूपता बनी रहे।
अध्यादेश और कॉरिडोर विवाद
उत्तर प्रदेश सरकार ने मंदिर के प्रबंधन और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए 11 सदस्यीय ट्रस्ट के गठन का प्रस्ताव रखा है, जिसमें सरकारी और गैर-सरकारी सदस्य शामिल होंगे। सरकार का दावा है कि इससे मंदिर की व्यवस्था बेहतर होगी और कॉरिडोर परियोजना से भक्तों को सुविधा मिलेगी। हालांकि, मंदिर प्रबंधन समिति और गोस्वामी परिवार इसे निजी मंदिर के प्रशासन में सरकारी दखल मानते हैं। याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के 15 मई 2025 के उस आदेश को भी चुनौती दी है, जिसमें सरकार को कॉरिडोर के लिए मंदिर निधि से 300 करोड़ रुपये का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी।
पिछले आदेशों पर विवाद
गोस्वामी परिवार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का 15 मई का आदेश उन्हें पक्षकार बनाए बिना पारित किया गया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस मामले को अन्य लंबित याचिकाओं के साथ समेकित करने का निर्देश दिया, ताकि सभी पक्षों की सुनवाई एक साथ हो सके। कोर्ट ने यह भी पूछा था कि देश में कितने मंदिरों का प्रबंधन सरकार ने अपने नियंत्रण में लिया है, जिसका जवाब याचिकाकर्ताओं को देना बाकी है।