✍️ विकास यादव
वाराणसी, 22 नवंबर 2024, शुक्रवार। मार्गशीर्ष षष्ठी पर गुरुवार को रामेश्वरम में आयोजित लोटा-भंटा मेले में काशीवासियों ने भोलेनाथ को बाटी-चोखा का भोग लगाया। बनारसी संस्कृति की अनोखी झलक दिखाई देने वाला यह मेला शहर के घुमक्कड़ मिजाज का प्रमाण है। लोटा-भंटा मेले में काशीवासियों ने भगवान भोलेनाथ को खुश करने के लिए विशेष पूजा-अर्चना की। इस मेले का आयोजन हर साल मार्गशीर्ष की षष्ठी तिथि पर किया जाता है, जो बनारसी संस्कृति की महत्वपूर्ण परंपरा है।
वरुणा नदी के कछार पर लगा महामेला
वरुणा नदी के कछार पर लगे लोटा-भंटा मेले में काशीवासियों ने बड़े उत्साह के साथ भाग लिया। मेले के दौरान वरुणा नदी में स्नान करने के बाद रामेश्वर महादेव सहित विभिन्न देवालयों में दर्शन-पूजन किया गया। इसके बाद लोगों ने बाटी-चोखा का प्रसाद ग्रहण किया और संबंधियों संग मिलकर आनंद मनाया। जंसा के रामेश्वरम मेला क्षेत्र में तीन किमी पहले से ही जाम की स्थिति रही, लेकिन लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ।
रामेश्वर मेला: श्रद्धालुओं की भीड़ से सजा मेला स्थल
गुरुवार अलसुबह से ही श्रद्धालु रामेश्वर मेले में शामिल होने के लिए पहुंचने लगे। हजारों लोगों के आवागमन से रामेश्वर, पांचों शिवाला, रसूलपुर, चक्का सहित आसपास के कई गांव के बगीचों में भीड़ दिखी। रामेश्वर की सभी धर्मशालाएं बुधवार की देर रात्रि से ही भर गई थीं। मेले में शामिल होने के लिए श्रद्धालुओं ने अपने परिवार के साथ भाग लिया और भगवान का आशीर्वाद लिया।
लोटा-भंटा मेला: भगवान राम की परंपरा का निर्वहन
लोटा-भंटा मेले का महात्म्य भगवान राम से जुड़ा है, जिन्होंने काशी की पंचक्रोश परिक्रमा की थी। पिता राजा दशरथ को श्रवण कुमार के श्राप से मुक्त कराने के लिए भगवान राम ने लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के साथ परिक्रमा की। रावण वध के बाद ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति के लिए मां सीता और लक्ष्मण के साथ प्रदक्षिणा की। ब्रह्महत्या के प्रायश्चित के लिए श्रीराम ने अन्न का त्याग कर दिया और काशी में एक मुट्ठी रेत का शिवलिंग बनाकर एक लोटा जल से पूजा की। भगवान शिव को बाटी-चोखा का भोग लगाने के बाद श्रीराम ने वही प्रसाद ग्रहण किया। तब से लोटा-भंटा मेला का आयोजन स्वतःस्फूर्त होने लगा, जो हर साल मार्गशीर्ष की षष्ठी तिथि पर आयोजित किया जाता है।
पुत्र प्राप्ति की कामना पूरी होती है
रामेश्वर तीर्थ पर अगहन महीने की षष्ठी तिथि पर स्नान और दर्शन-पूजन के साथ रात्रि प्रवास करने से नि:संतान दंपतियों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है, ऐसी मान्यता है। इस कामना से पूर्वांचल के अलावा बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड आदि राज्यों से भी बड़ी संख्या में लोग लोटा-भंटा मेले में पहुंचते हैं। लोटा-भंटा मेला न केवल धार्मिक महत्व का है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व भी रखता है। इस मेले में शामिल होकर लोग अपनी कामनाओं को पूरा करने की आशा रखते हैं और भगवान का आशीर्वाद लेते हैं।