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Friday, May 9, 2025

बलूचिस्तान – सतत संघर्ष / ३

  • प्रशांत पोळ
बलुचोंका पहला संघर्ष १९५५ तक चला. बाद में १९५८ – १९५९ में दूसरी बार बलूच लोगों ने विद्रोह किया. तीसरा संघर्ष साठ के दशक में हुआ. पाकिस्तान के दो टुकड़े होने के बाद चौथा संघर्ष १९७३ – १९७७ के बीच हुआ.
इन सभी संघर्षों में कोई एक व्यक्ति सामने आता था, बलूच लोगों को संगठित करता था और पाकिस्तान सरकार से संघर्ष करता था. यही स्वरूप कमोबेश सभी संघर्षों का रहा. किन्तु इक्कसवी शताब्दी के प्रारंभ में यह चित्र बदला. बलुचों ने अपना एक संगठन बनाया, जो सरकार से लड़ सके. और उसके बाद तो इतिहास बदल गया….
सन १९७३ – ७४ के पाकिस्तानी सेना और बलूच गुरिल्लों के बीच हुए भीषण संघर्ष ने अनेक समीकरण बदल दिये. इसी संघर्ष के परिणामस्वरूप, बलूच लोगों का आतंकवादी संगठन – बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी खड़ा हुआ. वर्तमान में पाकिस्तान, ब्रिटन और अमेरिका ने इस संगठन को ‘आतंकवादी संगठन’ घोषित किया हैं.
वैसे आधिकारिक रूप से यह संगठन सन २००० में अस्तित्व में आया. किन्तु इसका अनौपचारिक गठन, १९७३ से प्रारंभ हुए बलूचिस्तान के सशस्त्र स्वातंत्र्य युध्द के समय ही हो गया था. ऐसा माना जाता हैं की सोवियत रशिया की जासूसी एजेंसी के दो जासूसों ने, इस संगठन को खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसलिए प्रारंभ में बी एल ए (बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी) का झुकाव मार्क्सवाद की ओर था. इनके कुछ अधिकारियों को रशिया ने मॉस्को में प्रशिक्षण भी दिया था. किन्तु कालांतर में इन लड़ाकुओं के दिमाग से साम्यवाद का भूत जाता रहा. मुख्यतः बुगती और मर्री, इन दो प्रमुख समुदायों में से ही बी एल ए (बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी) का नेतृत्व उभरा हैं.
चीन के वन बेल्ट – वन रोड परियोजना प्रारंभ होने के कुछ वर्ष पहले, पाकिस्तान ने ग्वादर बंदरगाह को विकसित करने की योजना बनाई. अर्थात इस योजना के पीछे चीन था. आर्थिक रूप से और सामरिक रूप से भी. ग्वादर बंदरगाह चीन को ही विकसित करना था. इसलिए उसने बड़ी संख्या में चीनी मजदूर ग्वादर में भेजे. सन २००४ में बी एल ए ने इन चीनी मजदूरों पर जबरदस्त आक्रमण किया. चीन के दवाब मे, पाकिस्तान को यहाँ पर बीस हजार अतिरिक्त जवान तैनात करने पड़े.
दिनों दिन बी एल ए, अस्त्र – शस्त्रों के मामले में शक्तिशाली हो रही थी. अभी भी पाकिस्तान में इस संगठन पर प्रतिबंध नहीं था. लेकिन १५ दिसंबर २००५ की उस आतंकवादी घटना ने सारे समीकरण बदल दिये. उस दिन जनरल मुशर्रफ, बलूचिस्तान के दौरे पर थे. वह कोहलू एजेंसी इलाके में स्थानीय वनवासियों की एक सभा को संबोधित कर रहे थे. तभी, भरी सभा में रॉकेट गिरने लगे. मुशर्रफ बाल बाल बचे. अनेक लोगों की मौत हुई. घटना के दो घंटे बाद, क्वेट्टा के प्रेस क्लब में ‘मिराक बलूच’ का फोन आया. उसने कहा की ‘वह बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी का प्रवक्ता हैं, और कोहलू में उन्होने ही रॉकेट दागे हैं. ‘
इस घटना ने पाकिस्तानी सेना को विचलित कर दिया. उन्होने बलूचिस्तान में कड़े कदम उठाए. अनेक बलूचियों को बी एल ए की संबंधता के संदेह पर सीधे मार डाला. अनेकों को कैद में डाला. ७ अप्रैल, २००६ को पाकिस्तान ने बी एल ए पर प्रतिबंध लगाया. इसी को देखकर ब्रिटेन ने १७ जुलाई, २००६ को बी एल ए को प्रतिबंधित किया. हालांकि ब्रिटेन ने बी एल ए के नेता हर्बीयार मर्री को शरणार्थी के रूप में राजनीतिक शरण दी हैं. लेकिन पाकिस्तान के सबसे निकट के मित्र अमेरिका ने काफी विलब के बाद, २ जुलाई २०१९ में बी एल ए पर पाबंदी लगाई.
लेकिन प्रतिबंध के बाद, बी एल ए की हिंसक गतिविधियों में जबरदस्त वृध्दी हुई –
१४ जून २०१९ को उन्होने कलात के एक स्कूल टीचर को गोली से उड़ा दिया. उसने बलूच राष्ट्रगीत गाने से मना किया, और यही उसके मौत का कारण बना.
इस घटना के डेढ़ महीने बाद, बी एल ए की लड़ाकुओं ने १७ पाकिस्तानी पुलिस कर्मियों को अगवा कर लिया. यह करते समय एक पुलिस कर्मी को वही मार गिराया. तीन सप्ताह बाद, बी एल ए के लड़ाकुओं ने उन १५ पुलिस कर्मचारियों को मार गिराया और सोलहवे को यह दर्दनाक दास्तां सुनाने छोड़ दिया. ११ मार्च, २०२५ को, क्वेटा से पेशावर जा रही जाफर एक्सप्रेस का बीएलए के सैनिकों ने अपहरण कर लिया. इस घटना मे पाकिस्तान सुरक्षा बलों के सैनिकों सहित अनेक यात्री भी मारे गए. इसके ठीक ५ दिन बाद, १६ मार्च को, बीएलए की मजीद ब्रिगेड ने पाकिस्तानी सेना के काफिले पर भयंकर आक्रमण किया. 90 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए. ऐसी अनेक आतंकवादी घटनाएं हैं, जिसे बी एल ए ने अंजाम दिया हैं.
विशेषतः बी एल ए के हमले चीनी अधिकारियों, मजदूरों और पाकिस्तानी सेना / पुलिस पर ही होते हैं. बलूच लोगों में पाकिस्तानियों के प्रति इतनी ज्यादा नफरत हैं, की बी एल ए के हमलावरों ने १५ जून २०१३ को बलूचिस्तान के झियारत में स्थित ‘कायदे आझम रेसिडेंसी’ (जिसे ‘झियारत रेसिडेंसी’ भी कहा जाता हैं), को रॉकेट के सहारे तबाह कर दिया. इस स्थान पर पाकिस्तान के संस्थापक, कायदे – आझम जीना, उनके जीवन के अंतिम क्षणों में रुके थे.
(हालांकि नवाज शरीफ के मुख्यमंत्री रहते, अगले एक वर्ष में ही, इस झियारत रेसिडेंसी को पुनः पहले के स्वरूप में बांधा गया. )
इन बीस वर्षों के प्रवास में बी एल ए में अनेक उतार – चढ़ाव आए. टूट फूट भी हुई. किन्तु फिर भी, आज भी बी एल ए, बलूचिस्तान को स्वतंत्र कराने, हिंसक रूप से संघर्षरत हैं.
बी एल ए के अलावा ‘बलोच लिबरेशन फ्रंट’ भी बलूचिस्तान की स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत हैं. किसी जमाने में ताकतवर रहा यह लड़ाकू संगठन, डॉ. जुम्मा खान मर्री ने सन १९६४ में बनाया. तब वे दमास्कस (सीरिया) में थे. इसलिए इसका मुख्यालय दमास्कस ही था. बाद में अफगानिस्तान और रशिया की मदद से, बी एल एफ का मुख्यालय अफगानिस्तान बना.
लेकिन बाद में डॉ. जुम्मा खान के साथ पाकिस्तानी अधिकारियों ने सब ठीक से जमा लिया. इसलिए बी एल एफ के अनेक लड़ाकू सैनिक, बी एल ए में शामिल हो गए, और जुम्मा खान को पाकिस्तानी सेना ने भारत के विरोध में बोलने के लिए बाध्य किया.
अर्थात यह बात जरूर हैं की बलूचिस्तान के लोगों में पाकिस्तान के प्रति समर्पण की भावना न पहले कभी थी, न अब हैं. आज भी बलूच नागरिक विविध माध्यमों से अपने स्वतंत्रता के लिए प्रयास कर रहा हैं. किन्तु यह अब कठिन हो चला हैं. बलूचिस्तान के एक बड़े भूभाग पर चीन का अप्रत्यक्ष कब्जा हैं. ग्वादर बन्दरगाह तो उनका हैं ही, साथ में चीन – पाकिस्तान का जो आर्थिक कॉरिडोर बन रहा हैं, उसका बहुत बड़ा हिस्सा, बलूचिस्तान से गुजरता हैं. बलूचिस्तानके चौथे बडे शहर, हब में चीन १३२० मेगा वॉट का पॉवर प्लांट लगा रहा हैं, जिसकी लागत ९७० मिलियन यू एस डॉलर्स हैं. ग्वादर में भी उसने ३३० मेगा वॉट का पावर प्लांट लगाया हैं. ग्वादर बंदरगाह तक बन रहे एक्सप्रेस वे का पूरा खर्चा चीन उठा रहा हैं. अपने इस निवेश को सुरक्षित रखने के लिए, चीन की पुरजोर कोशिश हैं, की बलूचिस्तान में अलगाववादी तत्वों का खात्मा हो.
इसलिए अभी बलूचिस्तान की स्वतंत्रता चाहने वालों को केवल पाकिस्तान से नहीं लड़ना हैं. चीन से भी उनको दो – दो हाथ करने पड़ेंगे…!
  • प्रशांत पोळ

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