नई दिल्ली, 23 जुलाई 2025: देश के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसने न केवल संसद बल्कि पूरे राजनीतिक गलियारे में हलचल मचा दी। मानसून सत्र के दौरान दिनभर सदन की कार्यवाही को कुशलता से संचालित करने वाले धनखड़ ने शाम होते-होते स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया। हालांकि, विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस ने इस कारण को सिरे से खारिज करते हुए इसे गहरे राजनीतिक टकराव का परिणाम बताया है।
सोमवार को धनखड़ ने न केवल सदन की कार्यवाही को प्रभावी ढंग से संभाला, बल्कि विपक्षी सांसदों से भी सक्रिय संवाद किया। ऐसे में उनके अचानक इस्तीफे ने कई सवाल खड़े कर दिए। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, “जब धनखड़ दिनभर पूरी तरह फिट और सक्रिय थे, तो स्वास्थ्य कारणों का हवाला देना तार्किक नहीं लगता। इसके पीछे जरूर कोई गंभीर राजनीतिक कारण है।” विपक्ष का एक धड़ा मानता है कि यह इस्तीफा सत्तारूढ़ दल और धनखड़ के बीच अंदरूनी मतभेद या किसी बड़े सियासी दबाव का नतीजा हो सकता है।
महाभियोग प्रस्ताव और बढ़ता विवाद
इस्तीफे से कुछ घंटे पहले धनखड़ ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था। दोपहर करीब 2 बजे यह खबर आई कि लोकसभा में सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के 100 से अधिक सांसदों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं। धनखड़ ने राज्यसभा में 63 विपक्षी सांसदों के नोटिस को स्वीकार करते हुए प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी दी और कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल से लोकसभा में नोटिस की पुष्टि करने को कहा। उनकी इस त्वरित कार्रवाई को कई लोग उनकी ‘अतिसक्रियता’ के रूप में देख रहे हैं, जिसने सत्तारूढ़ दल को असहज किया होगा।
बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक में तनाव
सूत्रों के मुताबिक, सोमवार को बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) की दूसरी बैठक में धनखड़ ने राज्यसभा में नेता सदन जेपी नड्डा और संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू की अनुपस्थिति पर नाराजगी जताई थी। बैठक को मंगलवार के लिए स्थगित करने का अनुरोध सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री एल मुरुगन ने किया था। जयराम रमेश का दावा है कि धनखड़ को व्यक्तिगत रूप से दोनों मंत्रियों की अनुपस्थिति की सूचना नहीं दी गई, जिससे उनकी नाराजगी बढ़ी। रमेश ने कहा, “सोमवार दोपहर 1 बजे से शाम 4:30 बजे के बीच जरूर कुछ गंभीर हुआ, जिसके चलते यह इस्तीफा हुआ।”
सत्तारूढ़ दल की चुप्पी, विपक्ष की अटकलें
धनखड़ के इस्तीफे के बाद सत्तारूढ़ भाजपा की चुप्पी ने भी सियासी हलकों में चर्चा को जन्म दिया है। जहां विपक्ष धनखड़ के व्यवहार की आलोचना करता रहा, वहीं उनके इस्तीफे पर अब वह ‘व्यथित’ नजर आ रहा है। एक वरिष्ठ पत्रकार ने लिखा, “जो कांग्रेस धनखड़ को हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाई थी, आज उनके इस्तीफे से दुखी है।” वहीं, भाजपा नेताओं ने न तो धनखड़ के स्वास्थ्य की कामना की और न ही उनके इस्तीफे पर कोई आधिकारिक बयान दिया।
हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी ने जरूर मंगलवार को एक्स् पर पोस्ट किया, लेकिन उसके संदेश का आकार और शब्द, उनके भाव को काफी कुछ बयां करने का प्रयास कर रहे हैं। मोदी ने लिखा- ”श्री जगदीप धनखड़ जी को भारत के उपराष्ट्रपति सहित कई भूमिकाओं में देश की सेवा करने का अवसर मिला है। मैं उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूं।” इस संदेश में जो अवसर मिलने की बात कही है, उसे उन्हीं अवसरों से जोड़कर देखा जा रहा है, जो धनखड़ को भाजपा ने उपलब्ध कराते हुए सफलता के इस शीर्ष पर पहुंचाया और अधूरा-अधूरा सा संदेश अधूरी रह गई अपेक्षाओं का भी संकेत देता है।
क्या थी वजह?
कयास लगाए जा रहे हैं कि धनखड़ का विपक्ष के प्रति अचानक उदार रवैया और जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार करना सत्तारूढ़ दल को रास नहीं आया। कुछ का मानना है कि धनखड़ इस प्रस्ताव को अपनी अगुवाई में आगे बढ़ाना चाहते थे, लेकिन विपक्ष ने इसका श्रेय ले लिया। दूसरी ओर, जेपी नड्डा ने सफाई दी कि वह और रिजिजू अन्य संसदीय कार्यों में व्यस्त थे, जिसकी सूचना धनखड़ के कार्यालय को दी गई थी।
आगे क्या?
संविधान के अनुसार, अब राज्यसभा के उपसभापति कार्यवाहक सभापति की भूमिका निभाएंगे। नए उपराष्ट्रपति का चुनाव 60 दिनों के भीतर करना अनिवार्य है। धनखड़ के इस अप्रत्याशित कदम ने न केवल संसद के मानसून सत्र को प्रभावित किया है, बल्कि सियासी गलियारों में नई अटकलों को जन्म दे दिया है। क्या यह इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों से हुआ, या इसके पीछे कोई गहरी सियासी साजिश है? यह सवाल फिलहाल अनुत्तरित है, लेकिन इतना तय है कि आने वाले दिन इस घटनाक्रम पर और रोशनी डालेंगे।