नई दिल्ली, 19 अप्रैल 2025, शनिवार। उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खां को लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि कैसे एक बार उनकी कार में लगी हनुमान जी की छोटी सी मूर्ति आजम खां के गुस्से का कारण बन गई थी। लेकिन विक्रम सिंह ने साफ कर दिया कि यह मूर्ति उनकी गाड़ी से कहीं नहीं जाएगी। यह घटना न केवल उनके दृढ़ निश्चय को दर्शाती है, बल्कि उस दौर की सियासी तनातनी को भी उजागर करती है।
विक्रम सिंह ने बताया, “मैं सिर्फ कानून के दायरे में काम करता था, जो कुछ लोगों को खटकता था। मेरी गाड़ी में ड्राइवर ने हनुमान जी की एक छोटी मूर्ति लगाई थी। आजम खां ने इस पर आपत्ति जताई, लेकिन मैंने दो टूक कह दिया कि यह मूर्ति नहीं हटेगी। यह गाड़ी मेरे पूर्व अधिकारी की थी, मैंने इसमें कोई बदलाव नहीं किया, न सीट कवर बदला, न एक्सेसरीज। ड्राइवर को भी मैंने मूर्ति हटाने से मना कर दिया।” उनके इस जवाब से साफ है कि वह न तो दबाव में झुके, न ही अपनी आस्था से समझौता किया।
मुख्तार अंसारी और योगी आदित्यनाथ पर हमले की साजिश
विक्रम सिंह ने एक और सनसनीखेज घटना का जिक्र किया, जो आजमगढ़ और मऊ की है। उस वक्त योगी आदित्यनाथ एक जुलूस निकाल रहे थे, जब कुख्यात माफिया मुख्तार अंसारी और उसके गिरोह ने उन पर हमले की साजिश रची। सिंह ने बताया, “मुख्तार के गुर्गों ने सीरिया जैसे हालात बनाने की कोशिश की। खटारा बसों को सड़क पर खड़ा कर आग लगाने की योजना थी, ताकि रास्ते बंद हो जाएं और स्नाइपर्स या शार्पशूटर्स योगी की गाड़ियों पर हमला कर सकें।”
जैसे ही विक्रम सिंह को दंगे की खबर मिली, उन्होंने तुरंत एक्शन लिया। उन्होंने स्थानीय एसपी को हालात काबू करने का आदेश दिया और खुद हेलीकॉप्टर से कमांडो के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हुए। उन्होंने चेतावनी दी, “अगर हालात काबू नहीं हुए, तो मैं ऐसी कार्रवाई करूंगा कि लोग जनरल डायर को भूल जाएंगे।” उनके इस सख्त रवैये का असर हुआ। साजिश नाकाम रही, हालात काबू में आए, और हथियार भी बरामद कर लिए गए।
कानून के रखवाले का बेबाक अंदाज
विक्रम सिंह की यह कहानी न केवल उनके निडर व्यक्तित्व को दर्शाती है, बल्कि उस दौर की सियासी और आपराधिक गठजोड़ की पेचीदगियों को भी उजागर करती है। चाहे हनुमान जी की मूर्ति पर आजम खां की आपत्ति हो या मुख्तार अंसारी की साजिश, विक्रम सिंह ने हर बार कानून और अपनी ड्यूटी को सर्वोपरि रखा। यह घटना आज भी हमें याद दिलाती है कि साहस और सिद्धांतों के सामने कोई भी दबाव टिक नहीं सकता।
यह कहानी न सिर्फ रोमांचक है, बल्कि उस दौर की सत्ता और सड़क की जंग को भी बयां करती है। क्या आप भी मानते हैं कि ऐसे निडर अधिकारी आज भी हमारे सिस्टम की जरूरत हैं?