लखनऊ, 22 मई 2025, गुरुवार। पावन नगरी अयोध्या, जहां आस्था की गंगा बहती है, वहां इतिहास और कानून की अमर कहानी अब डिजिटल पन्नों पर सजने को तैयार है। श्रीराम जन्मभूमि न केवल भक्ति का केंद्र है, बल्कि भारत के सबसे लंबे और चर्चित कानूनी संघर्ष का प्रतीक भी है। अब इस संघर्ष की हर कड़ी, हर दस्तावेज को डिजिटल रूप में संरक्षित करने की ऐतिहासिक पहल शुरू हो चुकी है।
30 हजार से अधिक दस्तावेजों का डिजिटल संरक्षण
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने राम मंदिर से जुड़े 30,000 से अधिक कानूनी दस्तावेजों को डिजिटल करने का बीड़ा उठाया है। दशकों पुराने मुकदमों से लेकर 2019 के ऐतिहासिक सुप्रीम कोर्ट फैसले तक, हर दस्तावेज को अत्याधुनिक स्कैनिंग तकनीकों और सॉफ्टवेयर आधारित इमेज प्रोसेसिंग के जरिए सहेजा जा रहा है। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करेगी कि हर पन्ना, हर हस्ताक्षर और हर तथ्य स्पष्ट, सटीक और सुरक्षित रहे।
केवल संरक्षण नहीं, एक युग का दस्तावेजीकरण
यह डिजिटलीकरण केवल कागजों को कंप्यूटर में कैद करने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक युग को अमर करने का संकल्प है। इसके चार प्रमुख स्तंभ हैं:
संरक्षण: समय के साथ कागजी दस्तावेज नष्ट हो सकते हैं, लेकिन डिजिटल रूप में ये दशकों तक सुरक्षित रहेंगे।
मूल्यवत्ता: शोधकर्ता, इतिहासकार, अधिवक्ता और छात्र बिना मूल दस्तावेजों को छुए उनकी प्रामाणिक जानकारी तक पहुंच सकेंगे।
पारदर्शिता: नियंत्रित एक्सेस और मेटाडाटा के साथ यह डिजिटल संग्रह आम जन के लिए उपलब्ध होगा, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी।
शोध के नए द्वार: राम मंदिर के मुकदमों और ऐतिहासिक घटनाओं का गहन अध्ययन करने वालों के लिए यह संग्रह एक अनमोल खजाना बनेगा।
न्याय की यात्रा का सेतु
राम मंदिर का यह डिजिटल इतिहास केवल अतीत को सहेजने का प्रयास नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों को सत्य और न्याय की इस गौरवमयी यात्रा से जोड़ने का सेतु है। यह गाथा, जो सदियों की आस्था, संघर्ष और विजय की कहानी कहती है, अब डिजिटल युग में अमर हो रही है। अयोध्या की यह पहल न केवल राम लला के न्याय को सलाम है, बल्कि भारत के इतिहास को डिजिटल धरोहर के रूप में संजोने का एक प्रेरणादायी कदम भी है।