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Saturday, April 19, 2025

वाराणसी में सपा नेता पर हमला: लोकतंत्र पर सवाल और सियासत का शोर

वाराणसी, 13 अप्रैल 2025, रविवार। वाराणसी, जहां गंगा की लहरें और आध्यात्मिक शांति का मेल होता है, वहां शनिवार को हिंसा की एक घटना ने सबको चौंका दिया। समाजवादी पार्टी (सपा) के चर्चित नेता हरीश मिश्रा, जिन्हें ‘बनारस वाले मिश्रा जी’ के नाम से जाना जाता है, पर चाकू से हमला हुआ। इस घटना ने न केवल स्थानीय सियासत को हिला दिया, बल्कि उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था पर भी सवाल खड़े कर दिए।

शनिवार की दोपहर, जब हरीश मिश्रा पर आधा दर्जन हमलावरों ने चाकू से वार किया, तो मोहल्ले वालों की सतर्कता से दो हमलावर पकड़े गए। भागते हुए हमलावरों ने चिल्लाकर कहा, “करणी मां का अपमान किया था, हमने बदला लिया।” इस हमले में हरीश के सिर पर गंभीर चोटें आईं और उन्हें मंडलीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। घटना की खबर फैलते ही सपा कार्यकर्ता सिगरा थाने पहुंचे और दोषियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर धरने पर बैठ गए।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। पुलिस ने न केवल हमलावरों के खिलाफ कार्रवाई की, बल्कि प्रदर्शन कर रहे सपा कार्यकर्ताओं पर भी मुकदमा दर्ज कर लिया। सिगरा थाने में हरीश मिश्रा सहित चार नामजद और एक अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ सड़क जाम करने, सरकारी आदेश का उल्लंघन और सार्वजनिक मार्ग में बाधा डालने जैसे आरोपों में FIR दर्ज हुई। यह कदम सपा नेताओं के लिए अप्रत्याशित था, जिनका कहना है कि अपनी आवाज उठाने की सजा दी जा रही है।

रविवार को विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी वाराणसी पहुंचे। उन्होंने अस्पताल में हरीश से मुलाकात की और सर्किट हाउस में स्थानीय नेताओं से घटना की पूरी जानकारी ली। इसके बाद अपर पुलिस आयुक्त राजेश कुमार सिंह को एक पत्र सौंपकर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की। लाल बिहारी ने कहा, “वाराणसी में सपा नेताओं को बार-बार निशाना बनाया जा रहा है। यह ठीक नहीं। प्रदर्शन करने वालों पर मुकदमा दर्ज करना लोकतंत्र के लिए खतरा है।”

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा की। उन्होंने X पर लिखा, “हरीश मिश्रा पर हुआ कातिलाना हमला उत्तर प्रदेश में ध्वस्त कानून-व्यवस्था का सबूत है। उनके रक्तरंजित कपड़े इसकी गवाही देते हैं।” अखिलेश के इस बयान ने मामले को और तूल दे दिया।

यह घटना सिर्फ एक हमले की कहानी नहीं, बल्कि सियासी रस्साकशी और कानून-व्यवस्था के सवालों का मिश्रण है। एक तरफ सपा इसे राजनीतिक साजिश बता रही है, तो दूसरी तरफ पुलिस अपनी कार्रवाई को जायज ठहरा रही है। सवाल यह है कि क्या अपनी मांग उठाने की आजादी भी अब खतरे में है? वाराणसी की इस घटना ने न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि पूरे प्रदेश में एक नई बहस छेड़ दी है।

अब सबकी नजर इस बात पर है कि इस मामले में पुलिस की कार्रवाई कितनी निष्पक्ष होगी और सपा अपनी रणनीति को कैसे आगे बढ़ाएगी। बनारस की गलियों में यह चर्चा अभी थमने वाली नहीं है।

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