पटना, 21 मार्च 2025, शुक्रवार। बिहार में एक नई मुहिम की शुरुआत हुई है, जिसका मकसद है अश्लील गानों के सार्वजनिक प्रसारण पर रोक लगाना। इस अभियान की अगुआई बिहार पुलिस कर रही है, और इसमें बॉलीवुड अभिनेत्री नीतू चंद्रा भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे रही हैं। हाल ही में पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में नीतू ने इस मुद्दे पर अपनी बेबाक राय रखी। उनका मानना है कि अश्लील गानों का सीधा संबंध महिलाओं के खिलाफ अपराधों से है, और इन्हें रोकने से बिहार में सकारात्मक बदलाव आएगा।
अभियान का मकसद: महिला सुरक्षा और संस्कृति की रक्षा
नीतू चंद्रा पिछले 14 सालों से अश्लीलता के खिलाफ आवाज उठा रही हैं। उनका कहना है कि डबल मीनिंग वाले गाने और ऐसी फिल्में न सिर्फ समाज के लिए हानिकारक हैं, बल्कि ये अपराध को भी बढ़ावा देते हैं। “लेदर जैकेट पहनकर कूल बनने की चाहत में लोग इन गानों को देखकर गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं,” नीतू कहती हैं। उनका यह भी मानना है कि बिहार की समृद्ध भाषाओं को अश्लीलता से बचाने की जिम्मेदारी हम सबकी है। अपनी बात को मजबूत करने के लिए वे अपनी फिल्मों का उदाहरण देती हैं—’देसवा’, ‘मिथिला मखान’, ‘जैक्शन हॉल्ट’ और ‘करियट्ठी’—जिन्होंने न सिर्फ सम्मान हासिल किया, बल्कि बिहारी संस्कृति को गर्व से पेश भी किया।
हनी सिंह का ‘मैनियेक’: एक ट्रिगर प्वाइंट
हाल ही में रैपर हनी सिंह के नए एल्बम ‘मैनियेक’ में भोजपुरी गानों ने नीतू को फिर से इस मुद्दे पर बोलने के लिए मजबूर किया। वे सवाल उठाती हैं, “हनी सिंह की इतनी लोकप्रियता है, फिर वे अचानक पंजाबी से भोजपुरी में क्यों कूद पड़े? हमारी भाषा से उनका क्या लेना-देना?” नीतू ने इसके खिलाफ पटना हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) भी दायर की, जिस पर कोर्ट ने हनी सिंह से 28 मार्च तक जवाब मांगा है। यह कदम उन्होंने अपनी मातृभाषा के सम्मान के लिए उठाया, न कि किसी प्रचार के लिए।
बिहार की पहचान पर सवाल
नीतू का मानना है कि जब तक बिहार का शिक्षित वर्ग अश्लीलता के खिलाफ खड़ा नहीं होगा, तब तक बदलाव संभव नहीं है। “न बजाएंगे, न बजने देंगे; न देखेंगे, न दिखाएंगे; न सुनेंगे, न सुनाएंगे—यही संकल्प लेना होगा,” वे कहती हैं। उनका तर्क है कि बिहार की पहचान ‘जब लगावेलू तू लिपिस्टक’ जैसे गानों से नहीं, बल्कि हरिहरन, सोनू निगम और श्रेया घोषाल जैसे कलाकारों के योगदान से बननी चाहिए, जिन्होंने उनकी फिल्मों में गीत गाए हैं। वे महाराष्ट्र, दक्षिण भारत और बंगाल का उदाहरण देती हैं, जहां सांस्कृतिक जागरूकता ने फिल्म इंडस्ट्री को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
बिहार पुलिस और नीतीश कुमार से अपील
इस अभियान में बिहार पुलिस के साथ काम करते हुए नीतू महिला पुलिसकर्मियों की भूमिका को अहम मानती हैं। उनका कहना है कि ये महिलाएं अपनी कहानियों और सोशल मीडिया के जरिए बिहार की सकारात्मक छवि बना सकती हैं। साथ ही, वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी गुहार लगाती हैं कि जिस तरह शराबबंदी से महिलाओं की सुरक्षा को बल मिला, वैसे ही अश्लील गानों और फिल्मों पर सख्ती बरती जाए। “सेंसरशिप जरूरी है। एक बड़ी टीम बनाकर इन गानों और फिल्मों को नियंत्रित करना होगा,” वे जोर देती हैं।
बॉयकॉट ही रास्ता
नीतू का मानना है कि अश्लील गानों की लोकप्रियता का कारण हमारी अपनी कमजोरी है। “अगर बचपन से गोबर को लड्डू कहकर खिलाया जाए, तो लोग उसे लड्डू ही मान लेंगे,” वे कहती हैं। उनका सुझाव है कि इन गानों का सामाजिक बहिष्कार ही असली समाधान है। जब लोग इन्हें सुनना, देखना और बढ़ावा देना बंद करेंगे, तभी बिहार की असली धरोहर सामने आएगी।
एक नई शुरुआत
यह अभियान सिर्फ अश्लीलता के खिलाफ नहीं, बल्कि बिहार की खोई हुई गरिमा को वापस लाने की कोशिश है। नीतू चंद्रा और बिहार पुलिस की यह पहल न केवल महिलाओं की सुरक्षा को मजबूत करेगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को एक बेहतर सांस्कृतिक विरासत भी सौंपेगी। अब सवाल यह है कि क्या बिहार का समाज इस बदलाव के लिए तैयार है? जवाब शायद हम सबके हाथ में है।