नई दिल्ली, 25 दिसंबर 2024, बुधवार। अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। वह एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नेता, प्रखर राजनीतिज्ञ, नि:स्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता, सशक्त वक्ता, कवि, साहित्यकार, पत्रकार और बहुआयामी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। आज से लगभग 47 साल पहले, 4 अक्टूबर 1977 का दिन भारतीय राजनीति और कूटनीति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ था। अटल बिहारी वाजपेयी ने 4 अक्टूबर 1977 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण दिया था, जो एक ऐतिहासिक क्षण था। यह उनका पहला भाषण था और उन्होंने इस मंच पर हिंदी का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया, जो उस समय की एक नई और अनोखी घटना थी। वाजपेयी जी का यह कदम न केवल भारतीयों के लिए गर्व का विषय बना, बल्कि पूरी दुनिया को यह एहसास दिलाया कि भारतीय भाषाएं भी विश्व मंच पर महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने हिंदी में बोलने का फैसला किया, क्योंकि यह भारत की सांस्कृतिक और भाषाई विविधता का प्रतीक है।
अटल जी का ऐतिहासिक भाषण: जब संयुक्त राष्ट्र में हिंदी ने दुनिया को अपनी ताकत दिखाई
अटल बिहारी वाजपेयी जी ने संयुक्त राष्ट्र में अपने ऐतिहासिक भाषण के माध्यम से न केवल भारत की आवाज़ को पूरी दुनिया के सामने रखा, बल्कि उन्होंने हिंदी भाषा को भी वैश्विक मंच पर गौरवान्वित किया। उनके भाषण में भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और आस्थाओं की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। उन्होंने भारत के महत्वाकांक्षी विकास और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में सक्रिय भागीदारी की बात की, जो कि भारत की विदेश नीति के मूल सिद्धांतों में से एक है।
वाजपेयी जी ने अपने भाषण में वैश्विक मुद्दों पर भी अपनी स्पष्ट राय दी, जिनमें परमाणु निरस्त्रीकरण, राज्य प्रायोजित आतंकवाद और संयुक्त राष्ट्र में सुधार शामिल हैं। उन्होंने “वसुधैव कुटुम्बकम” के भारतीय विचारधारा को दुनिया के लिए एक आदर्श बताया, जो कहता है कि पूरी दुनिया एक परिवार है। यह भाषण न केवल अटल जी के लिए गर्व का था, बल्कि यह हर भारतीय के दिल में देशभक्ति और गर्व का संचार कर गया। यह पहला अवसर था जब किसी भारतीय नेता ने वैश्विक मंच पर हिंदी को इतनी प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया।